
- अफसरों की लालफीताशाही पड़ेगी सरकार की मंशा पर भारी …
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के 5 हजार सरकारी स्कूलों की हालत अत्यंत दयनीय हो चुकी है। जिनकी मरम्मत कराने के लिए शासन द्वारा राशि जारी कर दी गई। मरम्मत कराने के लिए हर विद्यालय को तीन-तीन लाख रुपए की राशि मुहैया कराई जाएगी। जिसके माध्यम से स्कूलों का कायाकल्प कराया जाएगा किंतु इसमें शर्त यह भी है कि यदि दिसम्बर तक 150 करोड़ रूपए की इस राशि का उपयोग नहीं किया गया तो यह राशि लैप्स हो जाएगी।
इनमें जिले के 126 विद्यालय भी शामिल हैं। पहली बार शाला प्रबंधन विकास समिति को यह कार्य दिया है। इससे पहले यह कार्य पीडब्ल्यूडी के माध्यम से किया जाता रहा है। सूत्रों का कहना है कि यह आदेश सितम्बर महीने में ही जारी हो गए थे, किन्तु सूची 20 सितम्बर को जारी की जानी थी, जिसमें दो दिन का विलंब हुआ और सूची 22 को जारी की गई। जिसके बाद 30 सितम्बर तक पूरी जानकारी विमर्श पोर्टल पर उपलब्ध करानी थी किन्तु यह 19 नवम्बर को डाली गई। निविदा द्वारा काम के आदेश जारी करने में भी विलंब हुआ 7 अक्टूबर की जगह 30 नवम्बर को आदेश जारी किए गए। जिससे विद्यालयों के पास मरम्मत कराने के लिए एक माह से भी कम का समय शेष बचा है। यदि यह कार्य दिसम्बर माह में नहीं हुआ तो भुगतान का भार शाला प्रबंधन विकास समिति अध्यक्ष यानी प्राचार्य पर होगा। लोक शिक्षण संचालनालय के सहायक संचालक पीके सिंह का कहना है कि प्रदेशभर में 5 हजार स्कूलों में दिसंबर में ही मरम्मत कार्य होना है। इसके लिए प्रत्येक स्कूल को 3 लाख रुपए दिए जाएंगे। कार्य की पूरी तरह मॉनिटरिंग होगी। गुणवत्ता की जांच के बाद ही भुगतान होगा।
अभी यह प्रक्रिया बाकी: बताया गया है कि स्कूलों के मरम्मत संबंधी आदेश जहां पहले ही देरी से जारी किए गए तो वहीं अभी मरम्मत कार्य प्रारंभ करने से इन इन प्रक्रियाओं को भी पूरा करना होगा, तभी काम प्रारंभ हो जाएगा। प्राचार्यों को निविदा खोलने एवं तुलना पत्रक तैयार करना है। उपयोग में ली गई सामग्री एवं मजदूरी के बिल कोषालय में प्रस्तुत करने होंगे, संबंधित फर्मों को भुगतान होगा। ऐसी स्थिति में किए जाने वाले कार्यों के विवरण के आधार पर विभिन्न आयटमवार दरें प्राप्त करना होगी। न्यूनतम दरों के आधार पर ही कार्यालय देश जारी किया जा सकता है। एसओआर के आधार पर दर फाइनल करने से पहले मूल्यांकन की माप पुस्तिका जो नियुक्त इंजीनियर संधारित करता है जिनके बाद ही कार्य करने के निर्देश जारी हो सकेंगे।
स्कूलों में यह कराए जाने हैं कार्य
स्कूलों की मरम्मत के लिए जो राशि जारी की गई है, उसमें विद्यालयों के छत मरम्मत, सीलिंग मरम्मत, शौचालय मरम्मत, रनिंग वाटर व्यवस्था के कार्य कराए जाने हैं। इसके साथ ही फ्लोरिंग, ग्रीन बोर्ड की मरम्मत, टूटे-फूटे खिड़की-दरवाजों की मरम्मत, बाउंड्रीवॉल में सुधार, लैंड स्कैपिंग, बिजली आदि के कार्य कराए जाने हैं। जल्दबाजी में कराए जाने वाले काम से गुणवत्ता पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है किंतु जिम्मेदार अधिकारी गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त हैं। उनका कहना है कि हर स्टेज पर निगरानी की जाएगी। पूर्व में विद्यालयों का मरम्मत कार्य पीडब्ल्यूडी के माध्यम से कराया जाता था किन्तु पहली बार शाला प्रबंधन विकास समिति को उक्त कार्य का जिम्मा सौंपा गया है। इस संबंध सहायक संचालक लोक शिक्षण पीके सिंह के मुताबिक प्रदेश भर में 5 हजार स्कूलों का मरम्मत कार्य कराया जाना है। इसके लिए प्रत्येक स्कूल को 3 लाख रुपए दिए जाएंगे। कार्य को दिसम्बर माह में ही पूर्ण करना है। गुणवत्ता की जांच के बाद भी भुगतान किया जाएगा।
कई तरह की समस्या
पहले तो आदेश देरी से जारी हुए अब प्राचार्यों को निविदा खोलने एवं तुलना पत्रक तैयार करना है। उपयोग में ली गईं सामग्री एवं मजदूरी के बिल कोषालय में प्रस्तुत करने होंगे, संबंधित फर्मों को भुगतान होगा, ऐसी स्थिति में किए जाने वाले कार्यों के विवरण के आधार पर विभिन्न आयटम वार दरें प्राप्त करना होंगी। न्यूनतम दरों के आधार पर का आदेश दिया जा सकता है। इसके बाद एसओआर के आधार पर दर फाइनल करने के पहले मूल्यांकन की माप पुस्तिका जो नियुक्त इंजीनियर संधारित करता है, इसके आधार पर कार्य करने के निर्देश दिए जाएंगे। यह सभी कार्य तकनीकि है। ये सब काम करने के बाद ही निर्माण शुरू हो पाएगा। सामान्य मरम्मत के लिए 335 रुपए प्रति वर्ग मीटर के मान से राशि जारी होगी। इस हिसाब से एक हजार वर्ग मीटर में 3 लाख जारी किए जाएंगे। प्रदेशभर में 5000 विद्यालयों के हिसाब से एक अरब 50 करोड़ मरम्मत पर खर्च किए जाएंगे। कार्य के बाद इसकी फोटो पोर्टल पर अपलोड करना होगी। जिन स्कूलों में ज्यादा काम है, उनको अगले बजट में राशि जारी की जाएगी। छमाही परीक्षा 12 दिसंबर से शुरू होगी, इससे स्कूल का स्टाफ पेपर में व्यस्त रहेगा। इसके बाद शीतकालीन अवकाश शुरू होगा ऐसे में कार्य पूरा होने और मॉनिटरिंग में संशय है।