कानूनी पेंच में फंसी पदोन्नति की गाइडलाइन!

पदोन्नति की गाइडलाइन
  • 12 अगस्त को हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में कर्मचारी संगठनों में आरक्षण के आधार पर प्रमोशन को लेकर विरोधाभास के चलते बीते नौ सालों से पदोन्नति का मामला कोर्ट की सुनवाई में उलझा पड़ा है। हाल के दिनों में डॉ. मोहन यादव की अगुवाई में पदोन्नति की गाइडलाइन भी अब कानूनी पेंच में फंसती दिख रही है। पदोन्नति के लिए जो नए नियम सरकार ने बनाए थे उन पर सपाक्स की याचिका के बाद जबलपुर हाईकोर्ट रोक लगा चुका है। अब 12 अगस्त को हाई कोर्ट जबलपुर में सुनवाई प्रस्तावित है। इसमें सरकार द्वारा दिए जाने वाले जवाब से निर्धारित होगा कि पदोन्नति का रास्ता खुलेगा या नहीं। उधर सरकार के इशारे पर सभी विभाग पदोन्नति लिस्ट तैयार करने में जुटे हुए हैं। वहीं कानूनी जानकारों के सहारे सपाक्स कर्मचारी संगठन की याचिका पर हाईकोर्ट में जवाब पेश करने की तैयारी भी कर चुका है।
दरअसल, पदोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। मध्य प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के उसे आदेश को चुनौती दी है जिसमें 2002 के पदोन्नति नियमों को निरस्त किया गया था। हाई कोर्ट ने सरकार से यही पूछा है कि जब आपने नए नियम बना लिए तो फिर सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस क्यों नहीं ली। 12 अगस्त को हाई कोर्ट जबलपुर में सुनवाई प्रस्तावित है। इसमें सरकार द्वारा दिए जाने वाले जवाब से निर्धारित होगा कि पदोन्नति का रास्ता खुलेगा या नहीं। मप्र में 9 साल से अटके कर्मचारी-अधिकारियों के प्रमोशन को हाल ही में सरकार ने हरी झंडी दी थी। इसके लिए सरकार ने नई नीति बनाई थी उससे असंतुष्ट कर्मचारियों का एक धड़ा हाईकोर्ट पहुंच गया था। जिसके बाद जबलपुर हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी होने तक नए नियमों के आधार पर पदोन्नति देने पर रोक लगा दी है। इस मामले में 15 जुलाई को होने वाली सुनवाई टल गई थी। अब हाईकोर्ट रोस्टर के अनुसार 12 अगस्त को इस मामले पर सुनवाई हो सकती है, हांलाकि अभी सुनवाई की तारीख तय नहीं हुई है।
हाईकोर्ट में सरकार का जवाब पेश
हाईकोर्ट द्वारा 7 जुलाई की सुनवाई के दौरान मांगे गए जवाब को मध्य प्रदेश सरकार पेश कर चुकी है। इस जवाब में नए और पुराने पदोन्नति नियम में अंतर स्पष्ट किए गए हैं। साथ ही हाईकोर्ट से पदोन्नति पर लगी रोक हटाने का आग्रह करने से संबंधित तथ्य भी शामिल किए गए हैं। पिछली सुनवाई में सरकार के वकील कर्मचारियों के अधिवक्ता सुयश मोहन गुरु के सवालों पर जवाब पेश नहीं कर सके थे। वहीं इस बीच राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारियों की याचिका के हाईकोर्ट पहुंचने से सुनवाई में नया मोड़ आना तय हो गया है। ये याचिका राजस्व विभाग के दो अधिकारियों द्वारा लगाई गई हैं। जिनमें पदोन्नति पर लगाई गई रोक हटाने की मांग की गई है। गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने 2016 में पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। पदोन्नत कर्मचारियों को पदावनत करने के भी निर्देश थे। चूंकि, सरकार ऐसा नहीं करना चाहती थी इसलिए हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। यहां से सरकार को इतनी राहत मिली कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता तब तक यथास्थिति बनाकर रखी जाए। तभी से पदोन्नतियां बंद हैं।
सरकार कर रही वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श
सरकार ने जून 2025 में नए नियम बनाकर अधिसूचित कर लागू कर दिए लेकिन न तो सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस ली और न ही पुराने नियम से पदोन्नत हुए कर्मचारियों को पदावनत किया। हाई कोर्ट ने नए और पुराने नियम के अंतर को स्पष्ट करने के साथ इस बात पर सरकार से जवाब मांग लिया कि याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस क्यों नहीं ली गई। जब नियम तैयार हो रहे थे, तब भी यह विषय उठा था लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सूत्रों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर अभी चुप्पी साधे है और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श कर रही है। उधर, सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि पुराने नियम निरस्त करने के आदेश में ही आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावनत करने के भी निर्देश हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। यदि याचिका वापस ली जाती है तो उसे हाई कोर्ट के आदेश का पालन करना होगा। यही कारण है कि मामला उलझा हुआ प्रतीत हो रहा है। हालांकि, सरकार यह बात प्रमुखता से कोर्ट के सामने रखेगी कि हम सशर्त पदोन्नति दे रहे हैं, जो सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के निर्णय के अधीन रहेगी। यह बात नियम में भी स्पष्ट की गई है।

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