
- एक दशक में नहीं लिया किसी भी ठेकेदारों ने शराब दुकान का लाइसेंस
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। जहरीली और नकली शराब पीने से हो रही मौतों के मामले में भले ही प्रदेश की देशभर में बदनामी हो रही हैं, लेकिन प्रदेश की अफसरशाही इसके बाद भी शराब ठेकेदारों के मामले में सख्ती दिखाने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि प्रदेश में शराब ठेकेदारों को लेकर अफसर पूरी तरह से मस्त बने रहते हैं और नियम कानून पस्त नजर आता रहता है।
खास बात यह है कि इस तरह के मामलों में सरकार भी बहुत कुछ करने का प्रयास नहीं करती है। शराब का काम देखने वाला आबकारी अमला तो इस मामले में पूरी तरह से ही शराब कारोबारियों के सामने नतमस्तक बना रहता है, जिसकी वजह से अवैध शराब का कारोबार प्रदेश में दिन दूनी और रात चौगुनी की दर से फलफूल रहा है। फिर मामला चाहे नकली शराब बनाने का हो या फिर उसकी बिक्री का या फिर सरकार से ठेके लेकर शराब दुकानों के संचालन का। राजधानी में ही हालत यह है कि बीते एक दशक से किसी भी शराब ठेकेदार द्वारा दुकानों का लाइसेंस बनवाना तो ठीक उसके लिए आवेदन तक नहीं किया गया। यही नहीं शराब ठेकेदारों को एफएसएसएआई के निर्देश के बाद फूड सेफ्टी से लाइसेंस लेना अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में भी ना तो शराब ठेकेदारों ने रुचि दिखाई और ना ही अफसरों ने। इस मामले में बीच में जिला प्रशासन द्वारा एक दो बार प्रयास जरुर किए गए, लेकिन वह भी महज दिखावे तक ही सीमित रहे हैं। राजधानी में यह हाल तब हैं, जब प्रदेश में खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 पांच अगस्त 2011 से लागू हो चुका है। इसके बाद भी तब से लेकर आज तक किसी भी शराब दुकान का लाइसेंस तक नहीं बना है। हद तो यह है कि प्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार जिस तेजी से फल-फूल रहा है। उतनी ही तेजी से पुलिस व आबकारी
अमले की इस तरह के मामलों में कार्रवाई को लेकर सुस्ती बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि कई जिलों में हुई नकली शराब से दर्जनों मौतों के बाद भी उन पर नकेल कसने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अगर राजधानी की ही बात करें तो यहां पर आधा दर्जन स्थान ऐसे हैं जहां पर खुलेआम न केवल अवैध रूप से शराब बनाई जाती है, बल्कि उसका विक्रय भी किया जाता है। इन स्थानों के बारे में आम आदमी से लेकर प्रशासन व जिम्मेदार अफसरों तक को पूरा पता है, लेकिन मजाल है कि कोई कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाता हो। यही वजह है कि अब तो राजधानी में भी महंगे ब्रांड की शराब में मिलावट कर विक्रय किया जाने लगा है। इसका खुलासा खुद आबकारी विभाग की धरपकड़ के दौरान हो चुका है। इसके बाद भी अफसर पूरी तरह लापरवाह बने रहे। इस दौरान ना तो कभी दुकानों से शराब की सैंपल ली गई और ना ही कार्रवाई के दौरान पकड़ी गई शराब की जांच कराई गई। यही नहीं दुकानों में बिक रही महंगी शराब के दामों पर भी अंकुश लगाने के प्रयास अफसरों द्वारा नहीं किए जा रहे हैं। अगर समय रहते जिम्मेदार जाग जाते तो जहरीली शराब के अवैध कारोबार पर तो रोक लगती ही साथ ही इससे होने वाली मौतों को भी रोका जा सकता था।
देश में सबसे अधिक वसूली जाती है ड्यूटी
मध्यप्रदेश शासन द्वारा लगभग 12 हजार करोड़ रुपए एक्साइज ड्यूटी के रूप में वसूला जाता है। ड्यूटी देशभर में सबसे अधिक है। अधिक ड्यूटी की वजह से प्रदेश में सबसे महंगी शराब बिक रही है कई क्षेत्रों में तो शराब ठेकेदार एमआरपी से अधिक दामों पर शराब बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। दरअसल 100 पाइपर पर सरकार द्वारा प्रति बोतल 1007 रुपए ड्यूटी ली जाती है, जबकि उत्पादक से 768 रुपए में प्रति बोतल मिलती है। इस वजह से ठेकेदार को यह बोतल 1775 रुपए में पड़ती है। इसी तरह ब्लेंडर्स प्राईड पर प्रति बोतल 686 रुपए ड्यूटी वसूली जाती है उत्पादक से यह बोतल 412 रुपए में खरीदी जाती है।
नहीं लिए जाते हैं नमूने
राजधानी में रोजाना हजारों लीटर शराब की खपत के बावजूद नमूने लेने में खाद्य सुरक्षा अधिकारी रुचि नहीं दिखाते हैं। सैंपल नहीं लेने के कारण ही राजधानी में शराब में मिलावट का बड़ा कारोबार खड़ा हो गया है। आबकारी विभाग के मुताबिक शहर में हर रोज करीब 25 हजार अंग्रेजी शराब की बोतल 20 हजार बीयर की बोतल और 50 हजार लीटर देसी शराब की बिक्री होती है।
क्यों बनाया गया था कानून
मिलावटी शराब के कारोबार को रोकने के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया गया है। जिससे खाद्य एवं औषधि प्रशासन का अमला समय-समय पर इसकी जांच कर यह देख सके कि इसमें तय मानक का पालन हो रहा है या नहीं, मगर इसे लेकर ना तो ठेकेदार गंभीर हुए और ना ही अफसर।
देसी शराब पर 45 रु. की ड्यूटी की वसूली
देसी मसाला की बात करें तो इस पर प्रति भाव 45 रुपए की ड्यूटी सरकार द्वारा वसूली जाती है। जबकि उत्पादक से यह पाव 20 रुपए में खरीदा जाता है। ठेकेदार को यह पाव 65 रुपए का पड़ता है इसी तरह कच्ची शराब की बात करें तो यह 10 रुपए में आसानी से उपलब्ध हो जाती है।