– अधिकांश विभागों में सालों से परामर्शदात्री समिति का गठन ही नहीं किया

विनोद उपाध्याय
प्रदेश के कई सरकारी महकमों के विभागाध्यक्षों से लेकर जिलों में कलेक्टर तक समय पर परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं कर रहे है। इसको लेकर सामान्य प्रशासन विभाग कई बार नाराजगी जता चुका है। विभागों को हर तीन माह में बैठकें अनिवार्य रूप से करने के नियम हैं, लेकिन कई विभाग तो ऐसे हैं, जहां 15 साल से परामर्शदात्री समिति का गठन ही नहीं किया गया है। इन समितियों का गठन सरकार के विभिन्न विभागों में नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए सलाह देने के लिए किया जाता है। ये समितियां राज्य की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।परामर्शदात्री समितियां सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करती हैं, नीतियों और योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करती हैं, और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित करती हैं। मप्र सरकार के कई विभागों में इन समितियों का गठन नहीं किया गया है, जिससे सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सलाह प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। जिन परामर्शदात्री समितियों के माध्यम से सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान होता था। उस पर सिस्टम की नाकामी पानी फेर रही है। 20 विभाग ऐसे हैं, जहां दस साल से ज्यादा समय निकलने के बाद भी परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं हो पाई हैं। नतीजा यह है कि हजारों कर्मचारियों के मुद्दे फाइलों में दबकर रह गये हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम के अनुसार प्रत्येक तीन माह में एक और वर्ष में चार बैठकें जरूरी हैं। जिस सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से हर डिपार्टमेंट की कार्य गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा रहा है। वहीं पर पिछले दस साल से राज्य स्तर की परामर्शदात्री नहीं कराई गई है। मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि राज्य से लेकर जिला स्तर की बैठकें ठप पड़ी हैं। मंत्रालय में ही जो जीएडी हर विभाग के कार्य पर नियंत्रण रखता है। वहां पिछले दस साल से बैठक नहीं कराई गई है। राज्य से लेकर जिला स्तर पर बैठकें ठप पड़ी हैं।
15 साल से नहीं हुई बैठकें
प्रदेश में कई विभाग ऐसे हैं जहां वर्षों से परामर्शदात्री समितियों की बैठकें ही नहीं हुई है। लोक निर्माण, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, पीएचई, ग्रामीण यांत्रिकी विभागों में 15 साल से परामर्शदात्री समितियों की बैठके आयोजित नहीं की गई हैं। गृह, पंचायत एवं ग्रामीण, कृषि एवं किसान कल्याण, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, आयुष, आर्थिक सांख्यिकी, सहकारिता ऊर्जा, खेल एवं युवा कल्याण, खनिज, राजस्व, गैस राहत, जैसे विभागों में परामर्शदात्रियां ठप पड़ी हैं। इन विभागों के अधीन निगम मंडलों में भी कर्मचारी लंबे समय से मांग कर रहे हैं, लेकिन यहां भी अधिकारी स्तर पर निर्धारित बैठकें नहीं की जा रही हैं। शासन नियम के अनुसार राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव जबकि संभाग एवं जिलों में कमिश्नर और कलेक्टरों को पर बैठकें आयोजित करना अनिवार्य है। इन बैठकों के आयोजन का उद्देश्य यही था कि कर्मचारियों के जिस स्तर के मुद्दे हैं। उनका स्थानीय स्तर पर समाधान किया जा सके। अनेक समस्याएं ऐसी होती हैं जो जिलों और संभाग स्तर पर कलेक्टर एवं कमिश्नर निराकृत कर सकते हैं। जबकि जो राज्य स्तर के मामले होते हैं। उनका समाधान प्रमुख सचिव शासन के अधीन होता है। यह प्रक्रिया नहीं होने के कारण सरकारी सेवकों की समस्याओं में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के पूर्व प्रांताध्यक्ष एमपी द्विवेदी का कहना है कि अधिकारियों के अलावा मंत्रियों एवं विधायकों को भी पत्र दिए गए कि परामर्शदात्री की बैठकें शुरू की जाएं। यह प्रक्रिया बंद होने से कर्मचारियों की लंबित समस्याओं का दायरा निरंतर बढ़ता ही चला जा रहा है।
कर्मचारियों की सुनने वाला कोई नहीं
परमार्शदात्री में मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के अध्यक्ष और सचिव को बुलाने का प्रावधान है। बैठक राज्य स्तर पर होती है तो प्रदेश स्तर से संगठन प्रांत अध्यक्ष एवं सचिव इसमें शामिल होगा। जबकि कलेक्टर एवं संभागायुक्त बैठकें करता है तो यहां पर भी जिला एवं डिवीजन स्तर पर संगठनों के अध्यक्ष और सचिव जैसे पदाधिकारी शामिल होंगे। ताकि यह लोग कर्मचारियों की मांगों का प्रमाणित सूची के आधार पर पक्ष रख सकें। नियम पूर्वक परामर्शदात्रियां करने के लिए सामान्य प्रशासन वर्ष 2014 से 2021 की अवधि में तीन बार प्रमुख सचिवों, कलेक्टरों एवं कमिश्नरों को पत्र लिखा चुका है, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जबकि कर्मचारी संघ अनेक बार आंदोलन कर चुके हैं। सक्षम अफसरों को सीएम एवं विभागीय मंत्रियों के नाम ज्ञापन भी दिए गए, पर आरोप है कि इस विषय में कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। कर्मचारियों की प्रमुख मांगें हैं-हर कर्मचारी संवर्ग के गृह भाड़ा भत्ते में बढ़ोतरी, निर्धारित यात्रा भत्ता का समय पर भुगतान करने, विभागों में तत्काल प्रमोशन चैनल खोला जाए, रिटायर्ड कर्मियों के देयकों का समय पर भुगतान, संविदा कर्मचारियों को नीति के अनुसार लाभ, कर्मचारियों के लिए स्थानीय स्तर पर आवास, लिपिक कर्मचारियों की वेतन विसंगति सुधारने, विभागों में लंबित अनुकंपा प्रकरणों का निराकरण, आरक्षित वर्ग के सेवकों का बैकलॉग शुरू करने और दैवेभी स्थाई कर्मचारियों का नियमितीकरण करना आदि। मप्र कर्मचारी कांग्रेस के संरक्षक वीरेन्द्र खोंगल का कहना है कि अनेक प्रमुख विभाग ऐसे हैं, जिनमें कहीं दस तो कहीं 15 साल से बैठकें नहीं कराई गई है। हम सरकार को पत्र दे रहे। आंदोलन कर रहे है। उसके बाद भी इस विषय में खामोशी है, जिससे नाराजगी बढ़ रही है।