पुलिस के इकबाल पर… भारी माफिया

 माफिया
  • सुशासन व सिस्टम को चट करने में भी साबित हो रहा भारी  

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन  चुका है, जिसमें तमाम तरह का माफिया सरकार से लेकर पूरे प्रशासन तक पर हावी नजर आता है। सूबे में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिस पर माफिया का कब्जा न हो। इसमें खनिज माफिया से लेकर शराब, शिक्षा, भू, दवा और वन तक शामिल है।
इन तमाम क्षेत्रों में माफिया का पूरा काकस बना हुआ है, जिसकी जानकारी सरकार से लेकर प्रशासन में बैठे आला अफसरों तक को है।  इसके बाद भी सरकार व प्रशासन शुतुरमुर्ग बने हुए हैं। इसकी वजह है माफियाओं को नेताओं से लेकर अफसरों तक का खुला सरंक्षण मिला होना। हाल यह है की नेताओं, अफसरों व माफियाओं के बीच बेहद मजबूत गठजोड़ बन चुका है। इसके कई उदाहरण बीते समय में सामने आ चुके हैं, लेकिन मजाल है की उसे तोड़ने के लिए सरकार व शासन ने कोई बड़ी पहल की हो। बस दोनों स्तरों से दावे और वादे जरुर खूब किए जाते हैं। जब भी सूबे में किसी माफिया पर कार्रवाई शुरू होती है, तो उससे किसी न किसी राजनेता और आला अफसर का नाम जुड़ जाता है। जिसकी वजह से वह मामला वहीं दफन करने के प्रयास शुरू कर दिए जाते हैं। सरकारी सिस्टम की परवाह किए बिना खुद की मर्जी से काम करने वाले माफिया के हितों पर जब कोई अफसर या सरकारी कर्मचारी कुठाराघात का प्रयास करता है तो वह हमले तक करने में पीछे नही रहता है। उसे पता होता है की हमलों के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। यही वजह है की अब तो माफिया पुलिस पर भी हमले करने में पीछे नही रहता है। दूसरों की सुरक्षा का जिस पु़लिस पर दायित्व है, वह खुद भी माफिया के सामने अब तो बेबस हो जाती है। इसका बड़ा उदाहरण गुना जिले के अरोन में हुई घटना है। इस घटना में शिकार कर लौट रहे आरोपियों को पुलिस का रोकना इतना नागबार गुजरा की उन्होंने हमला कर एसआई राजकुमार जाटव, आरक्षक नीरज भार्गव और आरक्षक संतराम की गोली मारकर हत्या तक कर डाली। इस वारदात के बाद सरकार से लेकर पुलिस के आला अफसरानों तक ने जमकर वादे किए, लेकिन वारदात को अंजाम देने वाले माफिया से सांठगांठ कर उन्हें संरक्षण देने वालों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। अगर पुलिस उनका कॉलडिटेल निकाल कर उनके संरक्षण दाताओं पर भी शिकंजा कसती तो कई सफेदपोशों के चेहरे बेनकाब हो जाते। लेकिन शासन ,प्रशासन व जांच करने वाली एजेंसियां संरक्षणदाताओं के रसूख के सामने बेबस बनी रहती है। लिहाजा तमाम तरह के माफियाओं के संरक्षणदाताओं के हौसले बुलंद बने रहते हैं और वे तमाम तरह के माफियाओं को फलने फूलने का भरपूर मौका देने में पीछे नहीं रहते हैं। उधर, पुलिस को कानून व्यवस्था संभालने की भी पूरी तरह से छूट नहीं होने का फायदा माफिया द्वारा उठाया जाता है। दरअसल पुलिस पर पूरी तरह से सियासी पहरा कई बार खुलकर सामने आ चुका है। दरअसल माफिया को भरपूर फलने-फूलने को लंबे समय से मौका दिया जा रहा है। अगर यह सब सरकार और सरकारी तंत्र को नहीं पता था, तो यह राज्य की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। अगर पता था, तो ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई। अगर ठोस कार्रवाई की जाती है, तो माफिया सिर उठाने की हिम्मत ही नहीं करता। ऐसा नहीं की माफिया ने पहली बार पुलिस वालों की हत्या की है, बल्कि इसी राज्य में नए -नए आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार को माफिया ने कुचल कर हत्या कर दी थी, इसके बाद भी भिंड और मुरैना में रेत व पत्थर माफिया का काम आज भी बेरोकटोक जारी है। इसके पहले भी प्रदेश में घटनाएं हुई और बाद में भी हो रही हैं, लेकिन सख्त कार्रवाई कभी होती नहीं दिखी। यही वजह है की प्रदेश में माफिया किस तरह से सिस्टम पर हावी है उसकी ताकत कितनी है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अब तक जो आंकड़े सामने आए हैं, उससे तो यह तय है की प्रदेश में लगातार पुलिस पर हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं।  
इस तरह की हो चुकी घटनाएं
भोपाल के कमला नगर थाने में घुसकर भाजपा के लोगों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया था। एफआईआर हमला करने वालों की जगह पुलिसकर्मियों पर दर्ज की गई थी। जिसमें एक दर्जन पुलिसकर्मियों को नामजद आरोपी बनाया गया था । शहर में ही एसपी रहे अभय कुमार सिंह पर इतवारा में हुए हमले में आंख तक गंवानी पड़ गई, लेकिन हमलावरों पर कठोर कार्रवाई नहीं की गई। यही नहीं भोपाल के तत्कालीन एसएसपी योगेश चौधरी और तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव भी हमले का शिकार हो चुके हैं और तत्कालीन सीएसपी सलीम खान की सरकारी गाड़ी तक जला दी गई थी। इसी तरह से तत्कालीन एएसपी रहे राजेश सिंह चंदेल पर लिली टाकीज चौराहे पर पत्थर से हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया था। ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिसमें पुलिस हमिले का शिकार हो चुकी है।
अचानक हुई हमलों में वृद्धि
मध्यप्रदेश में पुलिस पर हमले की घटनाओं में अचानक तेजी आयी है। इसकी वजह है माफिया का पूरे ही सिस्टम पर हावी हो जाना। गुना जिले के अरोन में पुलिसकर्मियों के शहीद होने के बाद यह साफ हो गया कि आज की स्थिति में माफिया पूरे सिस्टम पर हावी है। अब जब उसे रोकने की कोशिश होती है, तब वह हमले पर उतर आता है। हमले का सबसे ज्यादा शिकार पुलिस होती है, क्योंकि वह सामने होती है। प्रदेश में महज साढ़े चार महीने में पुलिस पर हमले की 51 घटनाएं हो चुकी हैं। आधा दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी कर्तव्य की बलिवेदी पर शहीद हो चुके हैं। इस तरह के हालात प्रशासन की लाचारी, उदासीनता और संलिप्तता की वजह है। दूसरे विभागों की जिम्मेदारी होने के बाद भी पुलिस पर सबसे ज्यादा हमले होते हैं। यह हमले भी रेत माफिया, शराब माफिया, भू-माफिया और जानवरों का शिकार करने वालों ने किए हैं। यह स्थिति तब है, जब रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी खनिज विभाग, शराब माफिया पर कार्रवाई की जिम्मेदारी आबकारी विभाग, भू-माफिया के खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी राजस्व विभाग और वन्यप्राणियों के अवैध शिकार के मामले में कार्रवाई की सीधी जिम्मेदारी वन विभाग की बनती है, लेकिन हमले का शिकार पुलिस हो रही है। यह भी बड़ा सवाल है। इससे यह साबित होता है कि खुद पर हमले के लिए कुछ हद तक पुलिस भी कसूरवार है।
गिरफ्तारी के बाद नहीं की जाती पैरवी
पुलिस पर हमले की एक बड़ी वजह यह भी है कि पुलिस अपने को सिर्फ आरोपियों की गिरफ्तारी तक सीमित कर लेती है। ऐसे मामलों में अदालत में ढंग से पैरवी नहीं होती है। इसका बड़ा उदाहरण है प्रदेश में शिकार करने के मामले में गिरफ्तार आरोपियों में 8505 जमानत पर
हैं। ताजा हमला गुना का है। इस जिल में ही 189 श्किार के आरोपी जमानत पर हैं, जबकि भोपाल में इनका आंकड़ा 113 है।

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