
- शशि थरूर ‘अकेले’ यूं कि ऑपरेशन सिंदूर को लेकर केंद्र सरकार के पक्ष में उनका बोलना कांग्रेस को रास नहीं आ रहा
रत्नाकर त्रिपाठी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ गए हैं। थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर अपनी पार्टी को यूं ही सकते में डाल दिया था। अब जबकि कांग्रेस इस मुद्दे की सियासी लहर पर सवार होकर मोदी को घेरने में जुटी हुई है, तब थरूर ने यह भी कह दिया कि साल 2016 से पहले भारत ने कभी भी सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की थी। नतीजा यह कि कांग्रेस के दलित नेता उदित राज ने थरूर को भाजपा का प्रवक्ता कह दिया है।
जैसे सच बोलने वालों की जरुरत ही नहीं
थरूर का सर्जिकल स्ट्राइक वाला सच कांग्रेस नेतृत्व को पच नहीं पा रहा है। पार्टी ऑपरेशन सिंदूर के संघर्ष विराम के बाद से 1971 के पाकिस्तान युद्ध की दुहाई दे रही है। यह कह रही है कि मोदी से अधिक दम इंदिरा गांधी ने दिखाया और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिखाए थे। मगर थरूर के बयान के बाद कांग्रेस का यह दावा उसके घर के भीतर से ही कमजोर होता दिख रहा है।
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
उदित राज का कहना है कि थरूर भाजपा के सुपर प्रवक्ता बन गए हैं। भाजपा कह रही है कि राज का थरूर के लिए यह बयान राहुल गांधी के इशारे पर दिया गया है। कई मीडिया हाउस भी भाजपा के दावे से मिलती-जुलती बात कर रहे हैं। तो बयान के पीछे भले ही अकेले
राज का चेहरा हो, लेकिन क्या उसके पीछे और भी चेहरे छिपे हुए हैं?
बस यही ‘अपराध’ मैं हर बार करता हूं
गांधी-नेहरू परिवार के विरुद्ध सोचना भी वर्तमान कांग्रेस में अघोषित रूप से अक्षम्य अपराध है। मगर थरूर तो फिर थरूर हैं। इससे पहले उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी की नाराजगी को दरकिनार करते हुए मल्लिकार्जुन खडग़े के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था। तब भी यो पार्टी में अकेले ही पड़ गए थे। ताजा बयान देकर थरूर ने पार्टी की नजर में जो अपराध किया है, उसका असर दिखने लगा है।
हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक
इस सबके बीच लगता है कि शशि थरूर ने खुद कांग्रेस में अपनी सियासी कयामत का प्रबंध कर लिया है। दक्षिणी राज्य केरल में अपनी जमीन मजबूत करने के साथ ही कांग्रेस को बड़ा झटका देने के लिहाज से थरूर भाजपा के शुभंकर साबित हो सकते हैं। थरूर विदेशों में भी लोकप्रिय हैं और कांग्रेस से उनका मोह-भंग होने की स्थिति में भाजपा इस सुनहरे मौके को लपकने के इंतजार में मसरूफ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)