- प्रवीण कक्कड़

प्रत्येक राष्ट्र की एक आत्मा होती है, एक धडक़न होती है, जो उसके करोड़ों नागरिकों को एक सूत्र में बाँधती है। भारत के लिए वह धडक़न, वह आत्मिक स्वर हमारी हिन्दी है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की गंगोत्री, हमारी भावनाओं का सेतु और हमारी राष्ट्रीय एकता का सबसे सशक्त आधार है। हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने इसे भारत की राजभाषा का गौरव प्रदान किया था। हिन्दी दिवस का अवसर केवल एक भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि उस शक्ति को पहचानने का आह्वान है, जो भारत को भारत बनाती है। आज जब दुनिया अपनी-अपनी भाषाई जड़ों पर गर्व कर रही है, हमें भी यह समझना होगा कि हिन्दी को केवल पाठ्यपुस्तकों या सरकारी फाइलों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह हमारे विचारों, व्यवहार और सपनों में जीने वाली भाषा बने। यही असली उद्देश्य होना चाहिए।
पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक: हिन्दी भारत की वह डोर है जो कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक हर भारतीय के दिल को जोड़ती है। जब हम अपनी मातृभाषा में सोचते, बोलते और सपने देखते हैं, तो हमारी अभिव्यक्ति गहरी और सच्ची होती है। अपनी भाषा को अपनाना अपनी जड़ों को सींचना है, यह उस आत्म-सम्मान को जगाना है, जो हमें विश्व पटल पर आत्मविश्वास से खड़ा करता है।
ज्ञान और नवाचार की भाषा: यह एक स्थापित सत्य है कि मौलिक चिंतन और रचनात्मकता का अंकुरण मातृभाषा में ही सबसे बेहतर होता है। यदि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में हिन्दी को ज्ञान की मुख्यधारा की भाषा बनाया जाए, तो हम अपने युवाओं की वास्तविक क्षमता को सामने ला सकेंगे। आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी साकार होगा, जब ज्ञान हर भारतीय तक उसकी अपनी भाषा में पहुँचेगा।
बाज़ार और भविष्य की शक्ति: डिजिटल क्रांति के इस युग में हिन्दी एक वैश्विक शक्ति बनकर उभरी है। आज करोड़ों लोग इंटरनेट पर हिन्दी में पढ़ते, लिखते और संवाद करते हैं। ई-कॉमर्स से लेकर मनोरंजन तक, हिन्दी एक विशाल बाजार की भाषा है। जो कंपनियाँ इस शक्ति को पहचानेंगी, वे व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ करोड़ों भारतीयों के दिलों तक भी पहुँच पाएँगी। हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक अवसर भी है।
राष्ट्रीय चेतना और हमारा दायित्व: सरकारें अपनी नीतियों से हिन्दी को बढ़ावा देने का प्रयास करती रही हैं, लेकिन किसी भी भाषा का वास्तविक विकास केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं होता। इसके लिए समाज को आगे आना होगा। जब दफ्तरों की बैठकों, विद्यालयों की कक्षाओं, सामाजिक आयोजनों और घर की बातचीत में हिन्दी गर्व से बोली जाएगी, तभी यह भाषा सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा कहलाएगी।
गौरवशाली विरासत: एक नजऱ में: उत्पत्ति: हिन्दी की जड़ें हज़ारों वर्ष प्राचीन वैदिक संस्कृत में हैं, जो विश्व की सबसे पुरानी ज्ञात भाषाओं में से एक है। समय के साथ यह आम जन की भाषा प्राकृत और फिर अपभ्रंश के रूपों से विकसित हुई, जिससे आधुनिक हिन्दी का जन्म हुआ।
विकास यात्रा: 10वीं शताब्दी में ब्रज, अवधी और अन्य बोलियों से ऊर्जा लेकर खड़ी बोली ने आधुनिक हिन्दी की नींव रखी।
साहित्यिक गंगा: कबीर के दोहे, तुलसीदास की चौपाइयाँ, सूरदास के पद, प्रेमचंद की कहानियाँ और हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ—हिन्दी साहित्य ने विश्व को मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत परिचय दिया।
ऐतिहासिक क्षण: 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में अंगीकार किया। इसी दिन की स्मृति में हम प्रतिवर्ष ‘हिन्दी दिवस’ मनाते हैं।
संकल्प हमारा: छोटे कदम, बड़ा बदलाव
ज्ञान के मंदिरों में: शिक्षक और विद्यार्थी संवाद, अध्ययन और शोध में हिन्दी को गौरवपूर्ण स्थान दें।
कार्यालयों में: बैठकों, रिपोर्ट और ईमेल में हिन्दी का प्रयोग कर कार्य-संस्कृति को नई दिशा दें।
परिवार में: बच्चों को हिन्दी कहानियाँ सुनाएँ, उन्हें लिखने और बोलने के लिए प्रेरित करें।
डिजिटल जगत में: सोशल मीडिया पर गर्व से हिन्दी में लिखें और अच्छे हिन्दी कंटेंट को साझा कर बढ़ावा दें।
एक संकल्प का दिन: हिन्दी दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हिन्दी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाना केवल सरकार का नहीं, बल्कि हम 140 करोड़ भारतीयों का सामूहिक दायित्व है। हिन्दी केवल साहित्यकारों की नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों, उद्यमियों, किसानों और युवाओं की भी भाषा है।
जब हर भारतीय के मन में हिन्दी के प्रति सम्मान और स्वाभिमान का भाव जागेगा, तभी यह भाषा सही मायनों में विश्व पटल पर अपनी पूरी शक्ति के साथ स्थापित होगी।
आइए, इस हिन्दी दिवस पर हम सब मिलकर अपनी भाषा को वह सम्मान दिलाएँ, जो हमारे राष्ट्र के मस्तक पर गौरव का तिलक बने।
हिन्दी हमारी शक्ति है, हिन्दी हमारा गर्व है।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)