भ्रष्टाचार अधिनियम में बदलाव पर लोकायुक्त की नाराजगी दूर नहीं कर सकी सरकार

लोकायुक्त संगठन

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। आला अफसरों की मंशा के चलते भ्रष्टाचार के मामले में राज्य सरकार द्वारा जांच एजेंसियों के अधिकार कम किए जाने से नाराज लोकायुक्त संगठन को सामान्य प्रशासन विभाग संतुष्ट नहीं कर सका है। यही वजह है कि इस मामले में अब भी लोकायुक्त संगठन की सरकार को लेकर नाराजगी कायम है। अब एक बार फिर से इस मामले में लोकायुक्त द्वारा सामान्य प्रशासन विभाग से कुछ बिंदुओं पर 9 जुलाई तक जवाब तलब किया गया है।
दरअसल लोकायुक्त की आपत्ति इस बात को लेकर है कि सरकार ने बगैर उनसे अनुमति लिए कैसे यह फैसला कर लिया कि जांच से पहले संबंधित विभाग या सरकार से अनुमति लेनी होगी। लोकायुक्त संगठन द्वारा पूर्व में इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग को नोटिस देकर यह पूछा था कि मेरी बिना अनुमति के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों को कैसे और किस नियम के तहत बदल दिया गया है। लोकायुक्त की नाराजगी इस मामले में कितनी अधिक है इससे ही समझा जा सकता है कि नोटिस में लोकायुक्त ने यह तक लिखा है कि क्यों ना आप के खिलाफ प्रोविजन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाए।
सरकार ने यह रखा अपना पक्ष
लोकायुक्त के नोटिस के जबाव में सुनवाई के लिए पहुंचे सामान्य प्रशासन विभाग के अफसरों का तर्क था कि केंद्र सरकार के प्रावधानों के अनुसार ही धारा 17ए को अधिनियम में जोड़ा गया है। इस पर लोकायुक्त संगठन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य सरकार ने इस आदेश में राज्यपाल के आदेशों को भी पूरी तरह
से नजरअंदाज किया है। जो सरकार की प्रक्रिया का उल्लंघन है।
क्या है मामला
दरअसल सरकार ने 26 दिसंबर 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17 में 17 ए को शामिल किया है। जिसके अनुसार लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू सहित अन्य जांच एजेंसियों को शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारी के विरुद्ध जांच, पूछताछ या अन्वेषण करने से पूर्व विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। यही नहीं इस नई धारा के शामिल किए जाने के बाद अब बिना अनुमति के किसी भी कर्मचारी की जांच एजेंसियां जांच नहीं कर पाएंगी और न ही पूछताछ के लिए तलब कर पाएंगी।

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