निजी हाथों में होंगी अब सरकारी मृदा परीक्षण लैब

सरकारी मृदा परीक्षण लैब
  • बनने के बाद से ही पड़ी हुई हैं बंद

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। शिवराज सरकार के समय किसानों को उनकी जमीन की गुणवत्ता बताने के लिए विकासखंड स्तर पर बनाई गईं मृदा परीक्षण लैबें अब तक शुरु नहीं हो पायी हैं। इसकी वजह थी लैब तो बना ली गईं, लेकिन उनके लिए अमले की व्यवस्था ही नहीं की गई। इनका निर्माण केन्द्र सरकार की मदद से किया गया था। प्रदेश के 313 विकासखंडों में 150 करोड़ रु से ज्यादा खर्च कर 263 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं बनाई गई थी, वे तभी से धूल खा रही हैं।
अब इनको शुरू करने के लिए सरकारी अमले के  संकट को देखते हुए निजी संस्थाओं को सौंपने की तैयारी कर ली गई है। इस संबंध में प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद कृषि विभाग ने इस दिशा में कार्रवाई तेज कर दी है। करीब तीन महीने में इन लैबों में मिट्टी परीक्षण का कार्य शुरू हो जाएगा। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सभी विकासखंडों में सॉइल टेस्टिंग लैब को कृषक उत्पादक संगठनों या कृषि क्षेत्र से जुड़ी अन्य किसी संस्था को देने के लिए जल्द ही राज्य स्तर से एक विज्ञापन जारी किया जाएगा। इसके जरिए सभी जिलों में संबंधित विकासखंडों में लैब शुरू करने को लेकर आवेदन मंगाए जाएंगे। इसमें कृषि कार्य से जुड़े संगठन और संस्थाएं आवेदन करने के लिए पात्र होंगे। यदि किसी विकासखंड में एक से ज्यादा संस्थाएं आवेदन करती हैं, तो संस्थाओं का टर्नओवर देखा जाएगा और ज्यादा टर्नओवर वाली संस्था या संगठन को प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसे ही यदि कहीं पर कोई संस्था या संगठन आवेदन करने आगे नहीं आता है, तो कृषि संकाय में स्नातक, पीजी या पीएचडी डिग्रीधारी को लैब संचालन की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। यह प्रक्रिया लगभग तीन महीने में पूरी हो जाएगी। इसके बाद लैबों में मिट्टी परीक्षण काम शुरू हो जाएगा। कृषि अधिकारियों का कहना है कि सॉयल टेस्टिंग लैब का संचालन शासन द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार किया जाएगा। इसमें मिट्टी परीक्षण सैंपलों की जांच की अधिकतम अवधि, प्रति सैंपल शुल्क आदि शामिल होगा। यदि कोई संस्था या संगठन नियमों का उल्लंघन करेगी, तो उससे लैब संचालन का काम वापस ले लिया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि प्रति सैंपल जांच का शुल्क निर्धारित किया जा रहा है। यह प्रति सैंपल 200 से 300 रुपए हो सकता है।
इसलिए जरूरी है मिट्टी परीक्षण
मिट्टी की गुणवत्ता यदि अच्छी होती है, तो फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, जिसके लिए जरूरी है कि समय-समय पर मिट्टी का परीक्षण किया जाए। पौधे की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए कुल 17 पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व कितनी मात्रा में उपस्थित हैं, इसकी जानकारी के लिए मिट्टी जांच की जाती है। मिट्टी का परीक्षण सामान्यत: 2 या 3 वर्ष में करवाना चाहिए। मिट्टी परीक्षण से पता चलता है कि उस खेत में कौन सी फसल की खेती कर अच्छी पैदावार पा सकते हैं। मिट्टी में प्राथमिक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों में किस पोषक तत्व की अधिकता या कमी है। मिट्टी के परीक्षण में भूमि के अम्लीय और क्षारीय गुणों की जांच की जाती है। खेती से बेहतर पैदावार और उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाना जरूरी है।
इसलिए सरकार ने लिया यह निर्णय
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में 25 जून को हुई कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के सभी 313 ब्लॉक में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं शुरू करने का निर्णय लिया गया था। सूत्रों का कहना है कि कृषि क्षेत्र से जुड़े संगठनों व संस्थाओं को लैब संचालन की जिम्मेदारी सौंपने से सरकार को लैब के संचालन के लिए उपकरणों की खरीदी और स्टाफ की नियुक्ति पर होने वाला खर्च बचेगा। सरकार ने तय किया है कि कृषि संकाय में डिग्री लेने वाले युवाओं को लैब में सैंपल परीक्षण के कार्य में प्राथमिकता दी जाएगी। इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा। किसानों के मिट्टी के नमूनों का परीक्षण कराकर सॉइल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराए जाएंगे। केंद्र सरकार ने सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम शुरू की है। इसमें मप्र समेत सभी राज्यों को अधिक से अधिक किसानों के खेतों के मिट्टी के नमूनों की जांच कर सॉइल हेल्थ कार्ड वितरण के निर्देश दिए हैं।
शो-पीस बनीं  लैब
तत्कालीन शिवराज सरकार ने करीब आठ साल पहले प्रदेश के हर विकासखंड में सॉइल टेस्टिंग लैब खोलने का निर्णय लिया था, ताकि किसानों को मिट्टी का परीक्षण कराने जिला मुख्यालय न जाना पड़े। इसके बाद प्रदेश के 265 ब्लॉक में सॉइल टेस्टिंग लैब बनाई गई और इनके लिए उपकरण खरीद लिए गए, लेकिन इन लैब में स्टाफ की नियुक्ति नहीं होने से ये लैब शौ-पीस बनकर रह गईं।

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