
- अधिकार व हथियार विहीन अमला कैसे करे वन सम्पदा की सुरक्षा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में अब वन माफिया के हौसले पूरी तरह से बुलंदी पर हैं। इसकी वजह है पूर्व की सरकारों द्वारा बीते डेढ़ दशक में इस तरह के माफियाओं के खिलाफ को ठोस और प्रभावी कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति न दिखाना। यही वजह है कि जहां सरकारी वन अमले का मनोबल गिरा है तो वहीं वन माफियाओं द्वारा वन अमले पर हमलों की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। नए साल के पहले ही पखवाड़े में प्रदेश में इस तरह की करीब आधा दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें वन अमले पर हमला किया गया है। लगातार वन अमले पर बढ़ती घटनाओं के बाद भी न तो उन्हें अधिकार संपन्न बनाया जा रहा है और न ही उन्हें सुरक्षा के लिए हथियार ही दिए जा रहे हैं। अहम बात यह है कि इस तरह की घटनाएं भोपाल और उसके आसपास के जिलों वाले वन क्षेत्र में भी हो रही हैं। इसके बाद भी आला अफसरों से लेकर सरकार तक संजिदा नहीं दिख रही है। अगर इस माह के बीते 17 दिनों की बात करें तो अलग-अलग वारदातों में आधा दर्जन से अधिक अधिकारी व कर्मचारी घायल हो चुके हैं। जबकि बीते साल में यह आंकड़ा डेढ़ दर्जन रहा था। दरअसल वन माफियों के साथ संघर्ष अब प्रदेश में लगभाग हर सप्ताह होता है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। नये वर्ष के 17 दिनों में दतिया और रायसेन के बाद भोपाल वन अमले पर हमले हो चुके हैं। इससे जहां वन कर्मचारियों में आक्रोश है। वहीं दूसरी ओर वनों के मामले में प्रशासनिक रूख भी जनता के सामने आ गया है। हालांकि आरोपियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया गया, लेकिन निरंकुश हुए वन माफियाओं के खिलाफ विभाग अब तक कोई अभियान नहीं चला पाया है। वह भी तब जबकि अतिक्रमण, अवैध उत्खनन और परिवहन के साथ अवैध कटाई के मामले लगातार बढ़े हैं। खास बात यह है कि वन अमले की शिकायत के बाद भी पुलिस महकमा सक्रियता नहीं दिखाता है। इस मामले में मप्र वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष अशोक पांडेय का कहना है कि प्रदेश में आये दिन वन माफियाओं के हमले से वन अमला भयभीत है। उनका कहना है कि इस स्थिति के लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार वन प्रबंधन और सरकार जिम्मेदार है। अतिक्रमणकारियों को पोषित करने की मंशा को देखते हुए विरोध में वन कर्मचारी हथियार जमा करा चुका है।
हथियार खा रहे जंग
समय के साथ वन माफिया जहां हाईटेक हो गया है। वहीं दूसरी ओर इनकी सुरक्षा का भार संभालने वाले कर्मचारी हथियार के नाम पर मात्र लाठी के सहारे हैं। जबकि वन कर्मचारियों को शास्त्र चलाने के अधिकार का मामला वर्षों से लंबित है। बंदूके और रिवाल्वर विभाग में जंग खा रही है।
अतिक्रमणकारियों की चपेट में 4 वृत्त
प्रदेश के 17 वृत्तों में 4 वृत्त अतिक्रमणकारियों की चपेट में है। इनमें राजधानी भोपाल भी शामिल है। इसके अलावा दर्ज प्रकरण के अनुसार सबसे ज्यादा संवेदनशील खंडवा को माना जा सकता है। इसके बाद उज्जैन और ग्वालियर के नाम भी शामिल है। अवैध लकड़ी परिवहन की दृष्टि से शहडोल और शिवपुरी जैसे वनवृत्त संवेदनशील है। बावजूद इसके भोपाल, विदिशा और रायसेन भी पीछे नहीं है।
वन कर्मी भोग रहे हैं सजा
बीते साल अगस्त माह में विदिशा जिले के लटेरी में वन अमले पर हमले के दौरान वनकर्मचारियों ने अपनी सुरक्षा में गोली चलाई थी, जिसमें एक वन माफिया की मौत हो गई थी । इस मामले में भी सरकार का रवैया वन कर्मचारियों की जगह वन माफिया के पक्ष में रहा था। हालत यह रही थी कि सरकार ने घायल माफिया के लोगों को पांच पांच लाख रुपये दिये थे और सरकार ने संबंधित वन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया न केवल सस्पेंड कर दिया था, बल्कि मृतक के परिजनों को 20 लाख रुपए मुआवजा भी दिया था। यही नहीं पुलिस ने वन अमले के खिलाफ भादवि की धारा 302, 307 और 34 के तहत प्रकरण कायम कर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।