अमानक दवाओं का बोलबाला, लापरवाही की इंतहा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र में दवा माफिया कितना हावी है इससे ही समझा जा सकता है कि सरकारी अस्पतालों में बुखार व विटामिन जैसी दवाएं तो ठीक गंभीर बीमारियों की दवाएं भी अमानक वितरित की जा रही हैं, जिससे आम आदमी की जान को खतरा बना रहता है। इस मामले में सरकार से लेकर विभाग तक बेहद लापरवाह नजर आता है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि इसकी पुष्टि खु़द दवाओं की जांच से होती है। इस जांच में गोली, कैप्सूल से लेकर सीरप तक सभी अमानक पाए गए हैं। इसलिए सरकारी दवाओं पर भरोसा कर आप ठीक होना चाहते हैं, तो पूरी तरह से सावधान रहें। जो दवाएं अमनाक पायी गई हैं उनमें से अधिकांश दवाओं को एक ही कंपनी द्वारा सप्लाई किया गया है। इससे यह तय हो गया है कि प्रदेश के सरकारी अस्पताल दवा माफिया के लिए अमानक दवाएं खपाने का प्रमुख केन्द्र बन चुके हैं। मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कारपोरेशन के रिकॉर्ड के मुताबिक सरकारी अस्पताल में सप्लाई हो चुके 31 दवाओं और इंजेक्शन के बैच एनएबीएल लैबोट्री की जांच में फेल हुए हैं। इसमें सामान्य बुखार की गोली एवं विटामिन की गोलियां और सीरप तो एनएबीएल लैब की जांच में अमानक निकले ही हैं, परंतु गंभीर और जानलेवा बीमारियों जैसे हार्ट पेशेंट, लंग्स, गठिया, ब्लड प्रेशर व महिलाओं के जीवन रक्षक दवाइयां और इंजेक्शन के भी जांच में खरे नहीं उतरे हैं। एनएबीएल से प्रमाणित लैब की रिपोर्ट में ये दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हुई हैं। इन दवाओं का सेवन मरीजों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक किसी दवा की गुणवत्ता रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक उसका सेवन करना जोखिम भरा है।
5 कंपनियों की कई दवाओं की क्वालिटी रिपोर्ट खराब
मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कारपोरेशन ने कमाल किया है। कारपोरेशन में दर अनुबंधित कुछ कंपनियां तो ऐसी निकली, जिनकी एक नहीं दो से ज्यादा बैच और कुछ कंपनियों के तो एक से ज्यादा प्रोडक्ट एनएबीएल लैब की जांच में गड़बड़ निकले। इसके बाद भी कारपोरेशन ने इन कंपनियों पर कार्यवाही के नाम पर 2 साल के प्रतिबंध लगाया और जितने मूल्य का बैच जांच में फेल हुआ है, उतनी राशि जमा कराई और जमा न करने की स्थिति उतनी राशि कंपनी के अमानत राशि में काटी है। जिन कंपनियों की एक से ज्यादा दवाइयां, इंजेक्शन और सिरप लैब की जांच में फेल हुए हैं, उनमें इंदौर की नंदिनी मेडिकल लेबोरट्री, पीथमपुर धार की क्वेस्ट लेबोरेट्री, गुजरात की रेडियेंट पेरेटियल्स लिमिटेड, हरियाणा की जी लेबोरेट्री, हिमाचल प्रदेश की मार्टिन एंड ब्राउन बायो साइंसेस लिमिटेड शामिल हैं।
इस तरह से की जाती है खरीदी
मध्य प्रदेश हेल्थ कारपोरेशन दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की खरीदी के लिए टेंडर प्रक्रिया अपनाता है। इसमें शामिल होने वाले दवा निर्माता और सप्लायरों से एनएबीएल प्रमाणित लैब रिपोर्ट और डब्ल्यूएचओ द्वारा तय किए गए जीएमपी (गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रेक्टिसेस) सर्टिफिकेट मांगा जाता है। टेंडर में सफल कंपनियों से कारपोरेशन दर अनुबंध करता है। इस अनुबंधित दर की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के भंडारण शाखा व सीएमएचओ और सिविल सर्जन के पास ऑनलाइन पोर्टल पर दी जाती है। जैसे ही किसी सरकारी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज को दवाओं की जरूरत होती है, वे इन्हीं अनुबंधित कंपनियों से ऑर्डर कर दवाएं मंगवाते हैं।
बरती जाती है लापरवाही
दवा सप्लाई आने पर उसकी पहले जांच करानी चाहिए और फिर उसे मरीजों को दी जानी चाहिए, लेकिन प्रदेश में जांच रिपोर्ट आने से पहले ही मरीजों को दवाएं प्रदान कर दी जाती है। बाद में रिपोर्ट आने पर पता चलता है कि बांटी गई दवाएं अमानक स्तर की है। ऐसे में मरीज को तो परेशानी होती ही हैं और दवा कंपनियों को फायदा हो जाता है। विभाग को चाहिए की वह उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, जिससे अमानक दवाओं की सप्लाई आपूर्तिकर्ता करने की हिम्मत ही नहीं कर सके। ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई जैसा कदम उठाया जाना चाहिए।