
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे का जल संसाधन विभाग ऐसा सरकारी महकमा है, जो लेटलतीफी के रुप में अपनी पहचान बना चुका है। यह बात अलग है कि ठेकेदारों को सामान खरीदी के लिए विभाग के अफसर जितनी तेजी में रहते हैं, शायद ही उतने अन्य विभाग के अफसर रहते हों। यही वजह है कि विभाग के अफसरानों द्वारा वसूली में भी रुचि नहीं ली जाती है, लिहाजा विभाग राजस्व वसूली में फिसड्डी बना हुआ है। हालात यह हैं कि इस वित्त वर्ष की समाप्ती में अब महज दो माह का ही समय रह गया है, लेकिन अब भी विभाग वसूली के लक्ष्य से तीन सौ करोड़ पीछे चल रहा है। इस मामले में विभाग के करीब एक दर्जन डिवीजनों की हालत तो बेहद ही खराब है। इसकी वजह से अब सबसे कमजोर जिलों और संभाग के अफसरों को चेतावनी तक दी जा रही है। खास बात यह है कि सर्वाधिक बकाया रकम 114 करोड़ बिजली कंपनियों पर है। इसके बाद पॉवर प्लांटों का नंबर आता है, जिनसे विभाग को 96 करोड़ रुपए की वसूली करनी है। वसूली लक्ष्य से पीछे चलने की वजह से ही विभाग के अफसरों को बीते दिनों अपर मुख्य सचिव ने न केवल फटकार लगाई है , बल्कि उन्हें जल्द ही लक्ष्य पूरा करने की चेतावनी भी दी है। अब शासन की सख्ती की वजह से माना जा रहा है कि वसूली के मामले में हालात कुछ हद तक सुधर सकते हैं। किसानों से पुरानी वसूली के लिए अफसरों को पसीना आ रहा है। शासन से लगी फटकार के बाद अब प्रमुख अभियंता ने फिसड्डी दर्जनभर अफसरों को नोटिस भी थामाए हैं। जिन्हें नोटिस दिए गए हैं उनमें यमुना कछार ग्वालियर, नर्मदा- ताप्ती कछार इंदौर, राजघाट नहर दतिया, धसान केन सागर, वेनगंगा कछार सिवनी, चंबल बेतवा कछार और मुख्य अभियंता कार्यालय उज्जैन तथा नर्मदापुरम हैं।
किस एवज में करनी होती है वसूली
उद्योगों को पानी देना, ननि, नपा और नगर पंचायतों को पेयजल उपलब्ध कराना, पंचायतों को पानी के लिए मदद करना, मप्र विद्युत मंडल, पॉवर प्लांट, एनटीपीसी और किसानों को पानी देने के बदले शुल्क लिया जाता है। कई अन्य प्रयोजनों के नाम पर भी सिंचाई कर वसूली की जाती है। फिलहाल जिनसे वसूली की जानी है उनमें उद्योग, नगरीय निकाय , पंचायतें, एनटीपीसी एवं किसान शामिल हैं।