
- अनसूटेबल को बना दिया सूटेबल
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में स्कूल, कॉलेजों की मान्यता में किस तरह का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता देने में सामने आया है। प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता देने में मिलीभगत का ऐसा खेल खेला गया है कि अधिकारियों ने मान्यता देने के लिए बनाई गई टीम की अनुसंशाओं को दरकिनार कर अनसूटेबल को सूटेबल बना दिया। यानी मान्यता की कसौटी पर खरे न उतरने वाले नर्सिंग कॉलेजों को हर स्तर पर अफसरों ने खुली छूट दी। कॉलेजों की जांच के लिए राज्य व स्थानीय स्तर के साथ नर्सिंग काउंसिल के तीन मुख्य चेक प्वाइंट बने हैं। लेकिन तीनों स्तर पर अफसरों का ऐसा गठजोड़ रहा कि सब जानते हुए भी वे आंखें मूंदे रहे। नतीजा, नर्सिंग कॉलेज घोटाला हो गया। जिम्मेदारों ने हजारों विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया।
कहने को सरकार ने पारदर्शिता के लिए ऑफलाइन व्यवस्था खत्म कर ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया अपनाई। फिर स्कूटनी और भौतिक सत्यापन के लिए बनी टीम में राज्य से लेकर स्थानीय स्तर तक सदस्य रखे। फिर भी नर्सिंग काउंसिल ने बिना भवन, शिक्षक और अस्पताल के कॉलेजों को मान्यता दी। सवाल है कि आखिर किस स्तर पर चूक हुई। भौतिक सत्यापन करने वाली टीम ने काउंसिल को गलत रिपोर्ट दी या फिर काउंसिल ने सब जानते हुए नियम ताक पर रखकर मान्यता दी। इतना ही नहीं, काउंसिल की मान्यता के बाद डायरेट्रेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ने कैसे अपनी मुहर लगा दी। यही नहीं घोटाले की जांच कर रही सीबीआई टीम भी कॉलेज माफिया से गठजोड़ कर बैठी और अपनी रिपोर्ट में ही अनसूटेबल कॉलेजों को सूटेबल बता दिया। यानि नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता देने में हर स्तर पर फर्जीवाड़ा किया गया है।
तहसीलदारों को बनाया बलि का बकरा
जानकारों का कहना है कि तहसीलदार और नायब तहसीलदार ने जो रिपोर्ट दी उसे भी दरकिनार कर दिया है। अब इन लोगों को नोटिस भेजा गया है। इन लोगों को भेजे गए नोटिस में लिखा गया है कि विगत वर्ष 2022-23 में उपरोक्तानुसार गठित विभिन्न दलों द्वारा प्रदेश के कई जिलों में स्थित नर्सिंग संस्थाओं का भौतिक निरीक्षण किया गया था। कुछ दलों द्वारा कुछ नर्सिंग संस्थाओं को निरीक्षण रिपोर्ट में सूटेबल रिमार्क दिया गया था एवं मान्यता हेतु अनुशंसा की गई थी। मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल द्वारा नियम विरुद्ध एवं त्रुटिपूर्ण दस्तावेजों के आधार पर नर्सिंग स्कूल-महाविद्यालयों को मान्यता प्रदाय किए जाने के संबंध में रिट याचिका क्रमांक 1080/2022 उच्च न्यायालय में प्रचलित है। इस संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई को जांच सौंपी गई है। नर्सिंग काउंसिल द्वारा गठित दलों द्वारा इस प्रकार सूटेबल प्रतिवेदित की गई संस्थाओं में से 66 संस्थाओं को सीबीआई जांच के आधार पर उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा उपरोक्त रिट याचिका पर पारित आदेश दिनांक 12.02.2024 से अनसूटेबल श्रेणी में सम्मिलित किया गया है। इस दल, जिसमें आप भी उपरोक्तानुसार सदस्य थे, ने निरीक्षण रिपोर्ट में इस संस्था को सूटेबल दर्शाया गया था और मान्यता हेतु अनुशंसा की गई थी। इस संदर्भ में आप अपना स्पष्टीकरण दें।
मान्यता की प्रक्रिया
गौरतलब है कि नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता देने के लिए एक टीम बनाई जाती है, जिसमें तहसीलदार और नायब तहसीलदार को भी रखा जाता है। ये जमीन संबंधी जानकारी देते हैं और टीप लिखते हैं। नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए ऑफलाइन व्यवस्था बंद है। आवेदन ऑनलाइन होता है। दस्तावेज ऑनलाइन जमा होते हैं। हार्डकॉपी भी ली जाती है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। आवेदनों की स्कूटनी के बाद टीम कॉलेज का भौतिक निरीक्षण करती है। टीम में राज्य स्तर से नर्सिंग काउंसिल या चिकित्सा शिक्षा के सदस्य व स्थानीय सदस्य होते हैं। कलेक्टर के प्रतिनिधि भी होते हैं। टीम में 3 लोग होते हैं, यह संख्या बढ़ सकती है। कॉलेज तय मापदंडों पर दस्तावेज देते हैं। टीम स्थानीय स्तर पर अस्पताल की भौतिक जांच कर सत्यापित रिपोर्ट देती है। भवन-जमीन, कर्मी, संसाधन व अन्य मानक देखे जाते हैं। निरीक्षण में मापदंड पर खरे उतरे कॉलेजों की अनुशंसा होती है। रिपोर्ट नर्सिंग काउंसिल रजिस्ट्रार को देते हैं। कार्यकारिणी बैठक में मंजूरी मिलती है। फिर मान्यता मिलती है। काउंसिल कार्यकारिणी या रजिस्ट्रार स्तर पर खामी पकड़ी गई तो मंजूरी नहीं मिलती। छोटी कमियां दूर करने का वक्त देते हैं। नर्सिंग काउंसिल से मंजूरी के बाद मान्यता सूची जारी की जाती है।