
- वीरेंद्र नानावटी
लोकतंत्र : सवाल-दर-सवाल/ भाग-1
क्या आप भी मानते हैं कि हमारा संसदीय लोकतंत्र, राष्ट्रीय लोकमुद्दों को मूर्त रुप देने में नितांत निष्प्रयोज्य और नाकारा साबित हुआ है… वो सिर्फ एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक सत्ता हथियाने और जातियों, वर्गों, मजहबों के खेमों की किलेबंदी का औजार बन कर रह गया है… यदि कोई सत्ता सम्राट (प्रधानमंत्री या कोई निजाम) चाहे तो भी सियासी समीकरणों के चलते अपनी या दलीय इच्छा शक्ति को जमीनी हकीकत नहीं दे सकता है….!
सालों से लोकतंत्र के जश्न का उत्सव हमारी मातमपुरसी में क्यों बदल जाता है और दुनियाभर में लोकतंत्र की अनगिनत खूबियां जानने के बाद भी हमें हमारा संसदीय लोकतंत्र बीमार, बेजार, निष्प्राण और निठल्लों की जमात का बायस क्यों लगने लगता है..ये हीनग्रंथि मुल्क को हमेशा क्यों बैचेन करती है कि नाकाबिल और नाशुक्रों की एक बड़ी फौज ने सत्ता के सारे दरवाजे हथिया लिए हैं… लेकिन काबिलों का हुनर सिर्फ सफेदपोश स्वर्ग की एक कुर्सी पाने या सियासी पंडों के तमाशाई करतबों और पाखंडी प्रवचनों पर तालियाँ बजाने की रह गई है..! इसी संसदीय लोकतंत्र में कैसे-कैसे कालिख पुते चेहरों ने सत्ता के अपने-अपने केन्द्र स्थापित कर लिए हैं…आप भी जानते हैं कि जो प्रायमरी स्कूल के शिक्षक बनने के योग्य भी नहीं है..
इसी संसदीय लोकतंत्र के चलते 72 सालों में हम वित्तीय संस्थाओं, बैकों, सरकारी महकमों की करोड़ों की लूट के सिरमौर बने हुए हैं….दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में..
जनसंख्या नियंत्रण कानून… सिर्फ गोष्ठियों और परिसंवादों या स्कूली बच्चों के निबंध का शगल बन कर रह गया है…
समान नागरिक संहिता, जैसे मुद्दों पर संसदीय लोकतंत्र बेचारा और बेबस है..वो सिर्फ सुलगता जरूर है ,लेकिन भ्रम का धुआं भर देता है…
योग्यता की ऐसी-तैसी/चाहे जैसे भी, कैसे भी सत्ता की सीढ़ियों पर काबिज होने का तिलस्म..चेहरे वही है..तुम्हें घीन आती है…तो ये तुम्हारी समस्या है..लोकतंत्र महान है…इसके घोड़े अस्तबल तोड़ने को आतुर है…बस घोड़ों की नीलामी में कीमत किसकी ओर से ज्यादा है…टेन्डर खोल दीजिये …..लोकतंत्र को खुद उसकी औकात और हैसियत समझ में आ जायेगी..
अनगिनत खौ़लते सवाल हैं… दुश्वारियों के दहाने हैं.. नाकाबिलों के नखरे हैं..!
लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि लोकतंत्र की वचनबद्धता में ही संसदीय लोकतंत्र का रंग-रुप बदलने का हौंसला कहाँ से आयेगा..
शायद कोई रहनुमा..कोई फरिश्ता..जैसा कि हमारी किवदंतियों में शुमार है!!
लेखक- वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।