कैसे खत्म होगा सिकल सेल एनीमिया…?

सिकल सेल एनीमिया
  • केंद्र ने नहीं दी 24 करोड़ रुपए की राशि…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मुख्य रूप से आदिवासियों में पाई जाने वाली सिकल सेल एनीमिया बीमारी के उन्मूलन के लिए मप्र सहित देशभर में कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मप्र के राज्यपाल मंगुभाई पटेल लगातार आदिवासी क्षेत्रों में जाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं और सिकल सेल एनीमिया अभियान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
उनका कहना है कि 2047 तक सिकलसेल एनीमिया जैसी बीमारी को पूरी तरह से खत्म करना है। लेकिन यह बीमारी कैसे खत्म होगी, यह सवाल उठने लगा है, क्योंकि केंद्र सरकार से मप्र को सिकलसेल के लिए 24 करोड़ रुपए की राशि नहीं मिल सकी। गौरतलब है कि सिकलसेल एनीमिया कार्यक्रम में मप्र कई मामलों में देशभर के लिए आदर्श बना है। यहां किए गए प्रयोगों को दूसरे राज्य भी अपना चुके हैं, इनमें जेनेटिक काउंसलिंग कार्ड भी शामिल है। शादी के पहले लडक़ा और लडक़ी  का कार्ड मिलान कर यह पता किया जा सकता है कि संतान सिकल सेल एनीमिया से पीडि़त तो नहीं होगी। यहां बनाए गए पोर्टल का उपयोग भी अब पूरे देश में हो रहा है।
राज्यपाल जुटे अभियान में
मप्र के राज्यपाल मंगू भाई पटेल का कहना है कि देश में 2047 तक सिकलसेल एनीमिया जैसी बीमारी को पूरी तरह से खत्म करना है। इसके लिए प्रयास जारी हैं। ये बीमारी आदिवासी क्षेत्रों में अधिक है। इसके उन्मूलन के लिए प्रोजेक्ट चलाया गया है। बीमारी के उन्मूलन के लिए हर किसी को अपनी जिम्मेदारी निभाना होगी। राज्यपाल मंगू भाई पटेल मप्र के आदिवासी क्षेत्रों में सिकलसेल एनेमिया को लेकर प्रदेश में काफी काम कर रहे हैं।
इसके लिए उन्होंने राजभवन में एक सेल भी गठित किया है और वे लगातार इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार से मप्र को सिकलसेल के लिए 24 करोड़ रुपए की राशि नहीं मिल सकी। मप्र ने इस बीमारी को समाप्त करने के लिए बीते साल 16 करोड़ रुपए खर्च किए। लेकिन केंद्र से स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए मिलने वाले फंड का 864 करोड़ रुपए रोक लिया है।
अफसर केंद्र से फंड लाने में विफल
मप्र सरकार ने प्रदेश में हेल्थ सुविधाओं का विस्तार, अधोसंरचना निर्माण, खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम के लिए प्रयोगशाला का निर्माण, ड्रग्स रेगुलेटरी सिस्टम का सुदृढ़ीकरण, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, बहुउद्देशीय कार्यकर्ता योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एनआरएचएम, प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्क्कर मिशन तथा उप स्वास्थ्य केंद्र निर्माण के लिए 5 हजार 920 करोड़ रुपए का बजट में प्रावधान किया था। इसमें से राज्य सरकार द्वारा 2300 करोड़ की राशि खर्च की गई है, जबकि केंद्र सरकार से 3,614 करोड़ रुपए मिलना थे। इसके एवज में केंद्र ने मप्र को 2750 करोड़ रुपए ही जारी किए। यानि 864 करोड़ रुपए की राशि केंद्र ने उपयोगिकता प्रमाण पत्र नहीं मिलने के वजह से जारी नहीं की। वैसे मप्र सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में एसीएस, प्रमुख सचिव, आयुक्त और स्वास्थ्य संचालक सहित आधा दर्जन से ज्यादा आईएएस अफसरों की भरमार कर रखी है, लेकिन इसके बावजूद अफसर केंद्र से फंड लाने में विफल रहे हैं।

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