
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस से भाजपाई बनने के बाद जिस तरह से श्रीमंत बीते डेढ़ साल से अपने पुराने संसदीय क्षेत्र गुना को छोड़कर जिस तरह से ग्वालियर में सक्रियता दिखा रहे हैं, उससे उनके ग्वालियर से अगले लोकसभा चुनाव लड़ने के कयास अभी से लगना शुरू हो गए हैं। उनके दौरों को इसकी तैयारी से ही जोड़कर ही देखा जा रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव 2024 में होने हैं।
दरअसल जिस तरह से भाजपाई बनने के बाद श्रीमंत ने अपनी पारंपरिक गुना -शिवपुरी सीट छोड़कर ग्वालियर में आ जा रहे हैं, उसकी वजह से ही सियासी हलकों से लेकर सियासतदानों तक में इसी तरह के अनुमान लगाए जाने लगे हैं। इसकी दूसरी वजह है उनके द्वारा अब अपने पुराने निष्ठावान लोगों की जगह मूल रूप से भाजपा नेताओं को महत्व देकर उनका दिल जीतने का प्रयास करना। यह सीट राजशाही जमाना समाप्त होने के बाद से आज भी उनके परिवार की प्रभावशाली बनी हुई है। यह बात अलग है कि गुना -शिवपुरी सीट का इलाका भी उनके पूर्वजों की रियासत का हिस्सा है, लेकिन वहां से श्रीमंत बीता चुनाव अपने ही शागिर्द रह चुके नेता से हार चुके हैं। इसके बाद उनकी इस सीट से दूरी बन चुकी है। अब वे इस सीट पर पहले की तरह सक्रियता भी नहीं दिखा रहे हैं। फिलहाल ग्वालियर सीट पर अभी भाजपा के ही विवेक शेजवलकर सांसद हैं। उनकी पकड़ भी पार्टी में बेहद मजबूत मानी जाती है। इसकी वजह से उनका टिकट कटना भी आसान नही माना जा रहा है। संघ में भी शेजवलकर की गहरी पैठ है और संघ प्रमुख से लेकर कई पार्टी के आला नेताओं से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बेहद मजबूत माने जाते हैं। इस वजह से सवाल उठता है कि श्रीमंत को टिकट मिलना आसान नहीं होगा। अब चर्चा तो यहां तक है कि इसके लिए नया फामूर्ला तैयार किया जा रहा है, जिसके तहत श्रीमंत इस सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे, जबकि उनकी जगह शैजवलकर को उनकी जगह रिक्त राज्यसभा की सीट पर मौका दिया जाएगा। फिलहाल यह सब शेजवलकर पर निर्भर रहने वाला है। फिलहाल अपनी दूरगामी रणनीति के तहत श्रीमंत उन मूल भाजपा नेताओं से भी बेहतर तालमेल बनाने के प्रयासों में लगे हुए हैं, जो अब हाशिए पर भेजे जा चुके हैं , लेकिन उन्हें अब भी जनता में प्रभावशाली माना जाता है। यही वजह है कि फिलहाल प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री रह चुके अनूप मिश्रा व श्रीमंत अधिकांश ग्वालियर में एक साथ नजर आ जाते हैं। इसके अलावा हाल ही में मिश्रा द्वारा श्रीमंत को अपनी संस्था के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि भी बनाया गया है। इसी तरह से श्रीमंत द्वारा पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह और साडा के अध्यक्ष रह चुके जयसिंह कुशवाह को भी महत्व दिया जा रहा है, जबकि अन्य नेताओं से भी श्रीमंत लगातार मेल मुलाकात कर रहे हैं।
श्रीमंत की कार्यशैली में हुआ बदलाव
भाजपा में आने के बाद से श्रीमंत की कार्यशैली पूरी तरह से बदल चुकी है। यही वजह है कि वे अब आम कार्यकर्ताओं से लेकर कभी महल के विरोध में झंडा उठाने वाले नेताओं से भी रिश्तों में गर्माहट लाने के प्रयास करते दिख रहे हैं। इनमें भाजपा नेताओं के अलावा विपक्षी दल के नेता तक शामिल हैं। बीते दिनों वे अपने परिवार के घोर विरोधी रहे पूर्व मंत्री भगवान सिंह यादव की नासाज चल रही तबीयत की वजह से उनकी खैर खबर लेने उनके घर भी पहुंच गए। दरअसल कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति में यादव पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कट्टर समर्थक रहे हैं। इसकी वजह से वे महल के खिलाफ मोर्चा खोले रहते थे। जिसकी वजह से ही 85 एवं 90 के चुनाव में उनका टिकट एआईसीसी की सूची में होने के बाद भी कट गया था। उनका टिकट कटवाने में महल का वीटो बड़ी वजह थी। इसके बाद 90 के चुनाव में जरुर अर्जुन सिंह की जिद की वजह से वे पार्टी का टिकट पा सके थे। इसके बाद उन्हें मंत्री भी बनाया गया था। महल और उनके बीच चली राजनैतिक इस अदावद के बाद भी श्रीमंत उनका हालचाल जानने में पीछे
नही रहे।
लगातार कर रहे आना जाना
गुना शिवपुरी से सांसद रहने के समय श्रीमंत का कभी कभार ही ग्वालियर दौरा होता था, लेकिन भाजपा में आने के बाद से वे लगभग हर एक दो माह में किसी न किसी बहाने से ग्वालियर आ रहे हैं। यही नहीं इस दौरान वे नए व पुराने भाजपा नेताओं से मेल मुलाकात करना नहीं भूलते हैं। इसके अलावा वे पहले की अपेक्षा सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी अधिक भाग ले रहे हैं। यह बात अलग है कि ग्वालियर सीट न केवल महल के प्रभाववाली सीटों में मानी जाती है, बल्कि पूर्व में उनके पिता स्व माधव राव
सिंधिया भी ग्वालियर से लगातार 84 से 99 तक लोकसभा सांसद रह चुके हैं।