महिला बाल विकास के सैकड़ों कर्मचारी कुपोषण के कगार पर

कुपोषण

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में कुपोषण की जंग में जीत का दायित्व निभा रहे सैकड़ों कर्मचारी अब खुद कुपोषण का शिकार होने पर मजबूर हो रहे हैं। इसकी वजह है उन्हें मिलने वाली वेतन। यह वेतन इतनी काम है कि यह कर्मचारी पोषण आहार लेने की जगह जैसे- तैसे पेट भर पाने को मजबूर बने हुए हैं।
यह हाल तब हैं जब प्रदेश में कुपोषण से निपटने में यह कर्मचारी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनके प्रयासों की वजह से ही प्रदेश कुपोषण के मामलों में की दर में तीस फीसदी की रिकार्ड कमी लाने में सफल रहा है। इसके बाद भी यह कर्मचारी आठ साल वाले पुराने वेतन पर काम करने को मजबूर बने हुए हैं। इसकी वजह से वे खुद के पोषण के लिए जरुरी खाद्य सामग्री तक नहीं खरीद पा रहे हैं। दरअसल इन्हें आठ साल पहले संविदा पर नियुक्ति द ी गई थी। इसकी वजह से उनका वेतन पहले से ही बेहद अल्प है। आठ सालों में महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है, जिसकी वजह से उन्हें मासिक खर्च चलाने में बेहद परेशानी का पहले से ही सामना करना पड़ता था, लेकिन अब तो उनके लिए और भी मुश्किल हो गई है। दरअसल उनकी वेतन वृद्धि का मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच उलझा हुआ है।
मध्यप्रदेश सरकार ने संविदा कर्मचारियों के लिए मार्च 2018 में एक आदेश जारी किया था। आदेश के मुताबिक संविदा में काम करने वाले कर्मचारियों को समकक्ष नियमित कर्मचारियों का 90 फीसदी वेतन दिया जाएगा। यानी अगर नियमित कर्मचारी को तीस हजार रुपए वेतन मिलता है, तो संविदा कर्मचारियों को 27 हजार रुपए वेतन प्रदान किया जाएगा। राज्य सरकार अगर अपने इसी आदेश का अनुपालन महिला बाल विकास विभाग के कर्मचारियों पर लागू कर दे, तो भी उनकी आर्थिक सेहत बेहतर हो सकती है। अपनी वेतन वृद्धि को लेकर जब इन कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से गुहार लगाई, तो उनका कहना था कि आप राज्य सरकार से बात करें। वह चाहे तो आप लोगों को नियमित कर सकती है। क्योंकि आप लोग राज्य के लिए काम करते हैं और राज्य के कर्मचारी माने जाते हैं। राज्य सरकार का कहना है कि हम तो सिर्फ 35 फीसदी वेतन देते हैं। यदि केंद्र सरकार वेतन में बढ़ोतरी करेगी, तो हम भी उसी अनुपात में कर देंगे। चूंकि आप लोगों की नियुक्तियां केंद्र की योजनाएं संचालित करने के लिए की गई है, इसलिए आपके बारे में फैसला करने का अधिकार भी केंद्र का है।
प्रदेश कुपोषण से निपटने में रहा अव्वल
मध्यप्रदेश बच्चों के कुपोषण के मामले में सबसे आगे था , लेकिन इस बार आंकड़ा बताता है कि राज्य में कुपोषण की दर में 29.3 फीसदी की कमी आई है। इस स्थिति की वजह से मध्यप्रदेश की रैंक भी सुधर कर तेरह क्रम ऊपर आ गई है। मध्यप्रदेश में कुपोषण की स्थिति में सुधार लाने वाले राज्य के संविदा कर्मचारी और अधिकारी हैं, जो अलग-अलग जिलों में 2013 से काम कर रहे हैं। इन सभी की नियुक्ति 2013 में आनलाइन टेस्ट के माध्यम से की गई थीं। इन्हें बाद में बाल संरक्षण अधिकारी, विधि अधिकारी, लेखापाल, कंप्यूटर आपरेटर, डाटा एनालिसिस अपरेटर और सामाजिक कार्यकर्ता के पदों पर नियुक्तियां दी गई थीं। इनकी संख्या करीब साढ़े छह सौ से ज्यादा है। इन कर्मचारियों को आठ से 14 हजार रुपए के बीच वेतन दिया जाता है। इसमें 65 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार और 35 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार देती है। बच्चों के कुपोषण दूर करने और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना से लेकर तमाम योजनाओं की जिम्मेदारी इन संविदा कर्मचारियों के कंधे पर है। केंद्र और राज्य सरकार ने नियमित कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी कर खुद इसे स्वीकार किया है। संविदा के पद पर पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों की दास्तान अलग है। उन्हें ना तो नियमित किया जा रहा है और ना उन्हें महंगाई भत्ता मिल रहा है। इसी वजह से उनके वेतन में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। लिहाजा महंगाई के इस दौर में उन्हें परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। दूसरों के बच्चों को कुपोषण दूर करने वाले खुद और अपना और अपने बच्चों को बेहतर पोषण आहार नहीं दे पा रहे हैं।

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