प्रवीण कक्कड़

आपको विदित होगा कि पिछले हफ्ते शिवना प्रकाशन ने मेरी पुस्तक ‘दंड से न्याय तक’ का विमोचन किया है। आज उसी पुस्तक के कुछ पहलुओं को लेकर आपके समक्ष हूं।
मैंने अपने 40 साल के अनुभवों को एक किताब के रूप में सामने लाने की कोशिश की है।
ये किताब भारतीय दंड संहिता से भारतीय न्याय संहिता तक के सफर पर केंद्रित है। एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता लागू हुई। इस किताब में भारतीय न्याय संहिता और भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में क्या अंतर है, इसको मैंने समेटने की कोशिश की है। मैंने सरल भाषा में स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि कैसे 358 धाराओं से भारतीय कानून में परिवर्तन आया है।
इसमें पुलिस सुधार की अब तक की कोशिशें और कितनी बदली पुलिस इसका भी जिक्र है। इसमें उल्लेख है कि पुलिस सुधार को लेकर कौन से आयोग बने और उसके बाद क्या परिवर्तन आया।
क्यों इंग्लैंड की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस विश्व की सर्वश्रेष्ठ पुलिस कहलाती है। इसके साथ ही दुनिया की बेस्ट पुलिस फोर्स कौन सी है और क्यों वो बेस्ट है इसके बारे में भी जानकारी है।
नया कानून किस तरह से बच्चों और महिलाओं की हिफाजत और मजबूती से करता है, इसको लिखने के साथ- साथ आम आदमी को मिली सुविधाएं भी हैं।
कैसे देश के किसी भी हिस्से से ऑनलाइन एफआईआर हो सकती है। कैसे इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी मान्य होंगे। थानों के चक्कर कम लगेंगे। मामले पुलिस कई दिनों तक दबाकर नहीं रख सकेगी। एफआईआर और चार्जशीट तक सबके लिए डेडलाइन तय की हुई है।
इस किताब के पीछे एक बड़ा मकसद पुलिस की कड़ी मेहनत और सकारात्मक पक्ष को सामने लाना भी है। क्योंकि कई बार पुलिस को अलग-अलग दबावों में करना पड़ता है।
मेरा आपसे आग्रह है कि मेरे इस प्रयास पर आप अपनी प्रतिक्रिया दें। आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी ताकत बनेगी।
अगर आप इस पुस्तक को पढ़ना चाहते हो तो अमेजन पर यह पुस्तक उपलब्ध है।