- कांग्रेस का अब तक 25 सीटों पर दांव
- विनोद उपाध्याय

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस ने अब तक मप्र की 25 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। पहले 22 प्रत्याशी घोषित करने के बाद पार्टी ने कल गुना से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ राव यादवेंद्र सिंह और विदिशा से शिवराज सिंह के सामने पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा को उतारा है। दमोह से तरवर सिंह लोधी को टिकट दिया है, उनका भाजपा के राहुल सिंह लोधी से मुकाबला होगा। वहीं, ग्वालियर, मुरैना और खंडवा लोकसभा सीट को होल्ड पर रखा है। इन तीनों सीट पर सस्पेंस बरकरार है। अभी तक कांग्रेस ने जिन लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं उनमें से पांच सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस हर बार चेहरे बदल देती है। वहीं कुछ सीटों पर पुराने प्रत्याशियों पर विश्वास जताया है। गौरतलब है कि मप्र में भाजपा ने सभी 29 सीटों के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। वहीं कांग्रेस ने तीन सूचियों के माध्यम से अभी तक 25 प्रत्याशियों की घोषणा की है। खजुराहो सीट से सपा अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी। इस तरह भाजपा और कांग्रेस के बीच 28 सीटों पर सीधा मुकाबला होना है। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने प्रतिद्वंद्वी भाजपा को पछाडऩे के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साधते हुए नए उम्मीदवारों पर दांव लगाया लेकिन सफलता नहीं मिली।
हर बार प्रत्याशी बदलने का दांव फेल
पिछले कई लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस कई तरह के प्रयोग कर रही है। इन्हीं में से एक प्रयोग है प्रत्याशी बदलने का। भोपाल, भिंड, खरगोन, बालाघाट और सागर में तो पिछले पांच लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने हर बार उम्मीदवार बदल दिए कि शायद इससे मतदाताओं का मन भी बदल जाए पर दाल नहीं गली। इनमें खरगोन सीट को छोड़ दें तो बाकी चारों में कांग्रेस हर बार बड़े मतों के अंतर से हारी। खरगोन में वर्ष 2007 के उपचुनाव और 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अरुण यादव की जीत हुई थी। टीकमगढ़, धार और दमोह लोकसभा सीटों में कांग्रेस चार बार से प्रत्याशी बदल रही है। पिछले तीन चुनावों तो उसे सफलता नहीं मिली। अब देखना होगा कि प्रत्याशी बदलने का इस चुनाव में कांग्रेस को कितना लाभ मिलता है। मंडला लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस ने पांच लोकसभा चुनाव में चार बार उम्मीदवार बदले हैं। ओमकार सिंह मरकाम इस चुनाव के पहले 2014 में यहां से चुनाव लड़े थे। इस सीट पर वर्ष 2009 में कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते से जीत गए थे। बाकी वर्ष 2014 और 2019 में फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से जीते। भोपाल ऐसी सीट है जहां भाजपा मतों के बड़े अंतर से जीतने के बाद भी पिछले तीन चुनाव से हर बार उम्मीदवार बदल दे रही है। वर्ष 2014 में आलोक संजर, वर्ष 2019 में प्रज्ञा सिंह ठाकुर और इस बार आलोक शर्मा भाजपा से मैदान में हैं। इसके अतिरिक्त ग्वालियर लोकसभा सीट पर भाजपा लगातार प्रत्याशी बदल रही है। यहां से वर्ष 2004 में जयभान सिंह पवैया, इसके बाद वर्ष 2007 के उपचुनाव और वर्ष 2009 के आम चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया, वर्ष 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर, वर्ष 2019 में विवेक शेजवलकर और इस बार भारत सिंह कुशवाह को उम्मीदवार बनाया गया। 2004 को छोड़ दें तो बाकी चुनावों में भाजपा की जीत हुई थी। बता दें, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 28 और कांग्रेस को एक, 2014 में भाजपा को 27 और कांग्रेस को दो और 2009 में भाजपा 16, कांग्रेस 12 और बसपा एक सीट पर जीती थी। इस बार कांग्रेस ने न सिर्फ उम्मीदवार बदले हैं बल्कि नए चेहरों और युवाओं को मौका दिया है।
मंडला, बैतूल, सतना में पुराने प्रतिद्वंद्वी
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए इस बार भाजपा के प्रत्याशियों के सामने उनके पुराने प्रतिद्वंद्वियों को मैदान में उतारा है। मंडला, बैतूल, सतना में पुराने प्रतिद्वंद्वी आमने सामने हैं। वह पिछले लोकसभा चुनाव के आधार पर एक-दूसरे की कमजोरियों पर प्रहार कर बाजी अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे हैं। मंडला से भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते और कांग्रेस के ओमकार सिंह मरकाम 2014 के बाद फिर आमने-सामने हैं। तब मरकाम एक लाख 10 हजार 469 मतों से हार गए थे। इसी तरह बैतूल से दुर्गादास उइके और रामू टेकाम लगातार दूसरी बार प्रतिद्वंद्वी बने हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में टेकाम 3 लाख 60 हजार 241 मतों से पराजित हुए थे। सतना लोकसभा सीट से भाजपा के गणेश सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाहा विधानसभा चुनाव में भी मैदान में थे। कुशवाहा ने विधानसभा चुनाव में गणेश सिंह को 4,041 मतों से हराया था। लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने सभी 29 तो कांग्रेस ने 22 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इनमें बैतूल ऐसी सीट है जहां भाजपा और कांग्रेस से फिर वही उम्मीदवार मैदान में है। इस सीट पर कांग्रेस से आखिरी बार 1991 में असलम शेर खान जीते थे। इस सीट पर 1996 जीतती से लगातार भाजपा आ रही है। वर्तमान सांसद दुर्गादास उइके पहली बार 2019 में जीते थे। रामू टेकाम आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। क्षेत्र में उनकी पकड़ को देखते हुए कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है। वह विधानसभा चुनाव में बैतूल से टिकट मांग रहे थे, तभी पार्टी पदाधिकारियों ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिलाने का आश्वासन दिया था। सतना लोकसभा सीट पिछले छह बार (1998 से) भाजपा जीत रही है। ऐसे में यह सीट कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। सिद्धार्थ कुशवाहा पिछले विधानसभा चुनाव में गणेश सिंह को हराकर दूसरी बार विधायक बने हैं। दोनों प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से हैं। इस वर्ग के मतदाता भी यहां बड़ी संख्या में हैं। सिद्धार्थ के पिता सुखलाल कुशवाहा भी यहां से 1996 में कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन सिंह और भाजपा के वीरेंद्र सखलेचा को हराकर जीते थे। जातिगत समीकरण को देखते हुए बसपा ने यहां से नारायण त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है। मंडला सीट की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते 2019 के लोकसभा चुनाव में 97 हजार 674 मतों से जीते थे, पर पिछला विधानसभा चुनाव निवास सीट से कांग्रेस के चैन सिंह बरकड़े से हार गए थे।