बोरवेल में बच्चे गिरे तो मालिक पर होगी कार्रवाई

बोरवेल
  • कई मौतों के बाद एक्शन की तैयारी

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सहित देशभर में आए दिन खुले छोड़े गए बोरबेल में बच्चों के गिरने की घटानाएं सामने आती रहती हैं। ऐसे हादसों में कई बच्चों की मौत भी हो चुकी है। लगातार घट रही घटनाओं के बाद सरकार ने एक्शन की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार अब खुले में बोरवेल छोड़ने  वालों पर कार्रवाई करने के मूड में है। साथ ही रेस्क्यू खर्च वसूलने की तैयारी कर रही है।
    गौरतलब है कि हालही में छतरपुर में खेत में खुले छोड़े बोरवेल में गिरे 4 साल के दीपेंद्र को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। लेकिन आए दिन हो रहे ऐसे हादसों से सरकार चिंतित है। ऐसे में इस तरह के हादसों को रोकने को लेकर शिवराज सरकार अब सख्त दिखाई दे रही है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि सरकार इस तरह की घटनाओं को लेकर विचार कर रही है। इस तरह से बोरवेल खुले में छोड़ने वालों से सरकार रेस्क्यू खर्च वसूलने के बारे में कानून बनाएगी।
    बोरवेल में बच्चों के गिरने के करीब एक दर्जन घटनाएं
    प्रदेश में दो-तीन साल के भीतर बोरवेल में बच्चों के गिरने के करीब एक दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं। छतरपुर के नारायणपुरा और पठापुर के बीच खेत में बने बोरवेल में दीपेंद्र यादव गिरा। सात घंटे में बचा लिया गया। छतरपुर जिले की नौगांव क्षेत्र में चार माह पहले एक बच्ची बोरवेल में गिर गई थी। फरवरी 2022 में दमोह जिले में 4 साल का बच्चा गिर गया था। उसे निकाल तो लिया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका। दमोह में इसके पहले भी एक घटना हो चुकी थी। फरवरी 22 में उमरिया के बरछड़ गांव में चार साल का मासूम गिरा। यह करीब दौ सौ फीट गहरा था। बचाया नहीं जा सका। उज्जैन जिले के रुईगढ़ा के जोगीखेड़ी के पास पांच साल की बच्ची बोरवेल गई थी। उसे बचाया नहीं जा सका। मार्च 2018 में देवास जिले में एक चार साल का बच्चा गिरा था। 27 जनवरी 2019 को सिंगरौली में बोरवेल मासूम को •सुरक्षित निकाला गया।  वर्ष 2020 में निवाड़ी जिले में एक खेत में चार साल का बच्चा 200 फीट गहरे बोरवेल में गिरा था। छतरपुर के नौगांव के ग्राम दौनी की घटना को देखते हुए कलेक्टर संदीप जीआर ने निर्देश दिए कि हैं उन्हें बंद किया जाए। छतरपुर मामले में चले रेस्क्यू पर उन्होंने बताया कि पूरे अभियान में कितना व्यय हुआ। इसका आकलन करा रहे हैं।
    कोर्ट के निर्देश भी दरकिनार
    उच्चतम न्यायालय ने 11 फरवरी 2010 को दिशा-निर्देश जारी किए थे कि बोरवेल के निर्माण के समय आसपास कंटीले तार लगाए जाएं उसे सही तरीके से ढंके जाएं। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने देश में इस तरह की दुर्घटनाओं से संबंधित एक पत्र याचिका पर 13 फरवरी, 2009 को स्वत: संज्ञान लिया था। लेकिन उसके निदेर्शों का पालन नहीं किया गया। अब सरकार और कई जिला प्रशासन इस दिशा में निर्देश जारी कर रहे हैं।
    इन मापदंडों का पालन करना अनिवार्य
    सरकार की गाईड लाइन के अनुसार अब बोरिंग की खुदाई से पहले कलेक्टर / ग्राम पंचायत को सूचना देनी होगी। खुदाई करने वाली संस्था या अच्छी तरह कसना होगा। ठेकेदार का पंजीयन होना चाहिए। खुदाई स्थल पर साइन बोर्ड लगे। कंटीले तारों की फेंसिंग हो ।  केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट / कॉन्क्रीट का 0.30 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बने। बोर के मुहाने को स्टील की प्लेट से वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा । खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाए। नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी। अब रेस्क्यू का पूरा खर्च मालिक से वसूला जाएगा।

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