यदि तय प्रतिशत से कम पौधे ही जीवित रहे तो अफसर जिम्मेदार

कैंपा फंड

 पौधारोपण की जीवितता का प्रतिशत 70  किया गया तय, यदि इससे कम रहा तो नहीं मिलेगा कैंपा फंड 

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की शिवराज सरकार इस वर्ष पौधारोपण को लेकर सख्ती के मूड में है। यानी पौधारोपण में लापरवाही किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यदि तय किए गए प्रतिशत से पौधे कम जीवित पाए जाएंगे तो संबंधित अफसरों पर कार्रवाई की जाएगी। साथ ही कैंपा फंड की राशि भी उन्हें नहीं दी जाएगी। वन विभाग ने पौधारोपण के जीवितता को लेकर आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि यदि पौधारोपण की जीवितता का प्रतिशत 70 फीसदी तक होना चाहिए। यदि प्रतिशत इससे नीचे रहा यानी इससे कम प्रतिशत में पौधे जीवित रहे तो फंड नहीं दिया जाएगा। ऐसे में अब अधिकारियों ने पौधारोपण की मॉनिटरिंग शुरू कर दी है। खास बात है कि विभाग ने मुख्यालय से एक अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक को एक वृत्त की जिम्मेदारी सौंपी है। प्रदेश में सोलह वन वृत है। इनकी मानिटरिंग के लिए अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। उल्लेखनीय है कि वन विभाग में सभी जिलों में लगभग तीन करोड़ से भी ज्यादा पौधे लगाए हैं। शिवपुरी और सागर जिलों के साथ ही कुछ अन्य जिलों में काफी छोटे पौधे लगाए गए। जब इनका निरीक्षण करने एपीसीसीएफ समिता राजौरा पहुंची तो उन्होंने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। यही नहीं उन्होंने सीसीएफ से सवाल करते हुए कहा कि क्यों छोटे पौधों का जीवितता प्रतिशत काफी कम होता है। पौधा रोपण की मॉनिटरिंग करने हर दो-तीन माह में अधिकारियों को निरीक्षण करना होगा और इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर देनी होगी। यदि 70 प्रतिशत से कम पौधे जीवित पाए जाते हैं, तो संबंधित डीएफओ और रेंजर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

कराई गई थी पौधरोपण की जांच
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पूर्व कार्यकाल में नर्मदा किनारे पौधारोपण की जीवितता को लेकर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने जांच कराई थी। तब सामने आया था कि लगभग तीस प्रतिशत पौधे ही जीवित हैं।

वन क्षतिपूर्ति की है योजना
 प्रदेश के वन विभाग ने वनों की क्षतिपूर्ति के लिए योजना तैयार की है। इसके तहत खनिज निकालने के बाद जो खदानें खाली पड़ी हैं उन पर वन तैयार करने के लिए पौधारोपण किया जाएगा। यानी सरकार इन खदानों की जमीन को वनीकरण क्षतिपूर्ति के लिए उपयोग करेगी। इससे खदानों में दोबारा जंगल तैयार किया जा सकेगा। चाहे वह कोल माइंस हो या अभ्रक डोलोमाइट सहित अन्य खनिजों की खदानें। खास बात यह है कि इस तरह की खदानों की जिला स्तर पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। सामान्य तौर पर खदानों से खनिज निकालने के बाद उन्हें खाली छोड़ दिया जाता है। इसमें बारिश के दौरान पानी भर जाता है  कई बार बच्चों की डूबने की शिकायतें भी आती हैं। हालांकि इन खदानों में फेंसिंग और बाउंड्री वॉल बनाने के निर्देश शासन की तरफ से है लेकिन सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है  यही वजह है कि अब सरकार इन खदानों में जंगल तैयार करेगी।

खदानों के आसपास समतलीकरण कर तैयार किया जाएगा जंगल
दरअसल सरकार की मंशा है कि ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण हो, यही वजह है कि अब खदानों और उसके आसपास की जमीन का समतलीकरण किया जाएगा। इसके बाद उस जगह पर पौधारोपण कराया जाएगा। सूत्रों की मानें तो प्रदेश में सैकड़ों खदानें वर्षों से खाली पड़ी है। वर्तमान स्थिति जानने के लिए इसका सर्वे कराया जाएगा और पौधारोपण के लिए वन विभाग को दिया जाएगा।

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