इंजीनियरिंग की खामियों से सरकार के करोड़ों रुपए पानी में बहे

करोड़ों रुपए
  • प्रारंभिक जांच में सामने आई ग्वालियर-चंबल संभाग में टूटे पुलों की खामियां

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। बाढ़ से ग्वालियर-चंबल में क्षतिग्रस्त हुए पुल-पुलियों और सड़कों के निर्माण में हुई खामियां सामने आने लगी है। अंचल में बाढ़ से जो सात पुल टूट गए उनकी जांच की जो प्रारंभिक रिपोर्ट आई है उसमें इंजीनियरिंग की खामी सामने आई है। दरअसल, लोक निर्माण विभाग ने स्थिति-परिस्थिति को नजर अंदाज कर इन पुलों का निर्माण करवाया था।  जांच में बताया गया है कि 60 साल पहले बने पुल से भी कम इन सातों पुलों की ऊंचाई रखी गई थी। इस कारण पुलों पर पानी का दबाव बढ़ा तो वे उसे सह नहीं पाए और टूट गए। दरअसल, अंचल में वर्ष 1962 में जल संसाधन विभाग ने जो पुल बनाया है, वह न तो डूबा और न ही उसे कोई नुकसान पहुंचा। दरअसल, लोक निर्माण विभाग ने जो उच्च स्तरीय पुल बनाया, उसकी ऊंचाई साढ़े तीन मीटर कम रखी। जबकि, इसे या तो जल संसाधन विभाग के बराबर बनाना था या उससे ऊंचा। रिपोर्ट में क्षतिग्रस्त पुलों की गुणवत्ता को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई है, क्योंकि अभी जल स्तर इतना कम नहीं हुआ है कि मौके पर जांच की जा सके। विस्तृत जांच के बाद ही तय होगा कि इस नुकसान के लिए जिम्मेदार कौन है।
    समिति की जांच में सामने आई खामियां
    ग्वालियर-चंबल संभाग में तीन और चार अगस्त को बाढ़ से सात उच्च स्तरीय पुल पानी में डूब गए और उनके स्लैब बह गए। इसकी जांच के लिए लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण यंत्री एपी सिंह, कार्यपालन यंत्री पीसी पंत और अनुविभागीय अधिकारी अविनाश सोनी की समिति बनाई थी। समिति ने 16 अगस्त से 18 अगस्त तक पुलों का स्थल निरीक्षण किया और दस्तावेजों का पुलों से संबंधित रिकार्ड का परीक्षण किया। स्थल निरीक्षण के समय नदियों में काफी पानी था। इसके कम होने पर क्षतिग्रस्त संरचना तक पहुंच उपलब्ध होने पर जांच के लिए नमूने आदि लेने की कार्यवाही की जा सकेगी। स्थल निरीक्षण और तकनीकी रिकार्ड के परीक्षण के आधार पर तैयार प्रारंभिक रिपोर्ट सौंप दी है। इसमें पुलों के क्षतिग्रस्त होने की मुख्य वजह बांधों से पानी तीन से चार गुना मात्रा में छोड़ऩे को बताया गया है। हालांकि, श्योपुर बड़ोदा मार्ग पर सीप नदी पर बने उच्च स्तरीय पुल को लेकर सवाल उठाए गए हैं। इसमें कहा कि क्षतिग्रस्त पुल के स्थल निरीक्षण में पाया गया कि जल संसाधन विभाग का पुल बाढ़ में क्षतिग्रस्त नहीं हुआ। इसके नीचे पानी का स्तर रहा। पूर्व में भी कभी यह पुल बाढ़ में नहीं डूबा।
    साढ़े तीन मीटर कम रखी ऊंचाई
    समिति ने रतनगढ़ बसई मलिक मार्ग में सिंध नदी पर बने पुल, श्योपुर बड़ोदा मार्ग पर सीप नदी पर बने पुल, इंदरगढ़-पिछोर मार्ग पर सिंध नदी पर बने पुल, राठौरन की मढ़ैया से लारोल से जखमौली के मध्य सिंध नदी पर बने, गौरई अडोखर मार्ग पर सिंघ नदी पर इंदुर्खी घाट के पास बने पुल, मोउ-सेवढ़ा मार्ग पर सिंध नदी पर बने पुल और गिरधरपुर-मानपुर मार्ग पर सीप नदी पर बने पुल की जांच की। जांच में पया गया कि श्योपुर बड़ोदा मार्ग पर सीप नदी पर बने उच्च स्तरीय पुल के लिए विभाग के कार्यपालन यंत्री ने 105 मीटर लंबा पुल प्रस्तावित किया था जिसे बढ़ाकर 125 मीटर कर दिया था। जबकि, ऊंचाई जल संसाधन के पुल से साढ़े तीन मीटर कम रखी गई, जिसका कोई औचित्य नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया कि पुल की लंबाई बढ़ाने की जगह ऊंचाई पर ध्यान दिया जाता तो न तो पुल डूबता और न ही क्षतिग्रस्त होता। पुल निर्माण के लिए सर्वेक्षण के समय बांधों की जानकारी न देने से भी हाइड्रोलिक गणना की त्रुटि परिलक्षित हुई है।
    निलंबित इंजीनियर को सेवावृद्धि देने का प्रस्ताव
    उधर, क्षतिग्रस्त पुलों की जांच के बीच ही एमएस जादौन कार्यपालन यंत्री सेतु ग्वालियर को सेवावृद्धि देने का प्रस्ताव लोक निर्माण विभाग पहुंच गया है। जादौन 31 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 2019 में कूनो नदी पर बने पुल के क्षतिग्रस्त होने पर उन्हें निलंबित किया गया था। जांच में दोषमुक्त किए गए और अभी अधीक्षण यंत्री के प्रभार में भी हैं। जादौन के सेवा वृद्धि संबंधी आवेदन पर विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नोटशीट भी लिखी है।

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