- सत्ता और संगठन में समन्वय की कवायद
- गौरव चौहान

मप्र में भले ही तीन साल बाद चुनाव होना है, लेकिन भाजपा अभी से इलेक्शन मोड में आ गई है। इसके लिए पार्टी सत्ता और संगठन में समन्वय की कवायद को और मजबूत बनाने में जुट गई है। पार्टी की रणनीति के अनुसार अब अगर कोई मंत्री अपने प्रभार वाले जिले में प्रवास पर जाएंगे है तो उन्हें जिला कार्यालय में पदाधिकारियों के साथ बैठक करनी होगी। वहीं भाजपा संगठन जल्द ही जिलों में नई कोर कमेटी का गठन करने जा रहा है। इसके अलावा जिलों की कार्यकारिणी भी अभी बनना है। इसके लिए जिलों में पर्यवेक्षक भेजे जाएंगे और वे सीनियर समेत सभी कार्यकर्ताओं से चर्चा कर नाम तय करेंगे। पर्यवेक्षक भेजने के पीछे संगठन का मकसद पटठावाद की राजनीति को खत्म करना है। पदाधिकारियों के नाम पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बाद ही तय किए जाएंगे।
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सत्ता और संगठन में समन्वय और कार्यकर्ताओं की चिंता में पार्टी अभी से लग गई है। हाल ही में पहली बार मुख्यमंत्री निवास में जिलाध्यक्षों और प्रभारी मंत्रियों की एक साथ बैठक का आयोजन किया गया। इसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अलावा राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडलेवाल और अन्य पदाधिकारी मौजूद थे। गौरतलब है कि भाजपा संगठन ने पहली बार इस तरह की बैठक बुलाई थी। यही नहीं बैठक के बाद प्रभारी मंत्रियों की उनके जिले के अध्यक्षों के साथ अलग से बैठक कराई गई। प्रभारी मंत्रियों से कहा गया कि वे जिले में जाने से पहले जिला कार्यालय को न सिर्फ सूचना दे बल्कि पार्टी कार्यालय भी जरूर जाएं। इस बैठक में जिलों में नेताओं के बीच गुटबाजी को दूर करने का साफ संदेश दिया गया। इसके साथ ही जिलाध्यक्षों से भी खंडेलवाल ने साफ कर दिया कि वे जिले के संगठन के मुखिया हैं और उसी की तरह व्यवहार करें। कुछ खास लोगों के साथ ही न दिखाई दें।
जिलाध्यक्ष कार्यालय को भेजना होगा कार्यक्रम
गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद से ही हेमंत खंडेलवाल संगठन को सक्रिय करने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में भाजपा में सत्ता और संगठन की कवायद एक बार फिर शुरू हो गई है। जिलों के प्रभारी मंत्रियों को जिले में जाने से पहले जिलाध्यक्ष कार्यालय को अपने कार्यक्रमों की सूचना भेजनी होगी। इसके साथ ही उन्हें सरकारी आयोजनों को निबटाने के बाद जिला कार्यालय में बैठकर कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात करनी होगी। वहीं जिलाध्यक्षों के कार्यालय में बैठने के घंटे भी प्रदेश संगठन तय करने जा रहा है। ऐसा जिलों से प्रदेश कार्यालय में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही हेमंत खंडेलवाल पार्टी को कसने में लगे हैं। दरअसल जिलाध्यक्षों के चयन में विधायकों की राय अहम होती है। कई जिलाध्यक्ष, सांसद एवं विधायकों की अनुकंपा से बने हैं। ऐसे में वे उस विधायक के समर्थकों को खास महत्व दे रहे हैं। कई जिलों से इस तरह की शिकायतें संगठन को मिली हैं। इसके अलावा कुछ जिलों में विधायकों की संगठन नेताओं से पटरी न बैठ पाने की शिकायतें मिली हैं। वहीं जनप्रतिनिधियों ने संगठन को यह भी शिकायत की थी कि संगठन की बैठकों की सूचना ही उन्हें नहीं दी जाती।
बैठक में सभी को बुलाना अनिवार्य
प्रदेश संगठन के वरिष्ठ नेताओं ने जिलाध्यक्षों को नसीहत दी है कि मतभेद भले ही हों पर बैठकों में सभी को बुलाया जाना चाहिए। सीएम हाउस की बैठक में जिलाध्यक्षों के ही पार्टी कार्यालय में न बैठने पर बात हुई। राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने साफ कहा कि जिलाध्यक्षों को सांसद, विधायकों के साथ घूमने की बजाए पार्टी कार्यालयों में समय देना चाहिए ताकि कार्यकर्ताओं के मुद्दे स्थानीय स्तर पर ही हल हो जाएं। उन्होंने कहा कि जिलाध्यक्षों के कार्यालय में न बैठने के कारण ही प्रदेश कार्यालय में कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ती है और इससे नकारात्मक संदेश जाता है। संगठन ने जिलाध्यक्षों को यह भी साफ बता दिया है कि उन्हें निगम मंडलों में पद नहीं दिया जाएगा लिहाजा वे इसके लिए लाबिंग भी न करें।
जिला अध्यक्षों को करने होंगे तीन काम
संगठन ने जिला अध्यक्षों के तीन काम बताए हैं। उन्होंने कहा आपका पहला काम है कार्यकर्ता को सम्मान देकर सक्रिय करें। समन्वय बनाकर काम करें और कार्यकर्ता भ्रमित न हो इसकी चिंता करें। जिलों में कोर ग्रुप बनाया जाएगा। इससे सहज परामर्श की प्रक्रिया बनेगी। जिला अध्यक्ष के ऊपर जिले के संगठन की जिम्मेदारी है। आप सभी को साथ लेकर काम करने की कोशिश करें। जिला अध्यक्षों से कहा गया कि आप लोग निगम मंडलों और अन्य नियुक्तियों में अपनों को स्थापित कराने का मोह त्यागकर सीनियर कार्यकर्ताओं को सम्मान दें, विचार परिवार को महत्व दें। अपनों को मंत्री का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास करने में समय बर्बाद न करें। जिलों में वर्चुअली बैठक की परंपरा को बंद करें। जिला अध्यक्ष वर्चुअली जुडऩे के बाद दूसरे काम कैमरा ऑफ कर करते हैं। झूठ बोलने की आदत न डालें। वहीं संगठन के ध्यान में यह भी लाया गया है कि अधिकांश जिलाध्यक्ष सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सक्रिय नहीं हैं। आलम यह है कि 62 में सिर्फ सात या आठ जिलाध्यक्ष ही एक्स पर सक्रिय रहते है। इधर संगठन के निर्देश हैं कि जिलाध्यक्ष जिस भी कार्यक्रम में जाएं उसका छोटा सा विवरण और फोटो सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जरूर शेयर करें पर इसका पालन कई जिलाध्यक्ष नही कर रहे है। संगठन द्वारा की गई समीक्षा में सामने आया है कि कई जिलाध्यक्ष तो दो से तीन दिनों तक सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहते हैं।