बच्चों को खिलाएगी सरकार अब शहद और च्यवनप्राश

  • कुपोषण दूर करने आयुर्वेद की शरण में महिला बाल विकास विभाग

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में अब छोटे बच्चों और किशोर लड़कियों को सरकारी खर्चे पर शहद और च्यवनप्राश खिलाने की तैयारी की जा रही है।  यह कदम सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केंद्र में आने वाले बच्चों के साथ ही गर्भवती माताओं को बतौर पुष्टाहार में आयुर्वेद के अनुसार पोषण देने के लिए उठाया जा रहा है। यह पूरी कवायद  कुपोषण से जंग लड़ने के  लिए की जा रही है।  
6 साल तक के बच्चों और 14 से 18 वर्ष तक की किशोरियों के साथ ही स्तनपान कराने वाली माताओं तथा गर्भवती स्त्रियों को भी दिए जाने वाले पुष्टाहार में आयुर्वेदिक खाद्य सामग्री च्यवनप्राश और वनीय शहद को शामिल किया गया है। इस संबंध में अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन ने कलेक्टरों को दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। जिले में माइनिंग फंड के तहत उपलब्ध राशि से यह व्यवस्था करने को कहा गया है। दरअसल प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान े आगामी एक साल में प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने की घोषणा कर चुके हैं।  इसके तहत मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम के तहत चयनित गंभीर कुपोषित बच्चों का समुदाय व पोषण पुनर्वास केंद्र स्तर पर प्रबंधन किया जा रहा है। साथ ही उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान कर समुचित उपचार कर कुपोषित बच्चे के जन्म को रोकने का काम महिला बाल विकास द्वारा स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से किया जा रहा है। लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र ने बच्चों एवं महिलाओं को कुपोषण से बाहर लाने के लिए कई आयुर्वेदिक औषधियां बनाई हैं। इन औषधियों की सूची आयुक्त महिला बाल विकास विभाग को दी गई थीं। साथ ही इसमें से च्यवनप्राश और वनीय शहद की आपूर्ति आंगनबाड़ी केंद्रों में किए जाने का सुझाव दिया गया था।
सभी जिलों को दिए गए निर्देश
महिला बाल विकास विभाग की यूनिट अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के संचालक ने सभी कलेक्टरों को पत्र लिखकर च्यवनप्राश और शहद आंगनबाड़ियों  में उपलब्ध कराने को कहा है। साथ ही इसके लिए डीएमएफ फंड से व्यवस्था करने कहा गया है।
वनवासियों को भी होगा फायदा
लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र अपनी दवाओं और उत्पादों के लिए लघु वनोपज संग्राहकों और स्व सहायता समूहों से कच्चा माल खरीदता है।  ऐसे में अगर डिमांड बढ़ती है तो वनवासियों की वनोपज की भी मांग बढ़ेगी जिससे उन्हें भी लाभ पहुंचेगा। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

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