
- फार्मूलों में फंसी पदोन्नति…
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के 4 लाख 75 हजार से अधिक कर्मचारी लंबे समय से अपनी पदोन्नति की राह देख रहे हैं। 9 साल बाद पदोन्नति की आस तो जगी है लेकिन प्रमोशन कब होगा इस पर अभी भी असमंजस है। इसकी वजह यह है कि सरकार अभी तक किसी फार्मूले को तय नहीं कर पाई है। जानकारी के अनुसार अभी तक तीन फार्मूले बनाए गए हैं, लेकिन किसी एक पर मुहर नहीं लग पाई है। गौरतलब है कि सीएम मोहन यादव की अगुवाई वाली सरकार इस संबंध में तेजी से काम कर रही है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश को संज्ञान में लेकर प्रमोशन का कार्य किया जा रहा है। राज्य के लाखों ऐसे कर्मचारी हैं जो कई सालों से एक ही पद पर काम कर रहे हैं। इसमें मुख्य तौर पर पटवारी, शिक्षक, स्वास्थ्यकर्मी और पुलिसकर्मी सहित कई कर्मचारी शामिल हैं। सभी कर्मचारी कई सालों से योग्यतानुसार प्रमोशन की मांग कर रहे थे। अब सरकार ने पदोन्नति के कामों में तेजी दिखाई है। कर्मचारियों का प्रमोशन वर्टिकल रिजर्वेशन के आधार पर किया जाएगा। वहीं, यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानकों पर भी आधारित है।
जानकारी के अनुसार गत 8 अप्रैल को सीएम डॉ. मोहन यादव की घोषणा के बाद से प्रदेश के कर्मचारी बेसब्री से पदोन्नति के प्रस्ताव को कैबिनेट की हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। मप्र में कर्मचारियों की प्रमोशन प्रक्रिया बीते 9 सालों से रुकी हुई है। इस दौरान 1 लाख से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। क्योंकि 2002 में सरकार ने प्रमोशन का नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। जिसके चलते केवल आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन मिला। जिसके बाद कोर्ट में चुनौती देते हुए प्रमोशन में आरक्षण हटाने की मांग की गई। कोर्ट ने राज्य सरकार को कर्मचारियों के प्रमोशन को स्थगित करने की बात कही थी। इसके बाद से यह मामला रुका हुआ था।
अब तक ३ फार्मूलों का प्रेजेंटेशन
पदोन्नति के फार्मूले को लेकर मुख्यमंत्री के समक्ष पिछले दिनों प्रेजेंटेशन हो चुका है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक मप्र सरकार पिछले एक साल में कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर तीन फार्मूले तैयार कर चुकी है, लेकिन इनमें से एक पर भी अमल करने के संबंध में निर्णय नहीं लिया जा सका है। पिछले साल तत्कालीन प्रमुख सचिव जीएडी मनीष रस्तोगी ने पदोन्नति का पहला फार्मूला तैयार किया था। फिर अपर मुख्य सचिव जीएडी संजय दुबे ने विभागीय अधिकारियों के साथ पदोन्नति का दूसरा फार्मूला तैयार किया। इसके बाद यह मामला मुख्य सचिव अनुराग जैन के पास पहुंचा। वरिष्ठ अधिकारियों की समिति के साथ चर्चा कर संजय दुबे की ओर से तैयार फार्मूला में संशोधन कर नया फार्मूला तैयार किया गया। इस फार्मूला के लागू होने पर कर्मचारियों के कोर्ट जाने की आशंका जताई जा रही है। यही वजह है कि फार्मूला लागू करने से पहले सरकार विधि विशेषज्ञों से राय ले रही है। इसकी सबसे मुख्य वजह पदोन्नति पर लगी रोक का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होना है। जीएडी के अधिकारियों का कहना है कि संभवत: सरकार जून में कर्मचारियों को पदोन्नति पर लगी रोक से बैन हटाने का निर्णय ले सकती है और सितंबर से पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू होने के आसार है। नए फार्मूला को लेकर जीएडी ने सपाक्स और अजाक्स से भी राय ली थी। कर्मचारियों की पदोन्नति के अब तक 3 फार्मूले बनाए गए हैं और उन पर चर्चा हो चुकी है। पहला फार्मूला तत्कालीन पीएस जीएडी मनीष रस्तोगी ने पदोन्नति का जो फार्मूला तैयार किया था, वह लगभग वर्ष 2002 के पदोन्नति नियमों पर आधारित था।
इस फार्मूला में संख्या के आधार पर अजा एवं अजजा वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण प्रस्तावित है। मेरिट में इन दोनों वर्ग के कर्मचारी अनारक्षित वर्ग के पदों पर भी आ सकते हैं। दूसरा फार्मूला अपर मुख्य सचिव जीएडी संजय दुबे ने वर्टिकल रिजर्वेशन पर आधारित फार्मला तैयार किया है। इसमे कर्मचारी जिस श्रेणी (अजा, अजजा, सामान्य) में एक साथ नियुक्त हुआ है, वह प्रमोशन में भी उसी श्रेणी में आगे बढ़ेगा। जितने पद रिक्त होंगे, उत्तने पद उसी वर्ग में बांटे जाएंगे। अन्य वर्ग के कर्मचारी उन पदों पर दावा नहीं कर सकेंगे, भले पद रिक्त रह जाएं। तीसरा फार्मूला वर्टिकल रिजर्वेशन पर आधारित है। इसके अनुसार पहले अजजा वर्ग के पद भरे जाएंगे, फिर अजा वर्ग के, और अंत में अनारक्षित वर्ग के पदों पर पदोन्नति होगी। यदि अजा या अजजा वर्ग के लिए आरक्षित पदों पर पात्र व्यक्ति नहीं मिलता है, तो वे पद रिक्त रहेंगे। प्रमोशन के लिए रिक्त पदों की संख्या के दोगुना के साथ 4 अतिरिक्त अभ्यर्थियों को बुलाया जाएगा। जिन कर्मचारियों को पूर्व में प्रमोशन मिल गया है, उनमें से किसी को भी रिवर्ट नहीं किया जाएगा। क्लास वन ऑफिसर के लिए मेरिट कम सीनियरिटी के आधार पर और इसके नीचे के पदों के लिए सीनियरिटी कम मेरिट के आधार पर सूची बनाई जाएगी।
इन कर्मचारियों की होगी पदोन्नति
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा कि पूर्व के गलत नियमों से कई कर्मचारियों की पदोन्नति हो चुकी है, कई ऐसे कर्मचारी हैं जिनकी दो या उससे अधिक बार पदोन्नति हो चुकी है। वर्तमान में उन्हें पदोन्नति नहीं किया जा सकता, जिन्हें हाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार पदोन्नत किया जाना है। अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी के अतिरिक्त आरक्षित वर्ग के जो कर्मचारी सीधी भर्ती से प्रथम पद पर हैं, उन्हें छोडकऱ किसी की पदोन्नति नहीं की जा सकती है।
3 लाख कर्मचारी दो पदोन्नतियों के लिए पात्र
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि जिन पौने पांच लाख कर्मचारियों को पदोन्नति मिलेगी, उनमें से करीब 3 लाख कर्मचारी ऐसे है, जो वरिष्ठता के आधार पर दो पदोन्नतियों के लिए पात्र है, लेकिन सरकार ने कर्मचारियों को अभी सिर्फ एक पदोन्नति देने का निर्णय लिया है। इसकी मुख्य वजह यह है कि तीन लाख कर्मचारियों को दो पदोन्नतियां देने के लिए इतने पद रिक्त नहीं हैं। करीब सवा लाख पद रिक्त होने के कारण इतने ही पात्र कर्मचारियों को दो पदोन्नति दी जा सकती है, लेकिन इसमें अन्य पात्र कर्मचारियों में असंतोष बढऩे की आशंका है। कर्मचारियों को प्रमोशन भले ही एक पद पर मिलेगा, लेकिन वे उच्च प्रभार वाले पद की जिम्मेदारी संभालते रहेंगे। गौरतलब है कि मप्र में अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति पर पिछले नौ साल से रोक लगी है। मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। कोर्ट ने 2002 के बाद पदोन्नति पाने वाले आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश दिया था। राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ 12 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पदोन्नति के इंतजार में नौ साल में करीब एक लाख अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर दिसंबर, 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। समिति की रिपोर्ट पर कई विभागों में कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णयों में दिए निर्देश
सपाक्स के प्रदेश अध्यक्ष केएस तोमर ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण में क्रीमी लेयर को पृथक करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। यह सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णय में निर्देश दिए गए हैं। क्रीमी लेयर को अलग किए बगैर पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा, तो यह गलत होगा। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णय की अवमानना होगी। मोहन यादव सरकार के इस कदम को साल 2028 में होने वाले विधानसभा चुनाव और आगामी निकाय चुनाव के मद्देनजर अहम माना जा रहा है। किसी भी सरकार के लिए कर्मचारियों की नाराजगी चिंता का सबब बन सकती है। ऐसे में मोहन यादव के द्वारा उठाए गए कदम को कर्मचारियों को साधने की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।