
माफिया के कब्जे में अभी भी 450 अरब की जमीन…
71 साल बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में आई बाढ़ से करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। सरकार ने हर प्रभावित व्यक्ति को पूरी मदद करने के लिए खजाना खोल दिया है। इस बीच अफसरों की प्रारंभिक रिपोर्ट में माना गया है कि बाढ़ के लिए नदी, तालाब, नालों, चरनोई भूमि पर अतिक्रमण बड़ी वजह है। बाढ़ से सबक लेते हुए सरकार अब प्रदेश भर में सरकारी जमीनों को मुक्त करने का अभियान सख्ती से चलाएगी।
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। ग्वालियर-चंबल के जिलों में आई बाढ़ के बाद किए गए प्रारंभिक आंकलन में यह बात सामने आई है कि अंचल की नदियों, तालाबों, नालों, चरनोई भूमि आदि पर अतिक्रमण बड़ी-बड़ी कॉलोनियां, व्यावसायिक संस्थान, मकान, दुकान, फैक्ट्री आदि बनाई गई हैं। इस कारण पानी का बहाव बाधित हो रहा है। जिसके कारण बाढ़ की विभीषिका का सामना लोगों को करना पड़ा। अफसरों की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद सरकार ने भू-माफिया के खिलाफ बड़े स्तर पर सख्त अभियान चलाने का निर्णय लिया है। मंत्रालयीन सूत्रों के अनुसार, राजस्व विभाग प्रदेशभर में सरकारी जमीनों, नदी, नालों और चरनोई भूमि पर किए गए अतिक्रमण की रिपोर्ट तैयार कर रहा है। उसके बाद संभवत: सितंबर से अभियान चलाकर सारे अतिक्रमण हटाए जाएंगे। अफसरों का दावा है कि प्रदेश में माफिया के कब्जे में करीब 450 अरब की जमीन है। गौरतलब है कि प्रदेश की खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने भी ग्वालियर-चंबल में आई बाढ़ के लिए भू-माफिया को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि तालाबों में कॉलोनियां और नालों में मकान बनेंगे तो बाढ़ जैसे हालात निर्मित होंगे। इससे पहले पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने भी इसी तरह के आरोप लगाए थे।
ताल-तलैया हो गए गायब
राजस्व विभाग के अफसरों का दावा है कि प्रदेश में दशकों पहले भू-माफिया ने रसूखदारों के संरक्षण में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किया है। आलम यह है कि प्रदेशभर में हजारों ताल-तलैया गायब हो गए हैं। बकौल यशोधरा राजे रियासत काल में जो ताल-तलैया हुआ करते थे, अब उन तालाबों में भू-माफिया ने कॉलोनी काट ली हैं। अगर तालाबों में कॉलोनी काटी जाएंगी तो बाढ़ के हालात तो निर्मित होंगे ही। राजस्व विभाग से मिली जानकारी के अनुसार ग्वालियर-चंबल में बाढ़ से 23 हजार से ज्यादा मकान टूटे हैं। 25 हजार हैक्टेयर क्षेत्र की खरीफ फसलें बर्बाद हो गई हैं। 166 सडक़ें, 25 बड़ी सडक़ और पुल, 2427 शहरी क्षेत्र के पुल-पुलिया और सडक़ें, 315 नहर फूटे हैं। नदियों के मुक्त प्रवाह के लिए संघर्ष कर रहे रणजीव कहते हैं कि विकास की मिसाल के रूप में बहुमंजिला इमारतें तैयार करते हुए हम सिर्फ नदियों का घर नहीं छीन रहे, बल्कि नदियों तक पानी लाने वाली छोटी-छोटी जल धाराओं, नाला-खाला और ढांगों को पाटकर हम पानी के हर रास्ते पर कब्जा कर रहे हैं। जिसका खामियाजा हमें ही उठाना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि अगर सचमुच हम बाढ़ की आपदा से मुक्ति चाहते हैं तो हमें प्राकृतिक नदी तंत्र को फिर से जिंदा करना होगा। तथाकथित विकास के हस्तक्षेप ने नदी को रिसोर्स मान लिया है और उसे गटर में बदल दिया है। वे कहते हैं कि हमने तटबंधन, सडक़, पुल-पुलिए और रेलवे का गलत तरीके से निर्माण कर नदियों के रास्ते को बाधित किया है। इसके अलावा नदियों के पेट में अवैध निर्माण हो रहा है। यह अवैज्ञानिक विकास ही बाढ़ के आफत में बदलने की वजह है।
प्रोग्रेस-वे से पहले बीहड़ों में अतिक्रमण
चंबल नदी किनारे बीहड़ों में प्रस्तावित फोर लेन मेगा हाइवे अटल चंबल प्रोग्रेस-वे के निर्माण की ईंट कब रखी जाएगी। इसका किसी को पता नहीं, लेकिन प्रोग्रेस-वे की आहट ने बीहड़ों में अतिक्रमण बढ़ा दिया है। श्योपुर से लेकर मुरैना तक हजारों बीघा बीहड़ों को समतल करके खेत बना लिए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह अतिक्रमण उस जगह बढ़ रहा है, जहां प्रोग्रेस-वे का निर्माण होना है। गौरतलब है कि भारत माला परियोजना के तहत नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) द्वारा राजस्थान के दीगोद से लेकर श्योपुर, मुरैना और भिंड होते हुए उत्तर प्रदेश तक को जोडऩे के लिए 404 किलोमीटर लंबा अटल चंबल प्रोग्रेस-वे बनाया जा रहा है। इस एक्सप्रेस-वे की लंबाई मप्र के श्योपुर, मुरैना व भिंड जिले में 309.08 किलोमीटर होगी और इसके निर्माण पर 6 हजार 58 करोड़ 26 लाख रुपए का खर्च आंका जा रहा है। प्रोग्रेस-वे से पहले बीहड़ों में बढ़ रहे अतिक्रमण का उदाहरण ऐसे समझिए कि जौरा क्षेत्र के तिंदोखर से लेकर देवगढ़, कोटरा और कोल्हूडांडा तक जिन बीहड़ों में मिट्टी के पहाड़ नजर आते थे वहां अब सैकड़ों बीघा समतल जमीन और कईयों जगह उस जमीन पर खेती नजर आ रही है। तिंदोखर के अलावा खाड़ौली, मथुरापुरा, गड़ोरा, जखोना, बरवाई, रायपुरा, नगरा, कनेरा से लेकर भिंड के अटेर, खैरी, खिपैना, बिजौरा क्षेत्र में बीहड़ों की कटाई और उनके समतीलीकरण का काम आज भी तेजी से चल रहा है। श्योपुर जिला प्रशासन के अनुसार बीते एक से डेढ़ साल में 700 बीघा से ज्यादा बीहड़ों में अतिक्रमण करके खेत बना लिए गए हैं। मुरैना में चंबल एक्सप्रेस-वे की लंबाई सबसे अधिक 144 किमी है, इसलिए मुरैना के 2200 से 2500 बीघा बीहड़ों में अतिक्रमण हो चुका है। प्रोग्रेस-वे के लिए मुरैना, श्योपुर व भिंड में किसानों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है। किसानों को जमीन के बदले सरकार दूसरी जगह पर जमीन देने का वादा कर रही है। बस इसी वादे ने बीहड़ों में अतिक्रमण बढ़ा दिया है। बीहड़ों में जिनकी जमीन अधिग्रहण हो रही है उनमें से अधिकांश के पास जमीन के दस्तावेज नहीं हैं। इसी का फायदा अतिक्रमणकारी उठा रहे हैं। ताजा-ताजा अतिक्रमण करके उसे पटवारी और ग्राम पंचायत से साठगांठ करके दशकों पुराना बता देंगे और उसके बाद सरकार से दूसरी जगह जमीन ले लेंगे। चूंकि सरकार जो जमीन देगी वह दस्तावेजों में भी दर्ज हो जाएगी और विधिवत मालिकाना हक भी हो जाएगा।
भूमाफिया भी आएंगे गैंगस्टर एक्ट के दायरे में
गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि संगठित अपराध रोकने के लिए प्रदेश में लागू हो रहे गैंगस्टर विरोधी कानून के दायरे में भूमाफिया, खनिज माफिया और वन माफिया भी आएंगे। अवैध शराब कारोबार करने वालों से लेकर जुआ खिलाने वाले या विस्फोटकों का काम करने वाले सभी कानून के दायरे में होंगे। इस कानून पर जल्द सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय भी गठित किए जाएंगे। काले कारनामों से बनाई संपत्ति भी राजसात होगी। अपराधियों में कानून का डर होना जरुरी है। प्रविधान किया जा रहा है कि आरोपितों की अनुपस्थिति में भी एक्ट के तहत विशेष न्यायालय में सुनवाई चलती रहेगी। शिवराज सरकार प्रदेश का माफिया मुक्त करना चाहती है। इसलिए कठोर कानून बनाने की कवायद चल रही है। प्राकृति सौंदर्य और खनिज संपदा से भरपूर मप्र का जितना अवैध दोहन हुआ है उतना किसी और राज्य का नहीं हुआ है। 3,08,252 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मप्र में लाखों हैक्टेयर जमीन भू माफिया और रसूखदारों ने सीलिंग एक्ट की आड़ में कब्जा कर रखी है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी भूमिहीन है। भू-माफिया ने वन भूमि, चरनोई भूमि, ग्रीन बेल्ट, मरघट, कब्रिस्तान, खेल मैदान, नदी, तालाब आदि पर कब्जा कर रखा है। शासकीय अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े स्तर पर गोलमाल किया गया है। सरकार अब सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की जिलावार सूची बनवाकर उनके कब्जे से जमीन छुड़वा रही है। अफसरों के अनुसार सितंबर माह से एक बार से भू-माफिया के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। गौरतलब है कि पिछले डेढ़ साल में प्रदेश में अपने रसूख के दम पर सरकारी जमीनों पर अवैध रुप से बड़े होटल, रेस्टोरेंट, गोदाम, घर बनाकर ठप्पे से रहने वाले भू-माफिया, ड्रग माफिया, शराब माफिया और अवैध कामों में लिप्त लोगों पर सख्त कार्यवाही की गई है। अब एक बार फिर से सरकारी जमीनों को मुक्त कराने का अभियान चलाया जाएगा। गत वर्ष आयुक्त भू-अभिलेख ने करीब 3.32 लाख हैक्टेयर जमीन पर कब्जे का गोलमाल पकड़ा था। जिसकी कीमत करीब 450 अरब रुपए से अधिक हो सकती है। मप्र में एक तरफ सरकार माफिया पर अंकुश लगाने के लिए कायदे-कानून सख्त करती है, वहीं अधिकारियों के साथ मिलकर रसूखदार माफिया अपना अवैध कारोबार बेरोकटोक बढ़ाते रहते हैं। खासकर सरकारी भूमि पर कब्जा करने का कालाकारोबार यहां बेरोकटोक चल रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मप्र में 231.34 लाख हैक्टेयर भूमि कृषि उपयोग की है। वहीं वन क्षेत्रफल 85.89 लाख हैक्टेयर, काश्त उपयोगी पड़त भूमि 10.02 लाख हैक्टेयर, कुल पड़त भूमि 9.81 लाख हैक्टेयर है। लेकिन हकीकत में वन भूमि, चरनोई और पड़त भूमि पर बड़े स्तर पर भू माफिया ने कब्जा किया है। सरकार भूमि को कब्जाने का यह खेल सुनियोजित तरीके से किया गया है। इसे कब्जाने वाले रसूखदार लोग हैं। अनुमानत: भू माफिया के कब्जे में वाली इन जमीनों की कीमत कम से कम 250 अरब रुपए होगी। अब उसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार एक-एक माफिया से सरकारी जमीनों को मुक्त करवा रही है।
42 लाख हैक्टेयर जमीन लापता…
मप्र में जमीनों का गोरखधंधा किस मुकाम पर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां वर्षों से 42 लाख हैक्टेयर जमीन लापता है। इसमें राजधानी भोपाल की ही 65 हजार हैक्टेयर जमीन सरकारी रिकॉर्ड से गायब है। सरकारी रिकॉर्ड से जमीन गायब होने का ये पूरा मामला वर्ष 1980 से 2000 के बीच का बताया जा रहा है, जिसमें शहडोल, सीधी, शिवपुरी, बालाघाटा और छिंदवाड़ा में सबसे ज्यादा जमीन गायब हुई है। यहां वर्ष 1980 से 2000 के बीच दो लाख हैक्टेयर से लेकर पांच लाख हैक्टेयर तक जमीन का रिकॉर्ड नहीं मिल पा रहा है। शहडोल की बात करें तो वर्ष 1980 से पहले यहां सरकारी जमीन करीब 13 लाख 55 हजार 066 हैक्टेयर थी, जो वर्ष 2000 में घटकर मात्र 6 लाख 44 हजार 964 हैक्टेयर ही रह गई है। यानी कि 5 लाख 41 हजार 042 हैक्टेयर जमीन का ही सरकारी रिकॉर्ड उपलब्ध है। सीधी में 3 लाख 62 हजार 030 हैक्टेयर, शिवपुरी में 3 लाख 12 हजार 200 हैक्टेयर, बालाघाट में 2 लाख 28 हजार 322 हैक्टेयर, छिंदवाड़ा में 2 लाख 16 हजार 560 हैक्टेयर और सतना में 2 लाख 3 हजार 485 हैक्टेयर सरकार जमीन गायब है। हालाकि सागर में 407 हैक्टेयर, उज्जैन में 663 हैक्टेयर और देवास में 985 हैक्टेयर जमीन गायब है, जबकि होशंगाबाद और विदिशा में जमीन का रिकॉर्ड सही पाया गया है। राजस्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में सरकारी जमीनों को कब्जाने का धंधा वर्षों से चल रहा है। शासन और प्रशासन की मिलीभगत से यह कालाकारोबार लगातार चल रहा है। हालांकि 42 लाख हैक्टेयर जमीन रिकार्ड से गायब होने का मामला सामने आने के बाद इसकी पड़ताल शुरू हो गई है। सभी जिलों के कलेक्टरों को पत्र लिखा गया है। रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है।
15 हजार हैक्टेयर गोचर भूमि गायब
मप्र में सरकारी रिकार्ड से जमीनों के गायब होने की पड़ताल के दौरान ग्वालियर जिले में साल 2004 के बाद से 15 हजार हैक्टेयर चरनोई यानि की गोचर की भूमि गायब पाई गई है। आनन-फानन में कलेक्टर ने इसकी जांच बैठा दी है लेकिन मासला रसूखदार भूमाफियों से जुड़ा हुआ है, तो प्रशासन भी कुछ नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसके ही लैंड रिकॉर्ड विभाग में इन जमीनों की 552 फाइलें गायब है। जिनकी बढ़ी शिद्दत से तलाश की जा रही है। वहीं कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर हमला कर रही है। लेकिन इस बीच यही सवाल है क्या 15 हजार हैक्टेयर जमीन शासन को वापस मिल पाएंगी। जानकारी के अनुसार मप्र में 1968 के बाद भू-अभिलेख विभाग में रिसायतकालीन जमीन को चरनोई यानि की गोचर की भूमि के लिए हर एक ग्राम पंचायत में आरक्षित किया गया था। लेकिन आज वो जमीन सरकारी नक्शें से गायब हो गई है। आनन-फानन में इसकी जांच बैठाई गई है तो चौंकाने वाले खुलासे हो रहे है। जिसमें 552 फाइलें गायब है तो वहीं 15 हजार हैक्टेयर चरनोई यानि की गोचर की भूमि तो वहीं 23 हजार हैक्टेयर पड़त (सरकारी उपजाऊ) भूमि पर दंबगों का कब्जा मिला है। ये जो आंकड़े है, वो चौंकाने वाले है। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा दोनों इस मुद्दे पर आमने-समाने आ गए है। कांग्रेस कह रही है ये सारी 2004 के बाद से गायब हुई है। ग्वालियर जिला प्रशासन और भू-अभिलेख विभाग की जांच में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। जांच में जो आकड़े प्रशासनिक अफसरों को मिले है, उसमें दस हजार हैक्टेयर जमीन पर दबंगों का कब्जा है। ऐसे में अफसर उन जमीनों को लिस्टेड कर रहे हैं जिन पर कब्जाधारी दंबगों पर बेदखली की कार्रवाई करने के साथ-साथ प्रशासन के निचले राजस्व के आधिकारियों को राउंडअप कर रहे है जिनकी शह पर जमीनों का ये फर्जीवाड़ा हुआ है।
22,000 गांवों में नहीं बची चरनोई भूमि
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में विकास ने नाम पर प्रदेश में जमीनों की ऐसी बंदरबांट की गई है कि अफसरों ने रसूखदारों को पड़त और चरनोई भूमि बांट दी है। पिछले एक दशक में प्रदेश में करीब 25,000 हैक्टेयर चरनोई भूमि पर या तो अतिक्रमण हो गया है या फिर रसूखदारों को आवंटित कर दी गई है। मार्च 2010 में विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह आश्वासन दिया था कि प्रदेश में यदि किसी कलेक्टर ने किसी व्यक्ति के लिए चरनोई भूमि की अदला बदली की है तो ऐसे मामलों की जांच कर उसे निरस्त किया जाएगा। लेकिन आज 10 साल बाद स्थिति यह है कि प्रदेश के 22,000 गांवों में चरनोई भूमि ही नहीं बची है। मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 237 (1) के तहत चरनोई भूमि को प्रथक रखा जाना है और इस पर शासन का अधिकार रहता है। लेकिन मुख्यमंत्री के आश्वासन को राजस्व अमले ने गंभीरता से नहीं लिया था। दरअसल प्रदेश में भू-माफिया, दलाल, पूंजीपतियों और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से चरनोई भूमि को लूटा जा रहा है। प्रदेश में सर्वाधिक चरनोई भूमि की बंदरबांट उन जिलों में हुई है जहां तेजी से विकास हुआ है। कटनी, सतना, रीवा, शहडोल, छतरपुर, ग्वालियर, भिंड सहित करीब दो दर्जन जिलों में करोड़ों रुपए की चरनोई भूमि पर प्रशासन की ढुलमुल नीति और लचर व्यवस्था के चलते असरदार भू-माफिया के कब्जे में चली गई है। सरकारी जमीन को अतिक्रमणकारियों के कब्जे से मुक्त कराने के नाम पर अधिकारी कागजी कार्रवाई में उलझे रहते हैं। चौतरफा हो रहे सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को रोक पाने में प्रशासन बौना साबित हो रहा है। शासकीय संपत्ति का किस प्रकार दोहन किया जा रहा है और इसकी देखभाल करने के लिए रखे गए जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी किस प्रकार अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरेआम भू-स्वामित्व और राजस्व रिकार्ड की बेशकीमती सरकारी भूमि भू-माफिया के कब्जे जा रही है, किंतु शासन और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
3200 हैक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण
मप्र में भू-माफिया किस कदर पावरफुल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस दौरान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार माफिया मुक्त मप्र का अभियान चला रही थी, उसी दौरान में माफिया ने वन विभाग की करीब 3200 हैक्टेयर से ज्यादा भूमि पर कब्जा कर लिया। इसमें से ज्यादातर भूमि पर रसूखदारों ने वन्य संपदा को नष्ट किया है। वन मुख्यालय भोपाल से मिले आंकड़े के अनुसार प्रदेश में 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक 3201 हैक्टेयर भूमि पर नया अतिक्रमण किया है। जिसमें सबसे ज्यादा अतिक्रमण इंदौर वन वृत्त के अंतर्गत खंडवा, खरगौन, बुरहान जिले में हुए हैं। इंदौर वन वृत्त में 492 हैक्टेयर वन भूमि पर माफिया ने अतिक्रमण किया है। खास बात यह है कि सरकार सिर्फ 9 हैक्टेयर भूमि से ही कब्जा हटाने में कामयाब हो पाई है। इसी तरह इसी अवधि में खंडवा वन वृत्त में 801 हैक्टेयर, शिवपुरी वन वृत्त में 868 हैक्टेयर, बैतूल में 154 हैक्टेयर, सागर में 131 हैक्टेयर और ग्वालियर 108 हैक्टेयर वन भ्ूामि पर माफिया ने अतिक्रमण किया है। एक साल की अवधि में वन भूमि पर अतिक्रमण से जुड़े 1828 प्रकरण दर्ज किए गए हैं। वैसे देखा जाए तो मप्र में भू-माफिया की नजर सबसे अधिक वन भूमि पर रहती है। सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मप्र में पिछले 30 साल में रसूखदारों ने 5,747 वर्ग किमी वन भूमि पर कब्जा जमा लिया है। इतनी वन भूमि को कब्जाने के लिए हजारों वन्य प्राणियों और पेड़ों की बलि दी गई है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि वन क्षेत्र में लगातार अतिक्रमण हो रहा है। इस कारण बाघ, हिरण, भालू, तेंदुआ आदि के शिकार के भी मामले बढ़े हैं, लेकिन सरकार के तरफ से इन्हें रोकने के लिए कोई कठोर कानून नहीं बनाए जा सके हैं।