भाजपा में जमीनी कार्यकर्ता ही टिकट के हकदार

भाजपा
  • संगठन ही नहीं निकाय चुनाव में भी परिवारवाद को जगह नहीं
  • गौरव चौहान

मप्र में भाजपा ने परिवारवाद पर लगाम लगा दी है। कई नेतापुत्रों के राजनीतिक सपने टूट गए हैं। पार्टी ने पूरी तरह साफ कर दिया है कि संगठन हो या फिर चुनाव केवल जमीनी कार्यकर्ताओं को ही महत्व दिया जाएगा। भाजपा का परिवारवाद विरोधी रुख नेताओं के बच्चों के लिए मुसीबत बन गया है। विधानसभा और लोकसभा जाने की उनकी राह मुश्किल हो गई है। कई नेता अपने बच्चों को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते थे। लेकिन पार्टी के नए नियमों ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब संगठन में भी उन्हें जगह नहीं दी जा रही है। साथ ही आगामी समय में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव में भी नेता पुत्रों को टिकट नहीं दिया जाएगा।
गौरतलब है कि भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अपनी जीत का श्रेय परिवारवाद न फैलाने को दिया है। पार्टी का मानना है कि परिवारवाद से प्रतिभा दब जाती है। इसलिए पार्टी ने एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट देने का फैसला किया है। इससे कई नेता पुत्रों का राजनीतिक करियर खतरे में पड़ गया है। पहले ये नेता पुत्र राजनीति में काफी सक्रिय थे। अब वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। पार्टी के अनुसार, नेताओं के परिजन होने मात्र से किसी को जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। यह व्यवस्था केन्द्रीय नेतृत्व के निर्देश पर लागू मानी जा रही है। केन्द्रीय नेतृत्व ने कहा है कि राजनीति में एक परिवार से एक ही सदस्य को मौका दिया जाए। हालांकि कई जगह पर इस गाइडलाइन को दरकिनार भी किया गया है पर यह कुछेक मामलों में हुआ है।
निकाय चुनाव में भी नेता पुत्र होंगे दरकिनार
भाजपा ने साफ संकेत दे दिए हैं कि आने वाले नगरीय निकाय चुनावों में भी नेताओं के पुत्र-पुत्रियों और रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिए जाएंगे। पार्टी यह कदम जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे लाने और आंतरिक विवादों को कम करने के लिए उठाया गया है। यह व्यवस्था सत्ता से जुड़े राजनीतिक पदों पर भी लागू हो सकती है। भाजपा ने संगठन विस्तार की प्रक्रिया के दौरान इस बदलाव की शुरुआत की है। जिला कार्यकारिणी की सूची जारी होने के बाद सामने आया कि कई नेताओं के पुत्र, भाई और रिश्तेदारों को पद दिए गए हैं। इसके बाद प्रदेश नेतृत्व ने सख्ती दिखाते हुए सभी ऐसे नियुक्तियों की समीक्षा शुरू कर दी। जिन रिश्तेदारों को पद दिए गए थे, उनसे इस्तीफे लिए जा रहे हैं। पार्टी का मानना है कि संगठन में परिवारवाद को बढ़ावा देने से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है और आपसी असंतोष भी बढ़ता है। भाजपा नेतृत्व का स्पष्ट कहना है कि संगठन का असली आधार कार्यकर्ता हैं, इसलिए उन्हें ही सम्मान और अवसर मिलना चाहिए।
सक्रिय कार्यकर्ताओं को महत्च
प्रदेश संगठन ने जिलों को निर्देश दिए हैं कि नए पदाधिकारी चयन में कार्यकर्ताओं की सक्रियता, निष्ठा और जनता से जुड़ाव को प्राथमिकता दी जाए। यह नीति केवल संगठन तक ही सीमित नहीं रहेगी। आगामी नगरीय निकाय चुनावों में भी भाजपा ने तय किया है कि नेताओं के बेटे-बेटियों और नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिए जाएंगे। टिकट वितरण में अब संगठन और कार्यकर्ताओं से मिली रिपोर्ट को ही आधार बनाया जाएगा। इससे चुनावी मैदान में ऐसे उम्मीदवार सामने आएंगे, जो जनता से सीधे जुड़े हों और स्थानीय स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हों। प्रदेश की 413 नगरीय निकायों में डेढ साल बाद चुनाव होंगे। इसकी तैयारी भी भाजपा ने अभी से शुरू कर दी है। इनमें 16 नगर निगम, 99 नगर पालिका और 298 नगर परिषद में चुनाव होना हैं। प्रदेश की कई नगरीय निकायों में अभी मंत्री, विधायक और वरिष्ठ नेताओं के रिश्तेदार मुख्य पदों पर काबिज हैं। अगले नगरीय निकाय चुनाव में इन्हें टिकट मिलना मुश्किल माना जा रहा है। संगठन गठन की प्रक्रिया के साथ पार्टी ने प्रदेश के ऐसे नेताओं को संकेत दिए है, जो अपने रिश्तेदार और बेटा-बेटियों को राजनीति में स्थापित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं।
परिवारवाद पर लगेगा पूरी तरह अंकुश
प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल केंद्रीय संगठन की अपेक्षा के अनुरूप काम कर रहे है। केंद्रीय संगठन चाहता है कि पार्टी में एक पद एक व्यक्ति का फॉर्मूला लागू हो। साथ ही परिवारवाद पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाए। जनप्रतिनिधियों और पहले से पार्टी में किसी सक्रिय पद पर मौजूद नेता के किसी रिश्तेदार को पार्टी में पद न दिया जाए। यह व्यवस्था अगले नगरीय निकाय चुनाव में भी लागू हो सकती है। इससे सक्रिय कार्यकर्ताओं को राजनीति में स्थापित होने का अवसर मिलेगा, जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा। भाजपा में लंबे समय से यह आवाज उठ रही थी कि नेताओं के परिवारों को टिकट और पद देकर कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जाती है। इससे संगठन में खींचतान और असंतोष पनपता है। अब पार्टी के इस फैसले से इन विवादों पर अंकुश लगने की उम्मीद है। साथ ही कार्यकर्ताओं में यह संदेश भी जाएगा कि मेहनत और समर्पण से ही आगे बढ़ा जा सकता है, न कि किसी नेता का परिजन होने से। पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी इसी नीति को अपनाने पर विचार कर रही है। इसका मकसद है कि पार्टी पूरी तरह कार्यकर्ता आधारित संगठन के रूप में अपनी पहचान को और मजबूत करे।

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