नए साल में ‘भ्रष्टों’ की कुंडली होगी सार्वजनिक

ब्यूरोक्रेट्स
  • ब्यूरोक्रेट्स की कमाई का आकलन करेगा डीओपीटी
  • मप्र के 104 आईएएस, 82 आईपीएस और 18 आईएफएस संदेह के दायरे में

केंद्र सरकार ने मप्र सहित अन्य राज्यों को अपने कैडर के ब्यूरोक्रेड्स की सेवाओं का 15:25:50 के फॉर्मूले पर आंकलन करने और इसकी रिपोर्ट कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को भेजने का निर्देश दिया है। साथ ही डीओपीटी ने ब्यूरोक्रेड्स की कमाई का आंकलन भी शुरू कर दिया है। इसके पीछे असली वजह यह है कि केंद्र सरकार भ्रष्ट, नाकारा और कामचोर अफसरों को सेवामुक्त करना चाहती है। नए साल के दूसरे या तीसरे महीने में भ्रष्टों की कुंडली सार्वजनिक करने की तैयारी की जा रही है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
गौरतलब है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले नौकरशाही की कार्यप्रणाली को बदलने की कवायद शुरू की थी। इन 7 साल के दौरान दर्जनभर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है। एक बार फिर से बड़े स्तर पर अफसरों की सेवाओं और संपत्तियों का आंकलन करने की तैयारी चल रही है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार अनुपातहीन संपत्ति के मामले में मप्र के 104 आईएएस, 82 आईपीएस और 18 आईएफएस कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के संदेह के दायरे में हैं। इसलिए डीओपीटी ने नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर नजर रखनी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि मप्र के कई ब्यूरोक्रेड्स के साथ ही देश के अन्य राज्यों के सैकड़ों ब्यूरोक्रेड्स भ्रष्टाचार की जद में हैं। प्रदेश में कई आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में मामले दर्ज हैं। अब इन अफसरों के साथ ही अन्य कई अफसरों की सेवाओं और संपत्ति का आंकलन किया जा रहा है। डीओपीटी जहां अपने स्तर पर आंकलन करा रहा है, वहीं प्रदेश सरकार से भी रिपोर्ट मांगी है।

कमाई पर पैनी नजर
नौकरशाहों सहित सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की संपत्ति पर सरकार की पैनी नजर है। कौन सा अधिकारी कहां से प्रॉपर्टी खरीद रहा है, उसके लिए पैसे कहां से जुटाए हैं, इसकी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। डीओपीटी ने जहां राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि वे अधिकारियों-कर्मचारियों से अपनी प्रोपर्टी की जानकारी अपने विभाग को देने के लिए कहें। वहीं अपने स्तर से भी जानकारी जुटा रहा है। गौरतलब है कि अधिकारी-कर्मचारी को अपने विभाग में अपनी अचल संपत्ति की जानकारी देने का प्रावधान है, लेकिन कई विभागों में देखने को मिल रहा है कि कर्मचारी यह सूचना देने से बच रहे हैं। वे न तो लेनदेन करने से पहले और न ही उसके बाद अपने विभाग को कुछ बताते हैं। जो कर्मचारी लेनदेन की पूर्व सूचना देते हैं, वह आधी-अधूरी होती है। केंद्र सरकार अब सभी विभागों में इस बात को लेकर सख्ती बरत रही है। सभी अधिकारी-कर्मचारी सीसीएस (कंडक्ट) रुल्स 1964 के अनुसार उक्त जानकारी देना सुनिश्चित करें। आचरण नियमों का उल्लंघन करने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की जा सकती है।
कार्यालय रक्षा लेखा प्रधान नियंत्रक द्वारा 25 नवंबर को इसे लेकर एक पत्र जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों को चल-अचल संपत्ति से संबंधित लेन-देन की सूचना अपने कार्यालय में देनी होगी। यह सूचना देना एवं उसकी पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य है। इस संदर्भ में मुख्य कार्यालय द्वारा जब जांच पड़ताल की गई, तो पाया गया कि सभी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा नियमों का ठीक से पालन नहीं किया जा रहा। कई मामलों में लेनदेन के पूर्व में न कोई सूचना दी जाती है, और न उसके लिए विभाग की मंजूरी ली जाती है, जो सूचना मिलती है, उसमें कई खामियां व त्रुटियां पाई जाती हैं। इससे अनावश्यक पत्र-व्यवहार को बढ़ावा मिलता है। विभागों से कहा गया है कि लेनदेन से संबंधित जो फार्म संख्या-1 और 2 जारी किए गए हैं, उन्हें ठीक तरह से भरकर विभाग के पास जमा कराया जाए। वे फार्म निर्धारित प्रारूप में होने चाहिए। इनमें अचल संपत्ति व चल संपत्ति के लिए अलग-अलग फार्म हैं। भूखंड, फ्लैट आदि की बुकिंग करना भी लेनदेन माना जाता है, इसलिए यह जानकारी भी विभाग को देनी होगी। चल संपत्ति के संबंध में ट्रांजेक्शन पूर्ण होने की तिथि के एक माह के भीतर ही अधिकारी, कर्मचारी द्वारा उसकी सूचना दी जानी है। अगर ऐसा ट्रांजेक्शन किसी आधिकारिक संबंध रखने वाले व्यक्ति से हो रहा है, तब उसकी कार्यालय में पूर्व सूचना देना, मंजूरी लेना अनिवार्य है।

धनराशि के स्रोत का स्पष्ट ब्यौरा देना जरूरी
अधिकारी-कर्मचारी के लिए ट्रांजेक्शन में लगने वाली धनराशि के स्रोत का स्पष्ट ब्यौरा देना जरूरी है। धन स्रोतों के समर्थन में कई तरह के दस्तावेजों को प्रस्तुत किया जा सकता है। इनमें बैंक ऋण की फोटो कॉपी, जिसमें लोन की राशि एवं उसे वापस चुकाने के निबंधन स्पष्टतया प्रकाशित हों। रिश्तेदार से ऋण के संबंध में अलग प्रावधान किया गया है। रिश्तेदार द्वारा लोन के संबंध में प्राप्त सहमति पत्र, जिसमें यह स्पष्ट हो कि ऋण ब्याज सहित है या ब्याज मुक्त है। उसमें ऋण को चुकाने के निबन्धन एवं रिश्तेदार (जिस से ऋण लिया गया है) की कमाई का स्रोत भी स्पष्ट होना चाहिए। जीवन साथी के परिवार के सदस्यों के योगदान को लेकर कई सूचनाएं देनी होंगी। जैसे रोजगार का स्रोत आदि। स्रोत से जुड़े दस्तावेज जमा कराने होंगे।
किसी भी स्थिति में गृह निर्माण के लिए दूसरी बार पैसा निकालना सही नहीं है। इसी क्रम में आवेदक (कर्मचारी-अधिकारी) द्वारा एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, जिसमें धन का एक स्रोत दर्शाया गया हो। यह भी स्पष्ट किया गया हो कि उन्होंने पूर्व में कभी भी मकान-निर्माण (प्लॉट या बने-बनाए फ्लैट की खरीद आदि) के लिए जीपीएफ से पैसा नहीं निकलवाया है। आवेदक के द्वारा प्रमाण पत्र में दिये गए कथन को संबंधित अधिकारी द्वारा उनके रिकॉर्ड जांच के उपरांत ही सत्यापित कर अनुमोदित करना है। यह बिंदु अधिकारियों द्वारा किसी भी आवेदन को अग्रसारित करते समय ध्यान में रखा जाना है। यदि किसी अधिकारी-कर्मचारी के जीवन साथी या घर के किसी अन्य सदस्य द्वारा उनकी निजी राशि (जिसमें स्त्रीधन, उपहार, विरासत आदि शामिल हैं) में से कोई लेनदेन किया जाता है जिसपर खुद अधिकारी-कर्मचारी का कोई अधिकार न हो और न ही जो अधिकारी-कर्मचारी की निधि से किया गया हो, तो ऐसे लेनदेन की सूचना देने की जरुरत नहीं है। अगर कोई अधिकारी-कर्मचारी अपनी किसी अचल या चल संपत्ति (जो कि निर्धारित मौद्रिक सीमा से अधिक हो) को अपने घर के किसी अन्य सदस्य के नाम पर स्थानांतरित करता है, तो उनके द्वारा रूल 18 (2) & (3) के प्रावधानों के अनुसार सक्षम अधिकारी को ऐसे लेनदेन की सूचना देना या उनसे इसकी पूर्व में मंजूरी लेना अनिवार्य है।

काली कमाई पैतृक गांवों में निवेश
मप्र के 104 आईएएस, 82 आईपीएस और 18 आईएफएस अफसरों सहित देशभर के 2200 अधिकारी एक बार फिर पीएमओ और डीओपीटी के निशाने पर हैं। सूत्रों के अनुसार जांच एजेंसियों से बचने के लिए धन कुबेर नौकरशाहों के पैतृक गांवों में करोड़ों रूपए के निवेश के संकेत मिले हैं। पीएमओ के एक अधिकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से सभी राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों में काम कर रहे अफसरों के कामकाज की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा है। पीएमओ ने सीबीआई से ऐसे अफसरों को रडार पर लेने को कहा है जिनके कामकाज का प्रदर्शन संतोषप्रद न होने के साथ संदिग्ध भी नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामलों में सीबीआई व आयकर विभाग की चपेट में आए मप्र के आला अफसरों की लंबी फेहरिश्त है। कई अफसरों के खिलाफ तो केन्द्र एवं राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के अलावा प्रवर्तन निदेशालय में भी छानबीन चल रही है। वहीं आयकर विभाग अरबों रुपए की काली कमाई पर टैक्स वसूली की कार्रवाई कर रहा है। प्रदेश के अनेक अफसर ऐसे भी हैं जिन पर केन्द्र और राज्य की जांच एजेंसियों की नजर बनी हुई है, ये वे अफसर हैं जिन्होंने आय से अधिक संपत्ति जोड़ ली है। साथ ही वे लगातार ऐसी पोस्टिंग पर रहे हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में मलाईदार पोस्टिंग कहा जाता है। मप्र कैडर के ऐसे 160 आईएएस केंद्र सरकार के निशाने पर थे, लेकिन करीब आधा सैकड़ा अफसरों को क्लीन चिट दे दी गई है। अभी भी 104 आईएएस पीएमओ और डीओपीटी के निशाने पर है। डीओपीटी विभिन्न स्रोतों से इनकी आय और नामी-बेनामी संपत्ति की जानकारी जुटा रहा है। अगर आयकर विभाग के सूत्रों की माने तो पिछले एक दशक में प्रदेश के नौकरशाहों ने ही करीब 27,000 करोड़ रुपए की काली कमाई को निवेश किया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक में आईएएस अफसरों सहित कई अन्य सरकारी मुलाजिमों के ठिकानों पर आयकर विभाग के छापों में अब तक करीब 945 करोड़ की बेनामी संपत्ति का पता चला है, जबकि कई हजार करोड़ की संपति आज भी जांच एजेंसियों के राडार से बाहर है। प्रशासनिक पारदर्शिता और नियम कायदों से कामकाज का ढोल पीटने वाली सरकार की नाक के नीचे नौकरशाह किस तरह सरकारी योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं, ये छापे इसका खुलासा कर रहे हैं। आयकर विभाग, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू को मिली शिकायतों के अनुसार प्रदेश में पिछले एक दशक में जितने संस्थान तेजी से खुले या बढ़े हैं, उनमें नौकरशाहों की अवैध कमाई लगी हुई है।

जांच के दायरे में मप्र के नौकरशाह
आयकर विभाग के शिकंजे में अब तक प्रदेश के अनेक आला अफसर आ चुके हैं। विभाग का अनुमान है कि इनके पास अरबों रुपए की संपत्ति पाई गई जो कि आय से कई गुना अधिक है। भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी कर्मचारी और अधिकारी काली कमाई छिपाने में माहिर हैं। भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) भी इस कमाई को उजागर करने में खास कामयाब नहीं हो पाई। यही कारण है कि रंगे हाथ रिश्वत लेने व पद के दुरुपयोग के कई मामले दर्ज करने वाली सीबीआई अधिक सम्पत्ति के मामले तलाशने में कमजोर रही। एक वर्ष में ऐसे दो दर्जन मामले ही सामने आ सके हैं। इसके विपरीत जगजाहिर है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में किस कदर छाया हुआ है। आय से अधिक स पत्ति का मामला दर्ज करने से पहले एसीबी स बंधित अधिकारी की सम्पत्ति की जानकारी जुटाती है। यह भी जुटाया जाता है कि सम्पत्ति कब और किसके नाम से खरीदी गई। इसके बाद उसके वेतन से तुलना की जाती है। एसीबी में वर्ष 2014 में दर्ज 460 मामलों में से इनकी संख्या 26 ही रही। इसके विपरीत रंगे हाथ रिश्वत लेने के मामलों की संख्या बहुत अधिक है। 12 माह में 40 सरकारी विभागों के 262 लोगों को रंगे हाथ पकड़ा गया। इनमें 56 राजपत्रित अधिकारी तो 206 अराजपत्रित अधिकारी शामिल हैं। इसी तरह पद के दुरूपयोग के 26 विभागों के 172 कर्मचारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। मप्र में भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों के ठिकानों पर आयकर और लोकायुक्त के छापे के बाद काली कमाई का सबसे ज्यादा निवेश रियल एस्टेट में मिला है। जांच एजेंसियों के अफसरों के मुताबिक इन अफसरों ने मकान, प्लॉट, खेती की जमीन और कॉलोनियों में सबसे ज्यादा निवेश किया है। खास बात यह है कि छापे से बचने के लिए अधिकांश ने शहरों से दूर गांवों में करोड़ों का निवेश किया है। उन्होंने निवेश या तो अपने पैतृक गांव में किया है या फिर लंबे समय से जिस जिले में पदस्थ हैं उन स्थानों में। चौंकाने वाला खुलासा यह है कि कई अफसरों ने बेनामी संपत्ति खरीदी और बाद में उसे दान में ले लिया। ऐसा करके अफसरों ने न सिर्फ राजस्व का नुकसान किया, बल्कि अपनी काली कमाई को भी आसानी से छुपाने का प्रयास किया। जांच एजेंसियों से मिली जानकारी के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों ने घरों में नकद पैसे रखने की बजाए अलग-अलग सेक्टर में निवेश किया है। इसमें कई अफसरों ने शेयर बाजार, गाडिय़ों की एजेंसी और होटल में भी पैसा लगाए हैं। लोकायुक्त ने प्रदेश में जिन छोटे-बड़े अफसरों के यहां छापामार कार्रवाई की है उनके यहां मिले दस्तावेजों से भी यह खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि छोटे अधिकारियों और खासतौर पर तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मियों के पास से करोड़ों की संपत्ति मिल रही है। कई अधिकारियों ने जमीन के साथ कॉलेज और होटल व्यवसाय में भी निवेश किया है।

आईपीएस पास… अब आईएएस और आईएफएस की बारी
डीओपीटी से मिले निर्देश के बाद मप्र में विगत दिनों 15:25:50 फॉर्मूले पर 150 आइपीएस अधिकारियों की सेवाओं का आंकलन किया गया और सबको पास कर दिया गया। अब आईएएस और आईएफएस अधिकारियों की सेवाओं का आकलन छानबीन समिति करेगी। इसके लिए मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता में बैठक जनवरी 2022 में होगी। इसमें दिसंबर तक 15 या 25 साल की सेवा और 50 वर्ष की आयु पूरी करने वाले अधिकारियों का शामिल किया जाएगा। प्रदेश सरकार प्रतिवर्ष 15 एवं 25 साल की सेवा और 50 साल की आयु पूरी करने वाले अधिकारियों की सेवाओं का समग्र आकलन करके प्रतिवेदन केंद्र सरकार को भेजती है। आईपीएस अधिकारियों की सेवा का आकलन 26 नवंबर को मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता में छानबीन समिति द्वारा किया गया था। 150 अधिकारियों के सेवा अभिलेखों का परीक्षण किया गया पर कोई भी अधिकारी ऐसा नहीं पाया गया कि उसके नाम की अनुशंसा अनिवार्य सेवानिवृति के लिए केंद्र सरकार से की जाए। अब आईएएस अधिकारियों की सेवाओं का आकलन सर्विस रिकार्ड के आधार पर किया जाएगा। इसमें उनकी गोपनीय चरित्रावली (सीआर) और स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट के आधार पर आकलन करके प्रतिवेदन तैयार किया जाएगा। यदि किसी अधिकारी की सीआर खराब है और गंभीर टिप्पणियां की गई हैं तो फिर उसके नाम पर अलग से विचार होगा। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सेवा के अधिकारियों की सेवाओं का आकलन करने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। इसमें 20 साल की सेवा और 50 साल की आयु पूरी करने वाले अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि ऐसा एक भी अधिकारी सेवा में नहीं रहना चाहिए जो अयोग्य हो। ऐसे अधिकारियों के सेवा अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद प्रतिवेदन तैयार करके अंतिम निर्णय के लिए मुख्यमंत्री को भेजा जाएगा। उधर, सामान्य प्रशासन विभाग कार्मिक के अधिकारियों का कहना है कि छानबीन समिति के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। समिति के निर्णय के आधार पर आगामी कार्रवाई की जाएगी। इसी तरह आईएफएस अधिकारियों की सेवाओं का आकलन करके प्रतिवेदन तैयार होगा, जिसे केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। पीएमओ के एक अधिकारी की माने तो मौजूदा तकरीबन 4,200 आईएएस अफसरों में से 10 फीसदी यानी 420 ही ऐसे निकलेंगे जो जायदाद के मामले में पाक साफ हों। फर्क इतना है कि कुछ संभल कर जायदाद बनाते हैं तो कुछ किसी की परवाह नहीं करते। अधिकारियों ने बचने का नया तरीका यह निकाल लिया है कि जायदाद नजदीकी रिश्तेदारों के नाम से बनाई जाए। हालांकि यह भी जोखिम वाला काम है पर जानकारी देने से तो बेहतर है। बताया जाता है की डीओपीटी ने राज्य सरकारों से एक बार फिर से भ्रष्ट अफसरों की सूची मांगी है। लोकायुक्त से मिली जानकारी के अनुसार, वर्तमान समय में मप्र में विभिन्न विभागों में कई अफसर सहित 104 लोग ऐसे हैं जिन्हें न्यायालय से भ्रष्टाचार सहित अन्य मामलों में सजा हो चुकी है, लेकिन वे जमानत लेकर नौकरी कर रहे हैं। लोकायुक्त ने इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को एक पत्र भी भेजा है और अपने पत्र के साथ 400 ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची भी सौंपी है, जिनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति लंबित है या चालान दाखिल हो जाने के बाद भी उन्हें निलंबित नहीं किया गया है।

सिफारिश कल्चर पर भी सख्ती!
उधर, तबादले के लिए सिफारिश कल्चर के खिलाफ केंद्र सरकार सख्त हो गई है। राजनीतिक मदद के जरिए आईएएस अधिकारियों के इंटर कैडर ट्रांसफर को लेकर सरकार ने गंभीरता दिखाई है और एक मेमोरेंडम जारी किया है। इसमें चेतावनी देते हुए कहा गया कि ऐसा करना मौजूदा नियमों का उल्लंघन है और इसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने 3 दिसंबर को ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया। इस मेमोरेंडम में बताया गया कि सरकारी अधिकारियों ने विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के आउट स्टेशन ऑफिस में अटैच किए जाने को लेकर बड़ी संख्या में व्यक्तिगत और स्वास्थ्य कारणों से इंटर कैडर ट्रांसफर रिक्वेस्ट डाली है। विभाग ने कहा कि यह सभी रिक्ववेस्ट केंद्रीय सचिवालय में तैनात अस्सिटेंट सेक्शन ऑफिसर्स ग्रेड के अधिकारियों की ओर से मिली है। मिनिस्टर्स, लोकसभा व राज्यसभा के सांसदों द्वारा इन अधिकारियों के तबादले की रिक्वेस्ट को कई बार भेजा गया है। विभाग द्वारा जारी मेमोरेंडम के अनुसार, इस तरह का आचरण सीसीएस के रूल 20 (कंडक्ट रूल्स) के खिलाफ है, जिसमें यह कहा गया है कि कोई भी सरकारी अधिकारी अपने हितों के लिए उच्च अधिकारियों पर राजनीतिक या अन्य बाहरी लोगों की मदद से दबाव नहीं डाल सकता है। उच्च अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और कहा है कि इस तरह के सभी मामले अनुशासनात्मक कार्रवाई की श्रेणी में आते हैं। सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के मुताबिक, तबादले के लिए सरकारी हस्तक्षेप या मदद हर सरकार में बड़े पैमाने पर होती है। जबकि जूनियर से लेकर सीनियर अधिकारियों के लिए इस बारे में नियम स्पष्ट हैं और यह अनुचित है। इस बारे में कई बार राजनीतिक लोगों की ओर से मौखिक रूप से अनुरोध किया जाता है लेकिन पेपर पर कुछ नहीं होता है।

जानकारी देने को लेकर गंभीरता नहीं दिखाते अफसर
डीओपीटी के एक अधिकारी के मुताबिक, आईएएस अधिकारी इस जानकारी को लेकर गंभीरता नहीं दिखाते। कुछ तो ऐसे अफसर हैं जो अचल संपत्ति रिटर्न को इस तरह से भरते हैं कि उसमें कुछ समझ ही नहीं आता। परिवार या बाहर के किसी व्यक्ति के नाम पर अधिकारी ने प्रॉपर्टी खरीदी है तो उसमें ठोस साक्ष्यों का अभाव रहता है। इस तरह की जानकारी छिपाने में आईपीएस भी पीछे नहीं हैं। अचल संपत्ति रिटर्न जमा नहीं कराने वाले अफसरों को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है। उन्हें पदोन्नति और एम्पेनलमेंट से वंचित किया जा सकता है। ऐसे अफसरों की विजिलेंस क्लीयरेंस रोक दी जाती है। अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968  के नियम 16(2) के अनुसार, सभी आईएएस-आईपीएस अफसरों के लिए अपनी अचल संपत्तियों की जानकारी देना अनिवार्य है। अचल संपत्ति रिटर्न जमा न कराने वाला अफसर प्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभाग या विदेश में जाने के लिए आवेदन देता है तो वह केस लटक सकता है।
डीओपीटी द्वारा अब यह जानकारी ऑनलाइन मांगी जाती है। इस बार अचल संपत्तियों की जानकारी देने के लिए अंतिम तिथि 31 जनवरी 2022 तय की गई है। डीओपीटी की वह साइट 31 जनवरी को अपने आप बंद हो जाएगी। जो अधिकारी इस तारीख तक अपनी अचल संपत्ति की जानकारी नहीं देंगे, उनके खिलाफ नियमानुसार, कार्रवाई होगी। आईएएस अधिकारी को अचल संपत्तियों के बारे में सारी जानकारी देनी होगी। मसलन, वह संपत्ति कहां है। जिला, सब डिवीजन और गांव के नाम का भी उल्लेख करना होगा। आवासीय भूमि और अन्य भवनों का पूर्ण ब्यौरा देना पड़ेगा। उस प्रॉपर्टी का वर्तमान में कितना मूल्य है, ये भी बताना होगा। यदि संपत्ति अपने स्वयं के नाम पर नहीं है तो ये जानकारी देना अनिवार्य है कि वह प्रॉपर्टी किसके नाम पर है। सरकारी अधिकारी का उस व्यक्ति से क्या संबंध है। संपत्ति कैसे अर्जित की गई है, क्या वह नकद खरीदी गई है, पट्टे पर ली है, उत्तराधिकार में मिली है, उपहार अथवा किसी दूसरे स्रोत से मिली है, ये जानकारी देना अनिवार्य है। अचल संपत्ति से वार्षिक आय कितनी हो रही है, ये भी बताना पड़ेगा।

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