
तेज तर्रार महिला अधिकारी को 7 साल से नहीं मिली मैदानी पदस्थापना
- विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम।
लंबे समय से लूप लाइन में नौकरी कर रहीं 2011 बैच की आईएएस अधिकारी नेहा मारव्या एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इस बार उनकी चर्चा इसलिए हो रही है कि प्रदेश की नई सरकार ने 3 महीने के भीतर करीब 250 से ज्यादा आईएएस अधिकारियों के तबादला आदेश जारी किए हैं। इन तबादलों में सालों से लूप लाइन में पड़े अधिकारियों को भी बाहर निकालकर नई पदस्थापना दी गई है। लेकिन अपनी ईमानदारी को लेकर सुर्खियों में रही आईएएस अधिकारी नेहा मारव्या की स्थिति अभी भी जस की तस है। यानी नेहा मारव्या मंत्रालय में राजस्व विभाग में अपर सचिव पदस्थ हैं। पिछले 7 साल से सरकार ने उन्हें मैदानी पदस्थापना से दूर रखा है।
जानकारों का कहना है कि 11 साल की नौकरी में नेहा पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है। उनकी कार्यप्रणाली ही ऐसी है कि वे अभी तक सरकार में ‘सिस्टम’ के हिसाब से काम नहीं कर पा रही हैं। जिसकी वजह से वे उपेक्षा का शिकार होती रहती हैं। वे शिवपुरी, दतिया और जबलपुर में फील्ड की नौकरी कर चुकी हैं। जनता से उनका विवाद का एक भी मामला सामने नहीं आया है, न ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उनका विवाद वरिष्ठ अधिकारी, मंत्री एवं अन्य जनप्रतिनिधयों से खुद की कार्य प्रणाली की वजह से हुए हैं। वे वरिष्ठ अफसरों के मौखित आदेश की बजाय लिखित आदेश पर ज्यादा भरोसा करती हैं। कृषि विभाग की उपसचिव रहते वरिष्ठों के मौखिक आदेश पर नियमों के इर्द-गिर्द काम करने से साफ इंकार कर चुकी हैं। शिवपुरी जिपं सीईओ रहते उन्होंने मनरेगा फंड से कलेक्टर की अतिरिक्त टैक्सी गाड़ी का भुगतान लिखित आदेश नहीं होने की वजह से रोक दिया था।
वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विवाद
नेहा मारव्या का वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अक्सर विवाद हो जाता है। नेहा मारव्या सबसे पहले तब सुर्खियों में आई थीं, जब 2017 उन्होंने शिवपुरी जिला पंचायत सीईओ रहते तत्कालीन कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव की गाड़ी का भुगतान मनरेगा फंड से करने से इंकार कर दिया था। कलेक्टर की लग्जरी गाड़ी मनरेगा फंड से दौड़ रही थी। जब यह मामला उठा तो कुछ दिनों बाद नेहा का तबादला कर दिया गया। हालांकि इसके बाद ओपी श्रीवास्तव रीवा, मंदसौर कलेक्टर और आबकारी आयुक्त भी रहे। मंत्रालय में उप सचिव कृषि विभाग रहते कामकाज को लेकर तत्कालीन प्रमुख सचिव राजेश राजौर से भी तनातनी हुई। उन्हें वहां से भी चलता कर दिया गया। इसके बाद उन्हें सीईओ मनरेगा पदस्थ कर दिया गया। इस दौरान मप्र ग्रामीण आजीविका मिशन में नियुक्ति एवं अन्य घोटाला सामने आया तो नेहा मारव्या को जांच सौंपी गई। मारव्या ने जांच में भ्रष्टाचार को उजागर किया। इसके बाद उन्हें पंचायत से हटाकर राजस्व विभाग में पदस्थ किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री एवं राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी से विवाद भी उनका सामने आया। तब से लेकर नेहा मारव्या राजस्व विभाग में ही पदस्थ हैं। यहीं विभाग में रहते वे उप सचिव से अपर सचिव बन गई हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें दूसरी जगह भी नहीं भेजा। शासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने नेहा मारव्या की बेहद छवि नकारात्मक बना दी है। शायद यही वजह है की नेहा को मैदानी पदस्थापना नहीं मिल पा रही है।
पिछले 7 साल से मंत्रालय में
प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद आईएएस अधिकारियों के ताबड़तोड़ तबादले किए गए। सबको उम्मीद थी कि इस बार नेहा मारव्या को मैदानी पदस्थापना मिल जाएगी। लेकिन 250 से अधिक आईएएस अधिकारियों के तबादले के बाद भी नेहा मारव्या का नंबर नहीं आया। नेहा मारव्या मंत्रालय में राजस्व विभाग में अपर सचिव पदस्थ हैं। पिछले 7 साल से सरकार ने उन्हें मैदानी पदस्थापना से दूर कर रखा है। उन्हें मंत्रालय में ही अलग-अलग विभागों में उपसचिव पदस्थ किया है। मोहन यादव सरकार में कई अधिकारियों को मैदानी पदस्थापना दी गई है, जो पिछली सरकार में सालों से लूप लाइन में थे। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि अधिकारियों के कॉकस की वजह से नेहा मंत्रालय से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। पूर्व में सामान्य प्रशासन विभाग की महिला अधिकारी से उनका विवाद रहा था, जिसमें महिला अधिकारी ने उन्हें भविष्य में फील्ड पोस्टिंग नहीं होने देने की चेतावनी भी दी थी। सूत्र बताते हैं कि नेहा मारव्या का नाम भी नई पदस्थापना के लिए था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी ने अड़ंगा लगा दिया था।