190 करोड़ के घाटे में पौने चार लाख टन धान बेचेगी सरकार

 धान
  • कैबिनेट की मंजूरी के 42 दिन बाद धान नीलामी की तैयारी

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार 6 लाख 45 हजार टन गेहूं की नीलामी करने के बाद अब करीब पौने चार लाख टन धान की भी नीलामी करेगी। इससे सरकार को करीब 190 करोड़ रूपए की चपत लगेगी।
    गौरतलब है कि 28 सितंबर को कैबिनेट बैठक में सरकार ने धान की नीलामी करने का निर्णय लिया था। यह वह धान है जिसे केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 और 2019-20 की मिलिंग से शेष रहने के बाद सेंट्रल पूल में लेने से इंकार कर दिया है। नीलामी से 1500 से लेकर 1600 रुपए प्रति क्विंटल तक राशि मिलने की उम्मीद है।
    गौरतलब है कि प्रदेश में धान की खरीदी 29 नवंबर से शुरू होनी है, इसलिए नीलामी की कवायद भी साथ हो रही है ताकि नई धान को रखने की जगह मिल जाए। इस बार 45 लाख टन धान की खरीदी का अनुमान है जो पिछले साल से सात लाख टन ज्यादा होगी। नौ लाख किसानों ने धान बेचने के लिए पंजीयन भी करा लिया है। पीडीएस (राशन दुकानों) से करीब 9 से 10 लाख टन चावल बंटता है। जिसमें 14 से 15 लाख टन धान लगता है। साफ है कि नई खरीदी के बाद मप्र के पास सरप्लस धान करीब 30 लाख टन हो जाएगा।
    …तो गेहूं और धान सड़ना बंद हो जाएगा
    उल्लेखनीय है कि प्रदेश में हर साल गेहूं और धान की बंपर खरीदी होती है। लेकिन रख-रखाव के अभाव में वे खराब हो जाते हैं। मप्र के पूर्व कृषि निदेशक जीएस कौशल ने कहा कि दलहन-तिलहन को देश में आयात करना पड़ रहा है। यदि सरकारें इसे ही प्रोत्साहित करें और तकनीक के साथ किसानों को संसाधनों और समर्थन मूल्य घोषित करके मदद करें तो बेहतर स्थिति बनेगी। गेहूं और धान सड़ना बंद हो जाएंगे। समर्थन मूल्य की नीतियां भी ठीक करनी होंगी। जिनको सरकार खरीद रही है, उसी की किसान बुवाई कर रहा है। यह निश्चित होना चाहिए कि समर्थन मूल्य घोषित होने के बाद इससे नीचे किसान की फसल नहीं बिकनी चाहिए। प्रमुख सचिव खाद्य फैज अहमद किदवई का कहना है कि पौने चार लाख टन धान की नीलामी होनी है। नई धान की खरीदी 29 नवंबर से शुरू हो रही है। इसके पूरा होते ही नीलामी करेंगे। जहां तक नुकसान का सवाल है तो यह तो होता ही है।
    गेहूं नीलामी में लग चुकी है 400 करोड़ की चपत
    गौरतलब है कि गत महीनों में 6.45 लाख टन सरप्लस गेहूं नीलाम किया गया। इसमें नीलामी की शुरूआती प्रक्रिया विवादित रही, लेकिन बाद में आॅनलाइन टेंडर हुए और लगभग 1200 करोड़ में यह गेहूं बिका। इसमें भी विभाग को तमाम खर्चे मिलाकर करीब 400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। क्योंकि सिर्फ पांच कंपनियों ने ही समर्थन मूल्य 1975 रुपए प्रतिक्विंटल से अधिक रेट दिए। बाकी कंपनियों ने गेहूं की गुणवत्ता को देखते हुए 1500 और 1600 रुपए प्रति क्विंटल के रेट दिए। विभाग को नीलामी से पहले ही अनुमान है कि प्रति क्विंटल 500 रुपए का नुकसान होगा। धान का समर्थन मूल्य 1940 रुपए था, जो अब नए साल के लिए बढ़ गया है। नीलामी में जो धान रखनी है, वह 2017-18 की 12 हजार टन और 2018-19 की 3.70 लाख टन धान है जिसकी क्वालिटी को देखते हुए केंद्र सरकार भी लेने से मना कर चुकी है। इस का मूल्य 737 करोड़ रुपए है।

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