खाली पदों को भरने की बजाय कराया जा रहा समाप्त

खाली पदों
  • विभाग की लालफीताशाही के खिलाफ डॉक्टर्स दे रहे हैं इस्तीफा..

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में नेशनल मेडिकल कमीशन की गाइडलाइन के उल्लंघन का अब इस कदर विरोध होने लगा है कि दो डॉक्टर्स ने इस्तीफा तक दे दिया है। दरअसल, प्रदेश में इन दिनों चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा खाली पदों को भरने की बजाय सरेंडर कराया जा रहा है यानी इन पदों पर अब भर्ती नहीं होगी। इससे प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पदस्थ डॉक्टरों की प्रगति का रास्ता बंद हो रहा है। इसके विरोध में दतिया मेडिकल कॉलेज के दो डॉक्टर्स ने इस्तीफा दे दिया है। जानकारी अनुसार नेशनल मेडिकल कमीशन का साफ कहना है कि मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी के पदों की संख्या वर्ष 1998-99 के नियमानुसार रहेगी। मसलन जितने पद हैं, उन्हें खत्म नहीं किया जाएगा बल्कि इसमें 20 फीसदी अतिरिक्त स्टाफ मैनेज करना होगा। यह नियम तत्कालीन मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने बनाया था। जिसे एनएमसी ने बरकरार रखा है। लेकिन मप्र में इसका पालन नहीं किया जा रहा है।  गौरतलब है कि प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर्स की कमी जगजाहिर है। इसे दूर करने की बजाए सरकार ऐसे कदम उठा रही है कि जो कार्यरत डॉक्टर्स हैं वह भी अब इस्तीफा देने पर मजबूर हो गए हैं। ताजा मामला दतिया मेडिकल कॉलेज का है। जहां दो डॉक्टर्स ने एक साथ इस्तीफा देते हुए अपने डीन से एनओसी मांगी है, यह डॉक्टर्स अब मप्र में काम न करके देश के दूसरे राज्यों की ओर जाना चाहते हैं। इस्तीफा देने वाले डॉक्टर्स में दतिया मेडिकल कॉलेज के दंत रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण सिंह कैरा और मनोरोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कपिल देव आर्य के नाम शामिल हैं। दोनों हो डॉक्टर्स ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए नए आदेश की बदौलत अब हमारा करियर दांव पर लग गया है, हमारी प्रगति और उन्नयन की संभावनाएं पूरी तरह से समाप्त हो चुकी हैं। एक तरफ जहां सरकार को चिकित्सक मिल नहीं रहे हैँ , तो वहीं इस तरह की नीतियां बना रहे हैँ जिससे की मौजूदा चिकित्सक भी सरकारी सेवाओं से दूर हो रहे हैं।
    आदेश वापस नहीं हुआ तो आगे और भी इस्तीफे संभव
    इस मामले में प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन मप्र के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल का कहना है कि मुख्यमंत्री को तत्काल इस मामले में दखल देना चाहिए। नई व्यवस्था से न सिर्फ मेडिकल टीचर्स बल्कि छात्र और मरीजों का भी नुकसान है। इस कदम प्रदेश की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। यदि सरकार ने समय रहते सही निर्णय नहीं लिया तो हम न सिर्फ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे बल्कि आंदोलन करेंगे। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अपनी इस नई व्यवस्था में एक अजीब कारनामा कर डाला इंदौर में दंत रोग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर डॉक्टर कार्यरत हैं, यानि के यह पद भरा हुआ है। इसके बावजूद इस पद को विभाग ने दूसरे कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया। अब सवाल यह उठ रहा है कि उक्त पद पर कार्यरत डॉक्टर का वेतन किस मद से दिया जाएगा।
    सरेंडर कराए जा रहे पद
    जानकारी के अनुसार चिकित्सा शिक्षा विभाग ने हाल ही में एक आदेश प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों को भेजा है। इस आदेश में कॉलेज डीन से कहा गया है कि आपकी संस्था में जितने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, डेमोस्ट्रेटर, सीनियर रेसीडेंट के रिक्त पद हैं, उन्हें चिकित्सा शिक्षा विभाग के मुख्यालय भेजिए और अपनी संस्था में उस पद को समाप्त करिए प्रदेश के सभी कॉलेजों के डीन ने अपने रिक्त पदों की सूची कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन को भेज दी। यहां से विभाग ने उन पदों को अन्य कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया। पद समाप्त हो जाने से निचले क्रम के डॉक्टर्स को आगे बढने का मौका मिलने की संभावना खत्म हो गई है।
    विभाग का अपना तर्क
    उधर, मेडिकल कॉलेजों में समाप्त किए गए फैकल्टी के रिक्त पदों को चिकित्सा शिक्षा विभाग ने स्थानांतरण कहा है। इस संबंध में की गई प्रक्रिया में किसी मेडिकल कॉलेज के किसी एक विभाग से लिए गए पद को किसी दूसरे कॉलेज के दूसरे विभाग में स्थानांतरित किया गया है। भले ही सरकार इस स्थानांतरित प्रक्रिया बता रही हैं लेकिन हकीकत में यह पद शून्य करने का निर्णय है।

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