
- ठेका प्रथा ने बिगाड़ा विभागों का ढांचा, आउटसोर्स कर्मचारी भी आंदोलन की राह पर
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। अगर कहा जाए की मप्र की सरकारी मशीनरी ठेकेदारों के भरोसे चल रही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रदेश का अधिकांश सिस्टम ठेके पर चल रहा है। इससे विभागों का ढांचा तो बिगड़ ही रहा है, उधर ठेकेदारों (आउट सोर्सिंग एजेंसियों)की मनमानी के कारण विभागों में कार्यरत आउट सोर्स कर्मचारी परेशान हो रहे हैं। अब विभिन्न विभागों में कार्यरत आउट सोर्स कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों के दौरान प्रदेश में विकास योजनाओं की झड़ी लग रही है। इस कारण विभागों पर काम का बोझ बढ़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ कई विभागों में नई भर्ती पर अघोषित रोक है और हर वर्ष बड़ी संख्या में नियमित कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे है। ऐसे में मेन पावर की कमी ठेकेदारों (आउट सोर्सिंग एजेंसियों) से पूरी की जा रही है। आलम यह है कि अस्पतालों सहित अन्य विभागों में सफाई और सुरक्षा से शुरू हुआ ठेका सिस्टम सरकार में इस कदर रच बस चुका है कि विभिन्न विभागों में विभागाध्यक्ष से लेकर प्रमुख सचिव के कार्यालय तक में ठेकेदारों द्वारा नियुक्त कर्मचारी काम कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में कर्मी कल्चर शुरू हुआ था जिसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शुरूआती कार्यकाल में संविदा से शुरू होकर अब आउट सोर्स में बदल गया है।
ठेका प्रथा के खिलाफ आउट सोर्स कर्मचारी लामबंद
ठेकेदारों की मनमानी का आलम यह है कि ठेका प्रथा (आउट सोर्सिंग) के खिलाफ अब आउट सोर्स कर्मचारी आंदोलन करने लगे है। ठेका प्रथा के खिलाफ बिजली विभाग के 35 हजार कर्मचारियों की तीन दिन से जारी हड़ताल शिथिल जरूर पड़ गई है लेकिन दूसरे विभागों में भी इस प्रथा से परेशान आउट सोर्स कर्मचारी लामबंद हो रहे है। किसी वक्त में फैक्ट्रियों और कारखानों में ट्रेड यूनियन्स की मांगों और समस्याओं से पीछा छुड़ाने के लिए ठेका प्रथा से मजदूरों की भर्ती की शुरूआत उद्योगपतियों ने की थी उसी रास्ते पर सरकार भी चल पड़ी है। यही कारण है कि हर विभाग में मैनपॉवर की पूर्ति ठेकेदारों के जरिए की जा रही है। काम कर्मचारियों से लिया जा रहा है लेकिन उनकी भर्ती के लिए एक बड़ी राशि सर्विस जार्च के रूप में ठेकेदारों को भी जा रही है।
बिजली विभाग में 35 हजार आउट सोर्स कर्मचारी तैनात
जानकारों का कहना है कि आउट सोर्स प्रथा के चलते एक तरफ कर्मचारी नाखुश है तो दूसरी तरफ सरकार को भी इस व्यवस्था के चलते हर वर्ष करोड़ों रू. का नुकसान उठाना पड़ रहा है। बिजली विभाग की पांचों कंपनियों में ही करीब 35 हजार आउट सोर्स कर्मचारी तैनात हैं जिनकी नियुक्ति के लिए आउट सोर्स एजेंसियों को 1300 करोड़ रु. का भुगतान किया जाता है। इसमें 5 फीसदी कंपनियों का कमीशन तथा 18 फीसदी जीएसटी मिलाकर करीब 250 करोड़ रू. सरकारी खजाने में जाता है, लेकिन इसका कोई लाभ न तो सरकार को मिल पा रहा है और न ही कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी हो पा रही है। इसी तरह सरकार के हर विभाग में आउट सोर्स कर्मचारी काम कर रहे हैं जिनकी नियुक्ति के लिए आउट सोर्स कंपनियों को मोटी राशि सरकारी खजाने से चुकानी पड़ रही है।
आउटसोर्स बिजली कर्मचारियों को हटाने की तैयारी
पिछले पांच दिन से हड़ताल कर रहे आउटसोर्स बिजली कर्मचारियों को हटाने की तैयारी है। विभिन्न आउटसोर्स कंपनी को मौखिक फरमान जारी कर दिए हैं कि अगर शीघ्र ही कर्मचारी काम पर नहीं लौटे तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक बिजली कंपनियों की तरफ से आउटसोर्स कंपनियों को धोकबंद अनुशंसाएं भेजी जा चुकी है। जिसमें कहा गया है कि कर्मचारियों की हड़ताल से काम प्रभावित हो रहा है। आम नागरिकों का दबाव है। बिजली बंद होती है तो कभी भी अप्रिय स्थिति बन सकती है। जो कर्मचारी हड़ताल पर है उनकी जगह दूसरे कर्मचारी उपलब्ध कराएं हैं। विदित है कि 27 सितंबर से प्रदेश भर के आउटसोर्स बिजली कर्मचारी बेमियादी हड़ताल पर है।
ज्यादा ड्यूटी, कम वेतन
दरअसल प्रदेश के सरकारी विभागों में ठेकेदारी प्रथा के कारण कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। आउट सोर्स कंपनियों द्वारा कर्मचारियों को कम वेतन दिया जा रहा है और उनसे ज्यादा ड्यूटी कराई जा रही है। कम वेतन के साथ ही आउट सोर्स कंपनियों की मनमानी के कारण बिजली कंपनियों के कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं। इस संबंध में कर्मचारियों का प्रतिनिधिमंडल पिछले माह ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से मिलकर उन्हें समस्या से अवगत करा चुका है। कर्मचारियों का कहना है कि बीच में बैठी आउटसोर्स कंपनियां एक तरफ कर्मचारियों का शोषण कर रही है तो दूसरी तरफ सरकार को भी आर्थिक नुकसान हो रहा है। जितने कर्मचारियों की भर्ती का कॉन्ट्रैक्ट लिया जाता है वास्तव में उतने कर्मचारी तैनात नहीं किए जाते जबकि सरकार से राशि टेंडर में दर्ज कर्मचारियों की संख्या के हिसाब ली जाती है। अमला कम और काम अधिक होने के कारण कर्मचारियों से तय समय से ज्यादा ड्यूटी करवाई जाती है, श्रम नियमों के मुताबिक अवकाश नहीं दिए जाते है, वेतन रोक दिया जाता है, निकालने की धमकी दी जाती है, नियुक्ति के बदले पैसों की मांग की जाती है। आउटसोर्स बिजली कर्मचारी संघ के संयोजक मनोज भार्गव ने बताया कि उक्त तथ्य और समस्याएं मंत्री के सामने रखी थी। विभागीय मंत्री ने एक माह में उचित आश्वासन का भरोसा दिया था लेकिन समाधान की दिशा में कोई प्रक्रिया शुरू नहीं होने पर मजबूरी में आंदोलन करना पड़ रहा है।
सीएम के आदेश के बाद भी कर्मी कल्चर को बढ़ावा
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा कर्मचारियों को पात्रता और मानवीय गरिमा के अनुरूप सम्मानजनक वेतन देने के पक्षधर रहे है। यही कारण है कि उन्होंने दिग्विजय कार्यकाल में शुरू हुए कर्मी कल्चर को शोषण कल्चर करार किया था। शिक्षाकर्मियों से लेकर दैनिक वेतन वेतन भोगियों तक को रिक्त पदों पर नियमित करते समय उन्होंने ऐलान किया था कि प्रदेश में संविदा कल्चर खत्म किया जाएगा। इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जून 2018 में संविदा नीति जारी करते हुए कर्मचारियों की रिक्त पदों पर नियमित करने के आदेश भी जारी किए गए। कुछ विभागों में निर्देशों पर अमल भी हो गया लेकिन दिग्विजय कार्यकाल का कर्मी कल्चर शिवराज कार्यकाल में आउट सोर्स के रूप में फिर वापस आ गया है।