विदेशी अध्ययन रिपोर्ट को नहीं देती सरकार तवज्जो

विदेशी अध्ययन
  • अब भी जारी है पुलिस महकमे में अंग्रेजों के जमाने की अर्दलियों की परंपरा

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। सरकारी खजाने से राशि खर्च कर अध्ययन व प्रशिक्षण के नाम पर प्रदेश सरकार अपने आईपीएस अफसरों को विदेश भेजती है, लेकिन जब उनकी रिपोर्ट पर अमल  की बात आती है तो पीछे हट जाती है। इसकी वजह से लाखों रुपए विदेश यात्राओं पर किया जाने वाला खर्च फिजूलखर्ची साबित हो रहा है। दरअसल इसकी बड़ी वजह है, कई बार इस तरह की अनुशंसाएं और रिपोर्ट दी जाती है, जिनका असर आला आईपीएस अफसरों की सुविधाओं पर पड़ना तय होता है। इसकी वजह से उनसे पुलिस मुख्यालय और सीनियर आईपीएस अफसर सहमत ही नहीं होते हैं। इसी तरह का एक मामला विभाग के अर्दलियों से जुड़ा हुआ है। यह वे कर्मचारी होते हैं, जो बतौर नौकर अफसरों के घरों पर चाकरी करते हैं। इन से अफसरों द्वारा हर छोटा बड़ा घरेलू काम कराया जाता है। इन अर्दलियों को घरेलू काम से हटाने की अनुशंसा कई अफसरों द्वारा अपनी रिपोर्ट में की जा चुकी है, लेकिन इन अनुशंसाओं पर अब तक कोई भी अमल करने को तैयार नहीं है। यह हालात तब बने हुए हैं, जबकि उन सिफारिशों में कह गया है कि अर्दलियों की जगह काम करने के लिए कलेक्टर दर पर लोगों को रखने की सुविधा दी जाए। हाल ही में इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर अर्दली की व्यवस्था को तुरंत ही बंद करने को कहा है। मद्रास हाईकोर्ट ने वहां के गृह सचिव को पत्र लिखकर कहा है कि देश में 1979 में अर्दली की प्रक्रिया  बंद चुकी है, लेकिन पुलिस के अधिकारी इस मामले में अपवाद हैं। इसको लेकर मध्यप्रदेश में भी पहल हो चुकी है, लेकिन व्यवस्था में बदलाव नहीं आया है। बदलाव इसलिए भी नहीं आया कि अर्दली आला पुलिस अफसरों की पात्रता में शामिल हैं। डीजीपी से लेकर नीचे तक के अफसरों को दो से पांच अर्दली की पात्रता है।
एक अरब की होगी हर साल बचत
प्रदेश कैडर के कई आईपीएस अफसरों ने अर्दली की प्रथा को समाप्त करने की रिपोर्ट पीएचक्यू और राज्य सरकार को दी है। पुलिस मुख्यालय की रिफॉर्म शाखा ने भी हाल में इसको लेकर रिपोर्ट सरकार स्तर पर भेजी है, जिस पर अमल किया जाए तो सरकारी खजाने को हर साल एक अरब रुपए की बचत होगी। रिपोर्ट के मुताबिक डीजीपी, स्पेशल डीजी, एडीजी स्तर के लगभग 63 पुलिस अफसरों के बंगलों में तकरीबन 4,000 अर्दली बेगारी कर रहे हैं। अगर कुल अर्दलियों की बात की जाए तो पुलिस अफसरों के पास 120 प्रधान आरक्षक और 4 हजार 447 आरक्षक बतौर अर्दली तैनात हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि अर्दली के तौर पर बंगलों में तैनात कर्मचारियों को अगर एसएएफ और जिला पुलिस बल में शामिल कर दिया जाए। इन पर हर साल 182 करोड़ 79 लाख से अधिक की राशि खर्च हो रही है। इसमें कहा गया है कि जवानों की अर्दली ड्यूटी की जगह आउट सोर्स कर्मचारियों सेवाएं ली जाएं, जिस पर सरकार को महज 81 करोड़ 7 लाख 20 हजार रुपए ही खर्च करने पड़ेंगे। हद तो यह है कि अफसरों ने बतौश्र अर्दली एसटीएफ के जवानों तक को तैनात कर दिया था। इसका खुलासा होने के बाद उन्हें हटाया गया है।
अन्य अफसर भी नहीं हैं पीछे
इस मामले में अन्य अखिल भारतीय और राज्य सेवा के अफसर भी पीछे नहीं हैं। पुलिस अफसरों को तो अर्दली की पात्रता है, दीगर विभागों के बहुत सारे ऐसे अफसरों के बंगलों में भी सरकारी कर्मचारियों की तैनाती है, जिन्हें इसकी पात्रता तक नहीं है। लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, वन विभाग, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगमों सहित तमाम विभागों के कर्मचारी, ठेका श्रमिक और मजदूर अफसरों के बंगलों में काम करते हैं। उनकी संख्या भी एक-दो नहीं, बल्कि अच्छी खासी होती है। यही नही कई सेवानिवृत्त आला पुलिस अफसरों के घरों पर भी अर्दली के तौर पर पुलिसकर्मियों की तैनाती नियम विरूद्ध नियमित रूप से की जाती है। 

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एक अरब की होगी हर साल बचत
प्रदेश कैडर के कई आईपीएस अफसरों ने अर्दली की प्रथा को समाप्त करने की रिपोर्ट पीएचक्यू और राज्य सरकार को दी है। पुलिस मुख्यालय की रिफॉर्म शाखा ने भी हाल में इसको लेकर रिपोर्ट सरकार स्तर पर भेजी है, जिस पर अमल किया जाए तो सरकारी खजाने को हर साल एक अरब रुपए की बचत होगी। रिपोर्ट के मुताबिक डीजीपी, स्पेशल डीजी, एडीजी स्तर के लगभग 63 पुलिस अफसरों के बंगलों में तकरीबन 4,000 अर्दली बेगारी कर रहे हैं। अगर कुल अर्दलियों की बात की जाए तो पुलिस अफसरों के पास 120 प्रधान आरक्षक और 4 हजार 447 आरक्षक बतौर अर्दली तैनात हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि अर्दली के तौर पर बंगलों में तैनात कर्मचारियों को अगर एसएएफ और जिला पुलिस बल में शामिल कर दिया जाए। इन पर हर साल 182 करोड़ 79 लाख से अधिक की राशि खर्च हो रही है। इसमें कहा गया है कि जवानों की अर्दली ड्यूटी की जगह आउट सोर्स कर्मचारियों सेवाएं ली जाएं, जिस पर सरकार को महज 81 करोड़ 7 लाख 20 हजार रुपए ही खर्च करने पड़ेंगे। हद तो यह है कि अफसरों ने बतौश्र अर्दली एसटीएफ के जवानों तक को तैनात कर दिया था। इसका खुलासा होने के बाद उन्हें हटाया गया है।
अन्य अफसर भी नहीं हैं पीछे
इस मामले में अन्य अखिल भारतीय और राज्य सेवा के अफसर भी पीछे नहीं हैं। पुलिस अफसरों को तो अर्दली की पात्रता है, दीगर विभागों के बहुत सारे ऐसे अफसरों के बंगलों में भी सरकारी कर्मचारियों की तैनाती है, जिन्हें इसकी पात्रता तक नहीं है। लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, वन विभाग, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगमों सहित तमाम विभागों के कर्मचारी, ठेका श्रमिक और मजदूर अफसरों के बंगलों में काम करते हैं। उनकी संख्या भी एक-दो नहीं, बल्कि अच्छी खासी होती है। यही नही कई सेवानिवृत्त आला पुलिस अफसरों के घरों पर भी अर्दली के तौर पर पुलिसकर्मियों की तैनाती नियम विरूद्ध नियमित रूप से की जाती है। 

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