सरकार किसानों को फूलों की फसल बर्बाद होने पर देगी राहत

फूलों की फसल
  • प्रदेश में गुलाब, सेवंती और रजनीगंधा की खपत इंदौर, भोपाल के अलावा उज्जैन में सबसे अधिक होती है…

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में फूलों की खेती के व्यवसाय से जुड़े किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। पिछले साल कोरोना काल में लॉकडाउन और इस साल दूसरी लहर के दौरान कोरोना कर्फ्यू की वजह से देवस्थल, धार्मिक आयोजन, शादी-विवाह के साथ ही अन्य सभी सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध के कारण  फूलों का व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया।
    गुलाब पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। यही नहीं एक ओर जहां किसानों को बढ़ते खाद, बीज और दवाई की कीमत दो से दो-चार होना पड़ रहा है, वहीं कोरोना संकटकाल में हुए नुकसान को सहन करना पाना उनके लिए मुश्किल हो गया है। ऐसे में किसान संगठनों द्वारा नुकसान की भरपाई के लिए सरकार से सहायता की लगातार मांग की जा रही थी। यही वजह है कि अब सरकार फूलों की खेती से जुड़े किसानों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करने की तैयारी कर रही है। इस संबंध में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जो कैबिनेट को भेजा जा रहा है।  प्रस्ताव मंजूर होने के बाद किसानों को हुए नुकसान से राहत मिल जाएगी।
    बता दें कि खेती का रकबा बढ़ने के बाद भी पैदावार में कमी आई है। प्रदेश में करीब बीस तरह के फूलों की खेती की जाती है। जिनमें गेंदा, गुलाब, सेवंती, रजनीगंधा, ग्लेडियोलस व अन्य तरह के फूल शामिल है। ग्वालियर जिले से फूलों की सप्लाई दिल्ली और इंदौर के साथ ही महाराष्ट्र के मुंबई में भी होती है। प्रदेश में गुलाब, सेवंती और रजनीगंधा की खपत इंदौर, भोपाल के अलावा उज्जैन में सबसे अधिक होती है।
    खाद-बीज की बढ़ती कीमतों का असर
    फूलों की खेती के व्यवसाय से जुड़े विदिशा जिले के एक किसान ने बताया कि इस बार गेंदा और नौरंगा की तो लागत भी नहीं निकल पाई है। अब फिर से पौधे लगा रहे हैं जिनमें गणेशोत्सव तक फूल आएंगे। एक अन्य किसान ने बताया इस बार गेंदे का भाव कम होकर करीब सत्तर रुपए किलो हो गया है। यही नहीं इस क्षेत्र में अब बड़ी चुनौती खाद-बीज और दवाई की बढ़ती कीमतों को लेकर भी है। इस कारण भी खेती पर असर पड़ा है।
    रोजाना की कमाई हुई कम
    उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण काल में लगाए गए लॉकडाउन और इस वर्ष दूसरी लहर के दौरान लगाए गए कोरोना कर्फ्यू से फूलों की खेती करने वाले किसानों की  माली हालत बिगड़ गई है। इस व्यवसाय से जुड़े किसानों का कहना है कि सामान्य दिनों में जहां एक हजार से पंद्रह सौ रुपए तक प्रतिदिन फूल बेचकर आमदनी हो जाती थी। कोरोना संक्रमण की वजह से व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया है और अब मुश्किल से तीन सौ से पांच सौ रुपए तक ही कमाई हो रही है।
    नहीं होगी खाद की किल्लत
    मध्यप्रदेश सरकार ने इस बार खरीफ फसल की बोवनी का लक्ष्य 149 लाख हेक्टेयर तय किया है। इतने में खेती पर किसानों को करीब तेरह लाख मीट्रिक टन खाद की जरूरत होगी। हालांकि वर्तमान में समितियों के पास सिर्फ चार लाख मीट्रिक टन ही खाद उपलब्ध है। कृषि विशेषज्ञों की माने तो यूरिया की जरूरत बोवनी होने के बाद होती है। बोवनी के दौरान डीएपी की अधिक जरूरत होती है। 15 जून से अब तक करीब चालीस लाख हेक्टेयर में ही बोवनी हो पाई है। बहरहाल सहकारिता विभाग के अधिकारियों की माने तो केंद्र से खाद का आवंटन पर्याप्त हुआ है। जुलाई-अगस्त के लिए चार-चार लाख मीट्रिक टन का कोटा तय किया है। इससे प्रदेश में खाद की किल्लत नहीं होगी। खरीफ फसल की बोवनी 20 जुलाई तक पूरी हो पाएगी।

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