सरकार की नीतियां पड़ रहीं निर्माण एजेंसियों पर भारी

निर्माण एजेंसियों

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ लोग बेशकीमती और महत्वपूर्ण स्थानों पर बहुतायत में होने वाले अतिक्रमणों से परेशान हैं तो वहीं सरकार की वे एजेंसियां भी बेहद मुसीबत का सामना कर रही हैं, जो आम आदमियों के लिए आवास बनाकर उपलब्ध कराने का काम करती हैं।
यही वजह है कि सरकार की इन एजेंसियों को घरों के खरीददार तक नहीं मिल रहे हैं, जबकि शहरों में जहां -तहां झुग्गियों की बाढ़ आती जा रही है। इसकी वजह है सरकार द्वारा अवैध अतिक्रमण वालों को पट्टा दिए जाने की घोषणा। हालात यह हैं कि प्रदेश में 11 हजार से ज्यादा आवासों को कोई खरीददार तक लंबे समय से नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते इनकी देखरेख में अलग से सरकार को राशि खर्च करनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा पांच हजार एलआईजी, एमआईजी आवास इंदौर और भोपाल में बिना बिके पड़े हुए हैं। इसके इतर माफिया द्वारा झुग्गियां बनाकर पट्टे हासिल कर उन्हें दानपत्रों के माध्यम से बेचकर जमकर खेल किया जा रहा है।  इसके अलावा हजारों लोग ऐसे हैं, जिनके द्वारा अवैध रूप से झुग्गियां बनाकर उन्हें बेचने का काम धड़ल्ले से किया जा रहा है। सरकार द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इन आवासों का निर्माण कराया जाता है। यह आवास सीमित आय वर्ग और आवासहीनों के लिए बनाए हैं। इनकी खरीदी पर करीब तीन लाख रुपए की सब्सिडी भी प्रदान की जाती है। खास बात यह है कि सरकार ने आवास खरीदने के लिए हितग्राही को बैंक से लोन दिलाने का भी प्रावधान किया है। इसके बाद भी सरकार की पट्टा देने की नीति और अतिक्रमण के खिलाफ सख्ती नहीं दिखाने की वजह से बनाए गए बहुमंजिला आवास के फ्लैट बीते कई सालों से बिक ही नहीं पा रहे हैं। इन आवासों को बेचने से जो राशि मिलेगी उससे गरीबों के लिए आवास बनाए जाने का प्रावधान है। आवास नहीं  बिकने से गरीबों के लिए आवास भी नहीं बन पा रहे हैं। आवास नहीं बिकने से इनकी प्रोजेक्ट कास्ट भी साल दर साल बढ़ती जा रही है। प्रदेश में 19 हजार एलआईजी और एमआईजी फ्लैट बनाए जा रहे हैं, इसमें से सिर्फ आठ हजार आवासों की ही बुकिंग हो पायी है।    
प्रदेश में 7 लाख आवास स्वीकृत
प्रदेश के भोपाल, इंदौर जबलपुर निकाय में प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास के तहत सबसे ज्यादा आवास बुकिंग का इंतजार कर रहे हैं। प्रदेश में अलग-अलग योजनाओं में पिछले 7 वर्षों के अंदर 7 लाख आवास निकाय गरीब और कमजोर वर्ग के स्वीकृत किए गए थे। इसमें से 4 लाख 35 हजार आवास बनकर ही तैयार हो सके हैं। इसी तरह से गरीब और कमजोर वर्ग के लिए साझेदारी में किफायती आवास (एएचपी) के तहत करीब 300 शहरों में 47 हजार आवास बनाए गए हैं। इनमें से अभी तक 13 हजार आवासों की बुकिंग ही नहीं हो पाई है। लगभग यही हाल अन्य संपत्तियों का भी है।  

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