पदोन्नत हो गए…लेकिन नहीं मिल सका जिला

  • कई तो बगैर कलेक्टर बने रिटायर्ड होने को हो चुके मजबूर
  • गौरव चौहान
पदोन्नत

मप्र में कई आईएएस अफसर ऐसे हैं, जो कई बार कलेक्टरी का सुख प्राप्त कर चुके हैं, वहीं कई अफसर ऐसे हैं जिन्हें अभी तक कलेक्टरी ही नहीं मिली है। साथ ही कुछ ऐसे अफसर भी हैं,जो बिना कलेक्टर बने रिटायर हो चुके हैं। ऐसे अफसरों की संख्या एक दर्जन तक पहुंच चुकी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अगले दो सालों में यह संख्या दर्जनों में हो जाएगी। इसके उलट कई अफसर ऐसे हैं जो लगातार मैदानी पदस्थापना पा रहे हैं।
प्रदेश में यह हाल तब हैं, जबकि आईएएस बनने वाले अफसरों की तमन्ना कलेक्टर बनने की होती है।  जिन अफसरों का कलेक्टर बनने का इंतजार समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है, उनमें 2007 बैच की बेला देवर्षि शुक्ला, 2008 बैच के चंद्रशेखर वालिंबे, उर्मिला सुरेंद्र शुक्ला, 2009 बैच के आशीष कुमार, 2010 बैच की सपना निगम, अशोक कुमार चौहान, सुरेश कुमार, विनय निगम, मीनाक्षी सिंह, 2011 बैच के गिरीश शर्मा,  सरिता बाला प्रजापति, धरणेंद्र कुमार जैन, प्रीति जैन, 2012 बैच के केदार सिंह, विवेक क्षोत्रिय, तरुण भटनागर, अरुण कुमार परमार, राजेश कुमार ओगरे, भारती ओगरे, ऊषा परमार, राजेश बाथम आदि  शामिल हैं।
मध्यप्रदेश कैडर में आईएएस अफसरों के 469 पद स्वीकृत है। केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ अफसरों सहित वर्तमान में 383 अफसर कार्यरत हैं। गौरतलब है कि हर अफसर की एक बार कलेक्टर के रूप में काम करने की तमन्ना रहती है, जबकि उनमें कितना भी टैलेंट क्यों न हो। कलेक्टर नहीं बन पाने की वजह से-उनकी इच्छा अधूरी रह जाती है। ऐसे ही कई आईएएस अफसर हैं, जो सीनियर होने के बाद भी कलेक्टर नहीं बन सके और ऊपर तक पहुंच रखने वाले उनसे जूनियर कलेक्टरी संभाल रहे हैं। खासकर महिला आईएएस के साथ तो हमेशा से ही भेदभाव होता रहा है।
दरअसल इन अफसरों के बारे में कहा जाता है कि इनकी सरकार में पकड़ कमजोर हैं और प्रशासन में भी उनका कोई प्रभावशाली आका नहीं है, जिसकी वजह से ही उनकी कलेक्टरी के लिए कोई पूछ परख नहीं की जा रही है। इसके अलावा राप्रसे से आईएएस अधिकारी बनने वाले अधिकांश अफसरों को एक ही बार कलेक्टर बनने का मौका मिल सका है। इसमें अपवाद स्वरूप एक दो सीधी भर्ती के आईएएस अफसर भी शामिल हैं। यह बात अलग है कि पूर्व में कुछ पदोन्नत होकर आईएएस अफसर सरकार के बेहद खास रहे, जिसकी वजह से वे न केवल कई जिलों के कलेक्टर बनते रहे हैं, बल्कि बेहद महत्वपूर्ण और मलाईदार जगहों पर भी पदोन्नत होकर पदस्थ होते रहे हैं।  
इन अफसरों को भी नहीं मिली जिले की कमान
मप्र आईएएस संवर्ग में प्रमोशन से आईएएस बने 2004 बैच के अमर सिंह बघेल, 2005 बैच के भगत सिंह कुलेश, 2006 बैच के आशकृत तिवारी, रवि डफरिया, अशोक शर्मा, पतिराम कतरोलिया, 2007 बैच के उपेंद्रनाथ शर्मा आदि आईएएस अफसर ऐसे हैं,जो बिना कलेक्टर बने ही रिटायर हो गए। खास बात यह है कि मप्र सरकार प्रमोशन से आईएएस बने अधिकारियों को मेरिट में आने पर भी कंसीडर नहीं करती है। जबकि सरकार को मापदंडों का फॉलो करते हुए प्रमोशन वाले अधिकारियों को भी कलेक्टर बनाना चाहिए। इनमें बेला देवर्षि शुक्ला, भगत सिंह कुलेश, रमेश थेटे, उर्मिल मिश्रा के नाम शामिल हैं। रमेश थेटे को सरकार से अनबन के चलते कलेक्टर नहीं बनाया गया। वहीं कलेक्टरी नहीं मिलने के बाद भी आयुक्त, सचिव के रूप में प्रमोशन पाने वालों में पहला नाम उर्मिला सुरेंद्र शुक्ला का है, इन्हें किसी भी जिले की कलेक्टरी नहीं मिली, लेकिन सरकार ने इन्हें सचिव के पद पर प्रमोट करते हुए आयुक्त पुरातत्व जरूर बना दिया। वहीं 2009 बैच की शैलबाला मार्टिन तो केवल दो महीने के लिए ही कलेक्टर बन सकीं। इसी तरह 2010 बैच के सुरेश कुमार बिना कलेक्टर बने सचिव राजस्व मंडल बना दिए गए हैं। 2008 बैच की उर्मिला सुरेंद्र शुक्ला के अलावा 2010 बैच की सपना निगम, 2011 बैच की नेहा मारव्या, सरिता बाला प्रजापति, प्रीति जैन तथा 2012 बैच की भारती ओगरे को अभी तक कलेक्टर नहीं बनाया। अन्य अफसरों में 2010 बैच के चंद्रशेखर बालिम्वे, 2011 बैच के गिरीश शर्मा, रत्नाकरक्षा, हरि सिंह मीना, अमरपाल सिंह कलेक्टरी पाने से वंचित रहे हैं। जबकि सीधी भर्ती के आईएएस में 2010 से लेकर 2011, 2012, 2013 और 2014 बैच तक के अधिकांश अफसर कलेक्टर बन चुके हैं। इनमें से कुछ तो दो से तीन जिलों में कलेक्टरी संभाल चुके हैं। आलोक कुमार सिंह, ललित दाहिमा, राकेश कुमार श्रीवास्तव, वंदना वैद्य, अनुभा श्रीवास्तव, राकेश सिंह, शशि भूषण सिंह, प्रबल सिपाहा, अशोक कुमार, राम प्रताप सिंह जादौन, छोटे सिंह, गौतम सिंह, अभिषेक सिंह, बसंत कुरें, शिवराज सिंह वर्मा, वीरेंद्र कुमार, एमआर खान, चंद्रमोली शुक्ला, रवींद्र कुमार चौधरी तथा दिनेश श्रीवास्तव आदि के नाम शामिल हैं। पूर्व आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा का कहना है कि सरकार को चिन्ह-चिन्ह कर अधिकारियों को कलेक्टर नहीं बनाना चाहिए, बल्कि सीनियरिटी के हिसाब से कलेक्टरी देना चाहिए। जिस तरह सीधी भर्ती के आईएएस के साथ किया जाता है। इन्हें भी मौका मिलना चाहिए, चाहे छोटा जिला ही क्यों न दिया जाए। इससे उनका टैलेंट सामने आएगा।

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