प्रस्ताव मंजूर होते ही ज्यादा से ज्यादा किसानों का बीमा कराएगी सरकार

शिवराज सिंह चौहान

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की शिवराज सरकार अन्नदाताओं को खरीफ फसलों पर अधिक सुरक्षा प्रदान करने की कवायद में जुटी है। यही वजह है कि राज्य सरकार ने फसल बीमा के संबंध में केंद्र को भेजे प्रस्ताव में पिछले साल की तरह ही सरप्लस शेयरिंग व्यवस्था लागू रखने की अनुमति देने का अनुरोध किया है।
दरअसल इस व्यवस्था में प्रीमियम की दर कम रहती है और इससे केंद्र और राज्य सरकार को कम राशि देनी पड़ती है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक पिछले साल खरीफ और रबी फसलों के लिए बीमा कंपनी का चयन करने के लिए तीन बार निविदा बुलाई थी, लेकिन प्रीमियम की दर काफी अधिक आ रही थी।  इसे देखते हुए सरप्लस शेयरिंग व्यवस्था लागू की गई थी। इसके तहत ही पिछले साल खरीफ फसल में अधिक वर्षा के कारण किसानों को जो नुकसान हुआ था उसका बीमा दिया जाएगा। बता दें कि यह राशि पांच हजार करोड़ रुपए से भी अधिक रहने की संभावना है। प्रदेश के कृषि कल्याण मंत्री कमल पटेल के मुताबिक केंद्रीय कृषि मंत्रालय से अनुरोध किया गया है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन के लिए जल्द अनुमति दी जाए क्योंकि इसके बाद बीमा कंपनियों का चयन करने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। इस प्रक्रिया को पूरा करने में भी समय लगता है।
सीएम ने किया है केंद्रीय कृषि मंत्री से आग्रह
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पिछले साल के 44 हजार किसानों ने खरीफ फसलों के लिए बीमा कराया था। इस बार भी सरकार ज्यादा से ज्यादा किसानों को बीमा कराकर उन्हें सुरक्षा प्रदान करना चाहती है। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जुलाई के दूसरे सप्ताह में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करके सरप्लस शेयरिंग व्यवस्था को लागू रखने की अनुमति देने का अनुरोध किया था।
केंद्र से फसल बीमा का फार्मूला जल्द तय होने की है उम्मीद
प्रदेश से भेजे गए प्रस्ताव पर केंद्र से जल्द फार्मूला तय किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। प्रदेश में खरीफ फसलों का फसल बीमा किस फॉर्मूले के तहत होगा, यह केंद्र सरकार की अनुमति से ही तय किया जाना है। यही वजह है कि कृषि विभाग द्वारा पिछले साल की सरप्लस शेयरिंग व्यवस्था को बरकरार रखने का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका है। ज्ञात रहे कि इस व्यवस्था के तहत बीमा कंपनी की देनदारी कुल प्रीमियम के 80 से 110 प्रतिशत रखी गई है। इसमें खास बात यह है कि प्रीमियम के 80 फीसद से कम दावा (क्लेम) भुगतान की स्थिति में कंपनी शासन को अतिरिक्त राशि वापस करेगी। जबकि 110 फीसद से ज्यादा भुगतान होने पर अतिरिक्त वित्तीय भार कंपनी की जगह सरकार उठाएगी।

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