
- एक दशक में सिर्फ भवन बनकर हो सका तैयार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र सरकार की मंशा पर प्रदेश की भाजपा सरकार एक दशक बाद खरा नहीं उतर पायी है। मामला है भोपाल में देश की पहली सरकारी होम्योपैथी फार्मेसी की स्थापना का। इसके लिए अफसरों ने मिले बजट से भवन तो तैयार करा लिया , लेकिन उसके लिए मशीनों से लेकर अन्य व्यवस्थाएं जुटाने में कोई रुचि नहीं ली जा रही है।
दरअसल इसके पीछे केन्द्र सरकार की मंशा गुणवत्तापूर्ण और कम लागत पर होम्योपैथी दवाएं उपलब्ध कराने की थी। यही वजह है कि 11 साल पहले 2013 में भोपाल में फार्मेसी शुरू करने की योजना तैयार की गई थी। इस योजना को मूर्त रुप देंने के लिए केन्द्र सरकार ने प्रदेश के आयुष विभाग को दो करोड़ रुपए भी प्रदान कर दिए थे। इसके बाद राज्य सरकार ने अपने बजट से भवन निर्माण के लिए राशि दी, तो कलियासोत स्थित शासकीय होम्योपैथिक कालेज में फार्मेसी के लिए भवन का निर्माण भी करा लिया गया, लेकिन उसके बाद दवाएं बनाने की मशीनें ही नहीं मंगाई जा रही हैं। नतीजा फार्मेसी भवन का उपयोग महाविद्यालय द्वारा स्टोर रूम के रुप में किया जाने लगा है और मशीनों के लिए मिली दो करोड़ रुपए की राशि अब भी खाते में खर्च होने का इंतजार कर ही है।
यह दिया जा रहा तर्क
होम्योपैथी कालेज में 20 करोड़ रुपये की लागत से फार्मेसी को तैयार किया जाना है। इस मामले मे अफसरों का तर्क है कि, जिस तरह की मशीनों व उपकरणों की खरीद की जानी है, वे मिल नहीं पा रहे हैं। ऐसे उपकरण बनाने वाली कंपनियां भी कम हैं। हालांकि आम आदमी भी इन तर्कों से सहमत नही है। इसके लिए जो बड़े उपकरण खरीदे जाने हैं, उनमें ग्राइंडर, दवाओं के परीक्षण करने की मशीनें शामिल हैं। इसी के साथ अधिकारी बजट की कमी को भी बड़ा कारण बता रहे हैं, क्योंकि फार्मेसी के लिए बड़े उपकरणों की खरीदी के लिए दो करोड़ का बजट बहुत कम है। यही नहीं सात वर्षों में फार्मेसी के लिए बने भवन की हालत भी खस्ता हो चुकी है, जिसकी वजह से अब उसकी मरम्मत पर खर्च आना लाजमी है।
करनी पड़ती हैं आयात
होम्योपैथी की कई दवाएं जर्मनी से मंगाना पड़ती है। देश में कई निजी फार्मेसी भी होम्योपैथी दवाओं का निर्माण कर रही है, लेकिन यह महंगी होने के साथ विश्वसनीय नहीं होती। वहीं जर्मनी से दवाएं मगाने से समय और कीमत दोनों ज्यादा हो जाती है। अभी अत्यावश्यक दवाओं की सूची में शामिल दवाएं ही मरीजों की मिल पाती हैं। बाकी दवाएं बाजार से खरीदनी पड़ती है। उत्पादन शुरू होने के बाद ज्यादा दवाएं बाजार से मिल सकेंगी। यहां पर ड्रग टेस्टिंग लैब भी बनेगी। फार्मेसी में बनने वाली दवाओं के अलावा अस्पताल में बंटने वाली अन्य दवाओं की भी जांच हो सकेगी। कॉलेज को फार्मेसी से आमदनी होगी। इस राशि का उपयोग अस्पताल में सुविधाएं बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।