कैसे टीबी से मिले मुक्ति, जब दवा ही नहीं है

  •  बच्चों की दवाओं से चलाया जा रहा काम

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही केन्द्र सरकार ने अगले साल यानि की 2025 में देश को पूरी तरह से टीबी मुक्त घोषित करने का लक्ष्य तय किया हुआ है,  लेकिन मप्र में इस मामले में हालात अलग हैं। प्रदेश में बीते कई माह से इस रोग की दवाएं ही मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं। ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि मरीज ठीक हों तो कैसे। इस मामले में जिम्मेदारों को भी टीबी मरीजों की कोई ङ्क्षचता नही है। ऐसे में मरीजों को बगैर पूरा इलाज कराए ही घर लौटना पड़ रहा है।  अहम बात यह है कि ईदगाह हिल्स स्थित स्टेट टीबी अस्पताल तक में मरीजों को दवाए नहीं मिल पा रही है।
बीते तीन महीने से भोपाल सहित पूरे मप्र में टीबी की दवाइयों का टोटा बना हुआ है। यही कारण है कि टीबी मरीजों की मृत्यु में भी इजाफा देखा जा रहा है। भोपाल के रीजनल रेस्पिरेटरी सेंटर (स्टेट टीबी अस्पताल) में बीते साल 240 मरीजों की मौत हुई थी। 2023 में जनवरी से अप्रैल तक 70 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन इस बार 85 मरीजों की मौत हो चुकी है। इस तरह देखा जाए तो बीते साल के मुकाबले मृत्युदर में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई है। मई माह में मौत का आंकड़ा 15 से 20 के आसपास बताया जा रहा है। स्टेट टीबी अस्पताल से अब मरीज खुद ही डिस्चार्ज लेकर घर जाने लगे हैं। कारण है, बढ़ती गर्मी और दवाओं की कमी।
70 हजार टीबी मरीजों की जान पर खतरा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों के दबाव के बाद कंपनियों ने दवाएं बनाना फिर से शुरू की है, पर यह जरूरत का 10 प्रतिशत भी नहीं है। नतीजतन प्रदेश के लगभग 70 हजार टीबी रोगियों पर इसकी दवाओं का असर कम होने (ड्रग रजिस्टेंट होने) का खतरा बढ़ गया है। डब्ल्यूएचओ ने तपेदिक (टीबी) को दुनिया के सबसे घातक संक्रामक रोगों में रखा है। एक आंकड़े के मुताबिक साल 2021 में टीबी से कुल 16 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई, दुनिया भर में टीबी रोग मौत का 13वां प्रमुख्य कारण है। टीबी दवाओं की कमी के चलते सामान्य रोगियों के अतिरिक्त एचआईवी एवं एड्स रोगियों और गैस पीड़तों की बीमारी बढऩे का खतरा बढ़ गया है। एड्स के लगभग 25 प्रतिशत रोगी प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से टीबी से भी संक्रमित हो जाते हैं। शुरु के छह माह तक लगातार यह दवाएं चलती हैं। इसमें एक दिन का भी अंतर होने पर मरीज की बीमारी एमडीआर में बदलने का खतरा हमेशा बना रहता है। एमडीआर टीबी को ठीक करने के लिए फिर उसे लंबे समय तक सात दवाओं के मिश्रण वाली दवा दी जाती है।
इन दवाओं के भरोसे  इलाज
टीबी के मरीजों को चार दवाओं की निश्चित खुराक दी जाती है, इसमें आइसोनियाजिड , रिफैम्पिसिन , एथमबुटोल और  पाइराजनिामाइड निश्चित खुराक कॉम्बिनेशन के रूप में होती है। भोपाल सहित प्रदेश में में यह दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, यही कारण है कि टीबी के मरीजों को पीडियाट्रिक यानी बच्चों के एफडीसी चार दिया जा रहा है।
तीन माह से दवाओं की आपूर्ति बंद
जानकारी अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल निधी डिवीजन से टीबी की दवाओं की आपूर्ति पिछले तीन माह से नहीं हो रही है। बताया जा रहा है कि यह दवाएं मात्र तीन कांपनियां ही बनाती हैं, पर उनके पास दवाएं बनाने का पाउडर उपलब्ध नहीं होने के कारण दवाएं नहीं बन पा रही हैं। पिछले साल सितंबर से ही दवाओं की कमी हो रही थी, पर इस वर्ष फरवरी से पुराना स्टॉक खत्म होने के कारण मध्य प्रदेश सहित देशभर में किल्लत और बढ़ गई है।
इस तरह के हालात
आसिफ खान की पत्नी भी टीबी की मरीज हैं। आसिफ बताते हैं कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में इलाज चल रहा था। सर्जरी भी हुई है। छह महीने से तो दवा मिल रही थी, लेकिन पिछले 15 दिनों से रोज कहते हैं कि दवा नहीं है।  अगर दवाई नहीं मिली तो छह महीने पहले जो शिकायत थी, वह एक बार फिर शुरू हो जाएगी। इसी तरह का मामला शाहिद खान का भी है। उनकी दोनों बेटियों को टीबी है। उन्हें दवा नहीं मिल रही है और 10 दिनों से वो दवा की तलाश में यहां से वहां भटक रहे हैं।

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