जातिवादी सियासत में सामान्य वर्ग और सवर्ण दरकिनार

  • भाजपा-कांग्रेस दोनों का फोकस ओबीसी, एससी और एसटी पर
  • गौरव चौहान

मप्र की शांतिप्रिय राजनीतिक फिजा में कभी भी जातिवादी सियासत ने पैर नहीं पसारे और न ही जातियों के आधार पर राजनीति करने वाली पार्टियां पनप पाईं। यह पहला मौका है जब एट्रोसिटी एक्ट, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी हित जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए। ये संगठन इसी के दम पर चुनाव लडऩे का दंभ भी भर रहे हैं। इन संगठनों के कारण भाजपा और कांग्रेस ने भी जातिवादी सियासत पर ध्यान केंद्रीत किया है। खासकर भाजपा का फोकस ओबीसी, एससी, एसटी को साधने पर है। इस कारण सामान्य वर्ग और सवर्ण हांसिए पर चले गए हैं। प्रदेश सरकार ने हर वर्ग को साधने के लिए योजनाओं की भरमार की है, लेकिन मध्यम आय वर्ग और सवर्ण खाली हाथ हैं। योजनाओं के हितग्राही बनने के लिए जो पात्रता तय की जाती है, उसमें जाति के साथ आय का दायरा भी तय होता है। इस दायरे से थोड़ा भी बाहर व्यक्ति होता है तो उस परिवार को लाभ नहीं मिल पाता। मसलन, ज्यादातर योजनाओं में परिवार की 2.50 लाख रुपये प्रति वर्ष आय होना निर्धारित है। मान लें कि किसी परिवार की कुल आय 2.60 लाख रुपये हुई तो उस परिवार की महिला अपात्र मानी जाएगी, जबकि प्रति माह आय 21 हजार 666 रुपये ही हुई। ये राशि आंकड़ों में परिवार को मध्यम मानती है, जबकि व्यवहारिक स्तर पर इसे गरीब ही माना जाएगा। इस पैमाने पर जो पात्रता के करीब पहुंच कर भी वंचित हैं, उनमें सवर्ण वर्ग से विभिन्न जातियों के परिवार हैं। गौरतलब है कि अजाक्स (अजा-अजजा कर्मचारियों का संगठन), सपाक्स (सामान्य और ओबीसी वर्ग की संस्था), जयस (आदिवासी युवाओं का राजनीतिक संगठन) और भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी जैसे संगठन विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास में जुटे हैं। ये संगठन भाजपा और कांग्रेस, दोनों पर ही टिकट में भागीदारी करने के लिए भी दबाव बना रहे हैं। जातिगत समीकरणों को साधने की मध्य प्रदेश में सियासत का असर अब दिखाई पडऩे लगा है। गरीब कल्याण के फेर में भाजपा सरकार ने जितनी योजनाएं शुरू की हैं, उनसे मध्यम आय वर्ग और सवर्णों को लाभ नहीं मिल रहा है। वर्ष 2018 में जिन कारणों से प्रदेश में भाजपा को पराजय झेलना पड़ा था, उनमें से कुछ परिस्थितियां अब भी कायम हैं।
मध्यम वर्ग उपेक्षित
दरअसल, सोशल इंजीनियरिंग के तहत भाजपा सरकार ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पूर्व संबल योजना शुरू की थी, जिसमें गरीब परिवारों को कई प्रकार की सहायता देने की व्यवस्था थी। कमल नाथ सरकार ने इस पर रोक लगाई तो अपने चौथे कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसमें अन्य सुविधाएं जोड़ते हुए फिर से लागू कर दिया। इस योजना से मध्यम आय वर्ग को कोई राहत नहीं मिली। इसी प्रकार आयुष्मान योजना, प्रधानमंत्री आवास, मुफ्त राशन सहित अन्य जो योजनाएं शुरू की गईं उनका लाभ मध्यम आय वर्ग को नहीं मिला। इस वर्ग में सवर्ण जातियों की बहुतायत है, तो इन योजनाओं से सवर्ण जातियां भी वंचित रह गईं। 230 विधानसभा क्षेत्र वाले मध्य प्रदेश में वैसे तो 148 सीटें गैरआरक्षित हैं, लेकिन 78 सीटें सामान्य बहुल हैं। इन सीटों पर यह वर्ग भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है, लेकिन अन्य जातियों को मिल रहे तवज्जो से यह वोट बैंक उपेक्षित महसूस कर रहा है। इनकी नाराजगी भी एक बड़ी चुनौती बन सकती है। लाड़ली बहना योजना में लाभ के दायरे में सवर्ण तो आएंगे, लेकिन मध्यम वर्ग को इससे भी लाभ नहीं मिलने वाला है। क्योंकि इसमें सालाना आय 2.50 लाख रुपये प्रति वर्ष तय है यानी लगभग 21 हजार रुपये प्रति माह, इससे अधिक की दशा में परिवार की महिलाएं पात्रता के दायरे से बाहर हो जाएंगी। प्रदेश मंत्री भाजपा रजनीश अग्रवाल का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सामान्य निर्धन वर्ग को लाभ पहुंचाने वाला देश का पहला राज्य बना है। मध्यम वर्ग का आर्थिक बोझ कम हो और ईज आफ लिविंग की अवधारणा पर तेजी से कार्य हो यही प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की अवधारणा रही है। मध्यम आयवर्ग और सवर्ण भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार ने केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग के लिए सब प्रकार के प्रविधान किए हैं। जब आर्थिक चक्र की गति तेज होती है तो स्वाभाविक रूप से उसका सीधा लाभार्थी मध्यमवर्ग ही होता है। अधोसंरचना में दी गई राशि जिसे पूंजीगत व्यय कहा जाता है, एमएसएमई को सुविधाएं और मजबूत करने के लिए मदद करों में राहत देकर मध्यमवर्ग को सीधा लाभ पहुंचाया गया है। वहीं सामान्य निर्धन वर्ग को 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया है।
योजनाएं ओबीसी, एससी और एसटी के लिए
भाजपा सरकार की सारी योजनाएं ओबीसी से लेकर एससी और एसटी वर्ग तक ही सीमित हैं। सामान्य वर्ग की जातियों और मध्यम वर्ग को भी इन योजनाओं में कहीं कोई स्थान नहीं है। ऐसी दशा में भाजपा के मिशन-2023 में भी यह वर्ग चुनौती बन सकता है। अब तक सामान्य और ओबीसी वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ रहा है। इस वर्ग के ज्यादातर वोट भाजपा को ही मिलते हैं, इसकी खास वजह है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती ओबीसी बिरादरी से हैं। वहीं सामान्य वर्ग से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह जैसे भाजपा के बड़े चेहरे हैं। पर इस वोटबैंक में करणी सेना और सपाक्स जैसे संगठन सेंध लगा सकते हैं। करणी सेना भी चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है, जिसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। इधर ओबीसी आरक्षण के मसले पर यह वर्ग भी दोनों दलों में बंट गया है।

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