
- अफसरों की मनमानी
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश पुलिस के अफसरों की कार्यशैली हमेशा से ही विवादों में रहती है। सजा व इनाम के मामलों में तो यह अफसर अपने करीबी का पूरा ख्याल रखते हैं। यही वजह है कि इन दोनों ही मामलों में उनके पैमाने अलग- अलग हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ है कर्मवीर योद्धा सम्मान दिलाने के मामले में । हद तो यह हो गई कि कोरोना के संकटकाल में जिलन पुलिस कर्मचारियों ने पूरी ताकत के साथ मोर्चा संभाला है उनकी जगह उन कर्मचारियों को अधिक तबज्जो दी गई है जो इस दौरान अपने दफ्तरों में बैठकर कामकाज करते रहे हैं।
इस सम्मान की सूची जारी होने के बाद अब मैदानी पुलिसकर्मियों में जमकर आक्रोश फूट पड़ा है। यह स्थिति तब है जबकि पुलिस मुख्यालय द्वारा एक साथ लगभग 39 हजार पुलिसकर्मियों को यह सम्मान देने का ऐलान कर दिया गया। अनुशासन में बंधे होने की वजह से अफसर इस तरह की मनमानी करते रहते हैं। यही वजह है कि अब हद हो जाने के बाद पुलिसकर्मी इस मामले में मुखर नजर आने लगे हैं। वे इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी जमकर आरोप लगाने से पीछे नहीं रह रहे हैं।
अब वे सीधे-सीधे अफसरों पर अपने चहेतों को यह सम्मान दिलाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि हम लोग कोरोना काल में छुट्टी पर भी नहीं गए थे, फिर उनका नाम क्यों नहीं है। अब इस मामले में पूरा पुलिस का अमला दो हिस्सों में बंट गया है। इस मामले में अब शिकवा-शिकायतों का दौर भी शुरू हो चुका है। मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश पुलिस के 39185 पुलिसकर्मियों को कर्मवीर योद्धा सम्मान प्रदान करने के लिए नामों का ऐलान स्वतंत्रता दिवस समारोह से ठीक दो दिन पहले किया है। यह सम्मान उन्हें देने की घोषणा की गई है, जिनके द्वारा कोरोना काल में अपनी जान जोखिम में डाल कर काम किया है। कोरोना की पहली लहर के भयंकर खौफ में भी पुलिसकर्मियों ने मैदानी मोर्चा संभाला था।
इस तरह किया जा रहा है कटाक्ष
पुलिसकर्मियों के बीच एक पोस्ट जमकर वायरल हो रही है। उसमें कटाक्ष करते हुए लिखा है कि यदि 40 हजार कर्मवीर योद्धाओं में भी आपका नाम नहीं है, तो कृपया अच्छे से नौकरी करना शुरू कर दें अथवा अपनी नौकरी को सीरियसली लेना बंद कर दें। मेरा भी नाम नहीं है और मैंने दूसरा विकल्प चुना है। एक पुलिसकर्मी ने तंज कसते हुए लिखा, जिन्हें सम्मान मिला, वे कोरोना संक्रमण के दौरान नौकरी कर रहे थे। जिन्हें नहीं मिला, वे छुट्टी पर थे। ऐसा तब है, जब पुलिस मुख्यालय ने छुट्टियां रद्द कर दी थीं। पुलिसकर्मियों ने लिखा, अफसरों को बताना चाहिए कि क्या हम ड्यूटी पर नहीं थे। अगर थे, तो कर्मवीर योद्धा सम्मान देने के लिए नाम का चयन करने का मापदंड क्या अपनाया गया है। सिर्फ चहेतों का फार्मूला लागू था अथवा थोड़ी-बहुत गुंजाइश उन लोगों के लिए भी है, जो अपना काम करते हैं।
इस तरह से अपनाया जाता है दोहरा रवैया
दरअसल पुलिस महकमे में थाना प्रभारी से लेकर आरक्षक तक के मामलों में पुलिस कप्तानों द्वारा दोहरा रवैया अपनाया जाता है। एक ही मामले अगर दो अलग-अलग थानों के होते हैं तो एक मामले में थाना प्रभारी को लाइन अटैच किया जाता है , जबकि दूसरे मामले में चहेते थाना प्रभारी के चलते उस पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाती है। इसी तरह का रवैया अन्य मामलों में भी दिखता है। ऐसे मामलों में पुलिस मुख्यालय में पदस्थ पुलिस के आला अफसर भी मूक दर्शक बने रहते हैं।
मैदानी आला अफसरों से मांगे थे नाम
सम्मान के लिए पुलिस मुख्यालय द्वारा भोपाल-इंदौर के डीआईजी शहर और अन्य जिलों के एसपी से पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के नाम मांगे गए थे। जिलों से नाम आने के बाद पीएचक्यू ने भी उन्हीं नामों पर अपनी मुहर लगा दी। इस पर मुहर लगाने से पहले पीएचक्यू ने छानबीन के लिए एक समिति बनाई थी। समिति ने भी बिना कुछ किए उन्ही नामों को हरी झंडी दे दी , जो जिलों से भेजे गए थे। इनमें वे नाम भारी संख्या में हैं जो अफसरों के कार्यालयों में पदस्थ हैं। इस मामले में मैदानी पुलिसकर्मियों का आरोप है कि पदक देने में मैदानी पदस्थापना वाले पुलिसकर्मियों की बजाय ऑफिस में बैठने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को ज्यादा तवज्जो दी गई है। जब हम लोग अपनी जान खतरे में डालकर सड़कों पर काम कर रहे थे, जब जो कर्मचारी एक जगह सुरक्षित बैठकर काम कर रहे थे , उन्हें सम्मान देने में वरीयता दी गई है। यह वे लोग हैं जो आफिस में बैठकर केवल लोकेशन देते रहे। इंदौर में इस तरह की शिकायतें सबसे अधिक है।
जारी है विरोध
नामों का ऐलान होने के बाद सोशल मीडिया में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। पुलिसकर्मियों ने कुछ विभागीय अधिकारियों तक के ग्रुपों में विरोध जताना शुरू कर दिया है। इसके अलावा पुलिसकर्मियों ने अपने ग्रुपों में भी आला अफसरों के खिलाफ मोर्चा खेल दिया है। इस मामले में वे अब सीधे तौर पर आला अफसरों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मैदानी अमले में इस बात को लेकर नाराजगी इससे ही समझी जा सकती है कि बहुत सारे पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया की अपनी डीपी तक विरोध स्वरुप ब्लैक कर ली है। मैदानी अमले की जगह दफ्तरों में जमे चहेतों को दिलाया सम्मान