
- अब लोकसभा चुनाव के बाद होंगे सहकारिता चुनाव
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सहकारिता चुनाव की आस जगी थी, लेकिन सरकार चुनाव टालने की तैयारी में है। अब संभावना जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही सहकारिता चुनाव होंगे। उल्लेखनीय है कि प्रदेश की सहकारी संस्थाओं के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पाए हैं। राज्य सरकार इनमें प्रशासक नियुक्त कर काम चला रही है। सरकार इस तैयारी में भी है कि सहकारिता के चुनाव को लोकसभा चुनाव तक टाल दिया जाए। वर्तमान में मध्य प्रदेश में सहकारी संस्थाओं का कार्यकाल खत्म होने के एक साल के अंदर चुनाव कराने का प्रविधान है। इसके लिए अभी तक सदस्य सूची ही तैयार नहीं हुई है। समितियों का कार्यकाल समाप्त हुए पांच साल से अधिक समय हो चुका है। कुछ प्रकरण न्यायालय में भी विचाराधीन हैं। उधर, राज्य सहकारी संघ के चुनाव पिछले 18 सालों से नहीं हुए हैं। राज्य सहकारी विपणन संघ मार्कफेड एवं लघु वनोपज संघ के चुनाव भी नहीं हो पाए हैं। इस स्थिति को देखते हुए सरकार अब निर्वाचित संचालक मंडल का कार्यकाल समाप्त होने के एक साल के भीतर चुनाव कराने की बाध्यता को समाप्त करने जा रही है। जानकारों का कहना है कि चुनाव नहीं होने के कारण प्रदेश में सहकारिता आंदोलन की हालत बेहद खस्ता है। सहकारी आंदोलन के पीछे जो कल्पना थी वह अब किसी सपने की तरह नजर आती है। बैजनाथन कमेटी की सिफारिशें ज्यों की त्यों कहीं भी लागू नहीं हुई और सहकारिता को आत्मनिर्भर बनाने की जगह इन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ता गया। मुफ्त चुनावी घोषणाओं ने भी बैंकों की माली हालत खराब की। आलम यह है कि मालवा- निमाड़ अंचल के कुछ बैंकों को छोड़ दे तो प्रदेश के विंध्य, महाकौशल, चंबल और बुंदेलखंड अंचल के तहत आने वाले सेन्ट्रल को-आपरेटिव बैंकों की हालत बेहद खराब है और वे बड़े कर्ज में डूबे हुए हैं। कुछ बैंक तो बंद होने की कगार पर हैं ये सरकार की गारंटी पर चल रहे हैं।
अब हर पंचायत पर एक साख समिति गठित करने का प्लान
सूत्रों की मानें तो सरकार ने हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि हम सहकारी समितियों का पुनर्गठन करने जा रहे हैं। अभी दो से तीन पंचायतों पर एक सहकारी साख समिति है, अब हर पंचायत पर एक साख समिति गठित करने का प्लान है। इसके अलावा एक महीने की मोहलत यह कह कर मांगी गई है कि छह जनवरी से लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम शुरू हो रहा है। बताया जाता है कि सरकार के इस जवाब के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई फरवरी माह तक के लिए टाल दी है। सुनवाई टलने से साफ है कि अब चुनाव और आगे बढ़ेंगे। कारण साफ है। फरवरी के अंत में या मार्च में लोकसभा चुनाव को लेकर आचार सहिंता लग सकती है। प्रदेश में सहकारिता के चुनाव पिछले दस सालों से अधिक समय से नहीं हुए है। जिससे सहकारिता आंदोलन में आम आदमी की भागीदारी थम सी गई है। बैंकों में जहां चुने हुए जनप्रतिनिधि होने चाहिए वहा सरकारी अफसर प्रशासक बने बैठे हैं। सरकार ने पिछले दिनों एक्ट में संशोधन कर अशासकीय व्यक्ति को भी प्रशासक बनाने का रास्ता खोल दिया है। इसमे विधायक और सांसदों को भी शामिल किया गया है। जहां तक सहकारिता एक्ट का सवाल है तो एक्ट में साफ है कि छह महीने से अधिक समय तक प्रशासक नहीं बैठ सकता। हालांकि इससे पूर्व में नियम था कि जब तक नए बोर्ड का गठन नहीं हो जाता तब तक पुराना बोर्ड प्रभावशील रहेगा पर अफसरों ने सहकारिता का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथ में लेने की मंशा से इसमें भी संशोधन करवा दिया है।
नहीं शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया….
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सहकारिता क्षेत्र में जगी चुनाव की आस एक बार फिर धीमी पड़ती दिखाई दे रही है। हाईकोर्ट के निर्देश पर कोऑपरेटिव इलेक्शन कमेटी ने आठ जनवरी से प्राथमिक साख सहकारी समिति के चुनाव कराने को कहा था, पर सरकार ने इसे लेकर जो हाईकोर्ट में जवाब दिया है, उससे तय है कि चुनाव अब फिर कुछ वक्त के लिए टल जाएंगे। माना जा रहा है कि सहकारिता चुनाव की प्रक्रिया अब लोकसभा चुनाव के बाद ही शुरू की जाएगी। लंबे समय से रूके सहकारिता चुनावों को कराए जाने को लेकर हाईकोर्ट में एक दर्जन से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट से सरकार को निर्देश दिए थे कि वह जल्द से जल्द सहकारिता चुनाव कराए। आठ जनवरी से इसकी प्रक्रिया शुरू करने को कोर्ट ने कहा था।
अभी वोटर लिस्ट बन रही है
प्रदेश में 4600 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां है। इनमें वोटर लिस्ट बनने का काम अभी जारी है। इसके लिए रजिस्ट्रीकरण अधिकारियो की नियुक्ति होती है। इन समितियों में 11 संचालक चुने जाते हैं। इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष से लेकर एक बैंक प्रतिनिधि का चुनाव होता है। इसके साथ ही छोटे जिलों से दो और बड़े जिले से एक डायरेक्टर का चुनाव होता है। ये डायरेक्टर ही जिला कापरेटिव बैंक और अपेक्स बैंक के अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अलावा मार्केटिंग सोसायटी समेत अन्य सोसायटी जिसे साख सहकारी संस्थाएं कहा जाता है, उनमें भी इसी तर्ज पर चुनाव होते है। इन संस्थाओं में भी लंबे समय से चुनाव नहीं हुए है और गेंद पूरी तरह अफसरों के पाले में है।