मुझे मेरे एक लंगोटिया यार ने नसीहत दी…

  • वीरेंद्र नानावटी
लंगोटिया यार

मुझे मेरे एक लंगोटिया यार ने नसीहत दी… बरखुरदार ! तुम नाहक योग्यता के सुर अलापे बैठे हो! कलजुग के इस चापलूसी चलन में योग्यता भी कोई गुण हैं भला ! हस्तिनापुर ने योग्यता को तरजीह दी होती और सत्ता
की बिसात पर शकुनि के हाथों में पांसे ना होते तो महाभारत होता भला?
तुम्हारी हर पोस्ट में योग्यता, प्रतिभा और दक्षता के सवाल ऐसे उठाये जाते हैं, जैसे कोई बिगड़ैल बेटे को संस्कारित करने का अनुष्ठान हो!
सदियों से जब हस्तिनापुर धृतराष्ट्रों के पास रहा हो और दुर्योधनों- दु:शासनों की मर्जियों से कौरव-सभाएं चलती रही हो, तो तुम भीष्म, कर्ण, द्रोण बनकर भी क्या उखाड़ लोगे? यहां युधिष्ठिरों और अर्जुनोंं का राज्याभिषेक नहीं होता है!
चलन ही नहीं है!
ना तब था और ना इस निगोड़े लोकतंत्र में आज है! योग्यता को मारो गोली!
ये बिल्कुल आउटडेटेड है!
किसी सिरफिरे के राज में कभी रही होगी इसकी पूछ-परख?
यहां तो सालों से वंशवाद,पठ्ठावाद, भाई-भतीजावाद के ही बोलबाले हैं! सियासी पहलवानों के जयकारों और चारण-चापलूसी में जो श्रम और दक्षता लगती है वो खाली-पीली योग्यता में कहां है?
कुछ ना होते हुए ही अर्जित करना सबसे बड़ी योग्यता है भईये! देखो अपने माल्या, मेहुल और मोदी (नीरव) को! असल प्रतिभा तो इनमें थी!
तुम योग्यता से जिंदगी भर एक अदद नौकरी हासिल नहीं कर सकते! भाई लोग तिकड़म, फितरत और बाजीगरी से पूरी बैंक जीम गए , तुम्हारे निजाम को ठेंगा दिखाकर!
तुमको तो योग्यता का ‘मेनिया’ हो गया है!
मैं फिर कहता हूं कि कमबख्त काबिलियत में कुछ नहीं धरा है ! जिंदगी भर कुंठा का जहर पीते रहोगे! बस किसी ‘हुकम’ की चिलम भरते रहो/ कथित कर्णधारों की कुर्सी के पाएं पकड़े रहो/ सत्ता के बैगेरत वजीरों की ढपली बजाते रहो !
तुम वहां होंगे, जहां पच्चीसों काबिल तुम्हारी चाकरी में होंगे!
योग्यता की ऐसी-तैसी!
ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे पहुंच गए जैसे !
तुम भी पहुंचो वैसे!
भारतीय लोकतंत्र की जय!
सियासी पहलवानों की जय!!
ईस्ट इंडिया कंपनी की वसीयत पर पल रहे बाहुबलियों की जय!!!

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