गुटबाजी से कैसे पार पाएगी भाजपा?

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– 6 महीने में 40 नेताओं ने छोड़ी भाजपा, थामा कांग्रेस का हाथ

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के इतिहास में पहली बार यह देखने को मिल रहा है कि भाजपा में गुटबाजी चरम पर है। स्थिति यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रदेश भाजपा में गुटबाजी और असंतोष को खत्म करने के लिए मोर्चा भी संभाला, लेकिन उसके बाद भी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रदेश भाजपा में गुटबाजी और असंतोष का आकंलन इसी से किया जा सकता है कि , बड़ी संख्या में भाजपा नेता कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं। सब एक ही बात पर कह रहे हैं कि उन्होंने भाजपा में हो रही उपेक्षा के कारण अपनी निष्ठा बदली है। गौरतलब है कि दल-बदल की स्थिती दोनों ही पार्टियों में है। कांग्रेस के नेता भी पार्टी छोडक़र भाजपा में आ रहे हैं। लेकिन उनमें कोई बड़ा नेता या कोई पूर्व विधायक, सांसद नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेताओं का लगातार पार्टी से होता मोहभंग सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसा कोई हफ्ता नहीं जा रहा है,जब भाजपा से कोई नेता कांग्रेस में नहीं जा रहा हो। ऐसे नेताओं की संख्या 40 के पार पहुंच गई है, जो आगामी चुनाव में भाजपा के लिए अच्छे संकेत तो नहीं है।  गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा में गुटबाजी और असंतोष की खबर मिलते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया था। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी गई की वे असंतुष्ट नेताओं से चर्चा कर उन्हें मनाए। यही नहीं शाह ने प्रदेश भाजपा के नेताओं को नसीहत दी थी कि आप सभी एकजुट रहो और यह कार्यकर्ताओं को दिखाई भी देना चाहिए। इसके बावजूद पार्टी ने जिन क्षेत्रीय नेताओं को जन आशीर्वाद यात्रा में कमान सौंपी थी, प्रदेश संगठन ने उन्हें बुलाया ही नहीं। केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के हस्तक्षेप के बाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और अन्य ऐसे कई नेताओं को यात्रा की बागडोर सौंपी गई।
अमित शाह के थे सख्त निर्देश
गुटबाजी और असंतोष की यह स्थिति तब है जब अमित शाह ने नेताओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि अब किसी भी प्रकार की गुटबाजी बर्दास्त नहीं होगी। गौतलब है कि पिछले दो महीने से अमित शाह ने मप्र के प्रवास बढ़ा दिए हैं। स्थानीय नेताओं को उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि, चुनाव केंद्रीय नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उन्होंने प्रदेश के सत्ता-संगठन से जुड़े नेताओं को स्पष्ट कर दिया था कि वे अपने गिले-शिकवे भुलाकर सामंजस्य और समन्वय बनाकर चुनावी तैयारी में जुट जाएं। शाह का आशय स्पष्ट था कि गुटबाजी की अब गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। इसके बाद सभी नेताओं को समान महत्व देने के उद्देश्य से ही पार्टी ने एक जन आशीर्वाद यात्रा निकालने के बजाय प्रदेश के पांच स्थानों से अलग-अलग यात्राएं निकालीं। उच्च स्तरीय बैठक में सभी पांच यात्राओं में पहले चरण में प्रदेश के सभी बड़े नेताओं की ड्यूटी लगाई गई थी।
जन आशीर्वाद यात्रा में दिख रहा असंतोष
मप्र भाजपा में वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद भले ही ऊपरी तौर पर सब कुछ सामान्य दिख रहा है, लेकिन जन आशीर्वाद यात्रा में नेताओं का असंतोष और गुटबाजी देखने को मिल रही है। जन आशीर्वाद यात्रा के बैकड्राप में लगी नेताओं की फोटो के मामले में भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से शिकायत की गई है कि उसमें वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा गया है। इसी तरह मंत्री गोपाल भार्गव को चुनाव की किसी भी समिति में स्थान नहीं देने का मामला भी केंद्रीय नेतृत्व के संज्ञान में लाया गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व जबलपुर से सांसद राकेश सिंह का नाम केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तय किए जाने के बाद भी महाकोशल से निकलने वाली यात्रा में उन्हें स्थान नहीं दिया गया। उनका नाम जोडऩेे के लिए भूपेंद्र यादव को दखल देना पड़ा। इसी तरह मंत्री गोपाल भार्गव का नाम भी चुनाव से संबंधित किसी भी समिति में शामिल नहीं किया गया जबकि, उनसे कनिष्ठ मंत्रियों को एक से ज्यादा जिम्मेदारी दी गई है। नाराजगी के चलते गोपाल भार्गव ने स्वयं को अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित कर लिया है। यात्रा के बैकड्राप से भी गोपाल भार्गव और राकेश सिंह के चेहरे गायब हैं जबकि, महिला होने के नाते राज्यसभा सदस्य कविता पाटीदार को उसमें स्थान दिया गया है। पाटीदार के चेहरे पर भी नेताओं को आपत्ति है, दबी जुबान में वे कह रहे हैं कि ओबीसी से कृष्णा गौर से लेकर सांसद रीति पाठक और एससी वर्ग से संध्या राय का अधिकार वरिष्ठता के चलते बनता था।

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