
- समय पर नहीं किया उठाव जिससे बने इस तरह के हालात
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। समय पर गोदामों से सरकारी गेंहू नहीं उठाए जाने से अब वो आदमी तो ठीक जानवरों के खाने लायक भी नहीं बचा है। इस गेंहू की मात्रा थोड़ी बहुत नहीं, बल्कि 10.64 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। दरअसल इसके पीछे की वजह है विभाग पर रसूखदारों का भारी पडऩा। जिन गोदामों में यह गेंहू रखा है , वह राजनैतिक और प्रशासनिक रुप से रसूखदार माने जाते हैं। यही वजह है कि मिलने वाले किराए के लालच में वे अफसरों पर दबाव डालकर अपने गोदामों को तय समय पर खाली नहीं होने देते हैं, जिससे गेंहू खराब हो जाता है। गोदाम मालिकों का रसूख इससे ही समझा जा सकता है कि, जहां एक और सैकड़ों की तादाद में गोदाम खाली पड़े हुए हैं, तो वहीं इन गोदामों से गेंहू तक का उठाव नहीं किया जा रहा है। अब मामला सार्वजनिक होने के बाद पूरे मामले में लीपापोती की तैयारी की जा रही है। इस मामले के तूल पकड़ने पर अफसर इसके लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ठीकरा हमेशा की तरह इस बार भी गोदाम प्रबंधकों पर फूटना तय है। नियमानुसार एक साल में गेहूं को 6 से 9 महीने तक की अवधि के लिए ही गोदामों में रखा जा सकता है। उसके बाद परिवहन करना होता है, ताकि राशन वितरण व्यवस्था में आपूर्ति कर सकें या गेहूं से आटा समेत अन्य सामग्री बनाई जा सके। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि किन्हीं कारणों से परिवहन में देर होती है तो अधिकतम 6 से 9 महीने तक फिर से गेहूं स्टॉक की अवधि बढ़ाई जा सकती है, लेकिन यह विषम परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। इसके विपरीत 2020-21 से गेहूं गोदामों में पड़ा हुआ खराब हो रहा है। यह बात अलग है कि इस मामले का खुलासा होने के बाद खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पूरे मामले की जांच कराने की बात कह चुके हैं और उनके द्वारा तीन दिन में पूरे मामले में विभाग की प्रमुख सचिव से जांच प्रतिवेदन मांगा था, लेकिन विभागीय स्तर पर इस मामले में समय निकलने के बाद भी कोई हलचल होती नहीं दिख रही है। खाद्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी बात करने से भागते हुए खरीदी एजेंसी नागरिक आपूर्ति निगम व जमा करने वाली नोडल एजेंसी वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन पर ठीकरा फोड़ रहे हैं, जबकि यह संस्थाएं खाद्य विभाग के तहत ही आती हैं।
किया जा रहा है किराये का खेल
दरअसल, गोदाम मालिकों को गेहूं का भंडारण के बदले 10 से 12 रुपए प्रति क्विंटल हर माह किराया मिलता है। गोदाम खाली न रहे और अच्छा किराया मिले, इसके लिए खरीदी के समय कुछ प्रभावशाली लोग आसपास की सहकारी समितियों में केंद्र बनवाते हैं। वहां का माल गोदामों में बिना जांचे- परखे जमा कराते हैं। जब मौसम खराब हो तो जांच टीम को पूरा माल खराब होने का हवाला देकर माल गोदामों के अंदर करा लेते हैं। गेहूं की जांच, खरीदी करने व गोदामों में जमा करने से पहले दो बार होती है। इसमें कलेक्टर द्वारा नामित सदस्य व अन्य पदाधिकारियों को होना चाहिए, लेकिन 75 फीसदी समितियों और गोदामों में यह काम ठेके के कर्मचारियों से कराया जाता है।