- राकेश श्रीमाल

इंदौर में होल्कर रियासत के दौरान राज दरबार में गाने-बजाने का परिवेश स्तरीय और सांगीतिक विरासत को संरक्षण देने का रहा है। चुने हुए गवैये, बीनकार और सारंगी वादकों की महफिलें अपने उफान पर रंग जमाती थीं। रजब अली खाँ इंदौर के राज दरबार के गवैये थे। शाहमीर खाँ दरबार के चौधरी यानी मेहमान उस्तादों की सुविधाओं का ख्याल रखने वाले प्रोटोकॉल ऑफिसर थे। इन दोनों में गहरी मित्रता थी, जिससे परस्पर गहरी पटती भी थी। शाहमीर खाँ के बेटे अमीर खाँ थे। तब युवा अमीर खाँ रजब अली खाँ को चाचा कहते थे। बन्देअली खाँ के पास बीन की बाकायदा तालीम हासिल करने के बावजूद रजब अली खाँ अपनी गायकी में विस्तार करने को कतई पसंद नहीं करते थे। उनकी यह आदत रही कि चार-छह बहलावा करते ही सीधे तान की तरफ प्रस्थान कर देते थे। रजब अली खाँ के शागिर्द निव्रती बुआ की बहुत बाद में यह राय बनी कि अमीर खाँ की तान में मेल से अधिक बेमेल हुआ करता था। अमीर खाँ की तानें और सरगम थोड़े मुश्किल रास्ते से गुजरते थे। उनकी तानों में नक्शे का कोई पूर्व अंदाज नहीं लगाया जा सकता था। उन्हें पकड़ पाना अमूमन सम्भव नहीं हो पाता था। हालांकि दूसरे घरानों में एक बल-पेंच से ही पता किया जा सकता है कि आगे क्या होने वाला है।
उस्ताद अमीर खाँ केवल इंदौर घराने के प्रवर्तक गायक नहीं थे। वे एक ऐसे बेहतर इंसान भी थे, जैसे समकालीन गायकों में कम ही दिखते हैं। उनकी अच्छाई कई लोगों के लिए कमजोरी की मानिंद थी, जिसका फायदा वे लोगों को खूब उठाने देते थे। वे जहाँ भी जाते, अपने प्रशंसक बना लेते थे। उनकी तारीफ इसी में थी कि वे सबके आगे झुक जाते थे लेकिन अपने व्यक्तित्व को गिरने नहीं देते थे। स्वतंत्र कुमार ओझा का मानना था कि ‘अमीर खाँ साहब की आवाज ही उनका व्यक्तित्व थी। उनकी आवाज की प्रकृति गंभीरता के साथ माधुर्य लिए थी। उनकी गायकी में स्थाई अंतरा तथा शब्दों का उच्चारण स्पष्ट और साफ था, जिससे श्रोताओं को स्वर के साथ कविता का भी आनंद मिलता था। मेरुखंड का प्रयोग विशिष्ट तरीके से और प्रचुरता से उनकी गायकी में रहा। आलाप, गमक, मींड, खटके, मुरकिया तो विशेषता लिए थीं ही, उनकी तानों की शैली भी अलहदा किस्म की रही है। उनकी गायकी में चैन-सुकून था।’ वैसे तो अमीर खाँ का जन्म अकोला में 1912 में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण और पढ़ाई इंदौर में ही हुई थी। कई लोग यह मानते हैं कि उनका जन्म नवम्बर में हुआ था पर उनके पासपोर्ट में उनकी जन्मतिथि 15 अगस्त 1912 है। उन्होंने स्कूली पढ़ाई बहुत कम की थी। वे घर में ही उर्दू और फारसी की तालीम हासिल करते रहे। इंदौर में रहने के कारण उन्होंने हिंदी का भी अध्ययन किया, ताकि सन्त साहित्य पढ़ सकें। बड़े होने पर अमीर खाँ ने इंदौर के ‘बम्बई बाजार’ की गली नम्बर तीन में अपना मकान बनवाया और अपने पिता के नाम से ‘शाहमीर मंजिल’ नाम रखा।
अमीर खाँ जब नौ वर्ष के थे, तब ही उनकी अम्मा का निधन हो गया था। उनसे कुछ वर्ष छोटा उनका भाई बशीर था। तब शाहमीर खाँ सारंगी की तालीम देते थे और उनके कई शागिर्द थे। एक दिन किसी शागिर्द ने उनसे तकरार किया और कुछ अपशब्द बोल दिए। शाहमीर खाँ के मन में यह बात चुभ गई। उन्होंने अमीर खाँ को चुपचाप गाना सिखाना शुरू कर दिया। कुछ वर्षों बाद एक जलसे में उसी शागिर्द का प्रदर्शन था। तब शाहमीर खाँ ने उससे अमीर खाँ के गायन में सारंगी की संगत करने को बोला। वह शागिर्द आश्चर्यचकित हो गया कि अमीर खाँ कब से गाने लगे। गायन शुरू हुआ। कुछ ही समय आलाप लेने के बाद अमीर खाँ मुश्किल सरगम की तरफ निकल गए। अब उस शागिर्द को पसीना आने लगा और उसकी स्थिति वाकई दयनीय हो गई।
यह सब बातें इसलिए भी कि इनसे समझा जा सकें कि अमीर खाँ की शुरूआती तालीम किस तरह हुई। इंदौर में ही उस्ताद नसीरुद्दीन खाँ रहते थे। शाहमीर खाँ का उनके घर आना-जाना था। एक मर्तबा शाहमीर खाँ जब उनके घर गए तो वे अपने बेटे को ‘मेरुखंड’ सिखा रहे थे। शाहमीर को देखकर उन्होंने सिखाना तत्काल बंद कर दिया और तालीम की कॉपी भी बंद कर दी। जिज्ञासा के चलते शाहमीर खाँ ने कॉपी उठाकर उसके पन्ने पलटना शुरू ही किए थे कि नसीरुद्दीन खाँ ने उनके हाथ से कॉपी छीनते हुए कहा कि ‘इस कॉपी में जो भी लिखा है, वह आप जैसे सारंगी वादक के लिए किसी मतलब का नहीं है।’ यह सुनकर शाहमीर खाँ अपमानित महसूस करने लगे और तब ही उन्होंने तय किया कि अमीर खाँ को वे केवल गायन ही सिखाएंगे, वह भी ‘मेरुखंड’ की तमाम गहरी-गूढ जानकारी के साथ। अमीर खाँ का पहला निकाह महान सितार वादक उस्ताद विलायत खाँ की बहन जीनत से हुआ था। अपनी बेगम को वे शरीफन कहकर पुकारते थे। उन दिनों वे संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे। उनकी एक बेटी फहमीदा हुई, जो अपने वालिद के चेहरे पर गई थी। परिवार चलाने में उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। इसी के चलते अपनी शरीफन बेगम से उनकी तकरारें होने लगी। हालात इस कदर बिगड़े कि कुछ वर्षों के दौरान ही उनका तलाक हो गया। इसी दौरान दिल्ली में रहने वाली अधेड़ उम्र की तवायफ जगमगी देवी की बेटी मुन्नी बाई से अमीर खाँ को इश्क हो गया। जगमगी देवी उस्ताद वहीद खाँ की शागिर्द थी। मुन्नी बाई नाटे कद की, भरे-पूरे बदन वाली साँवले रंग की थी। वे गायिका भग्गो की बहन थी। वैसे उनका असली नाम मनमोहिनी था। अमीर खाँ से निकाह के बाद उन्हें एक बेटा इकराम हुआ। इकराम ने मैकगिल यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग का कोर्स किया और नौकरी के कारण कनाडा ही बस गया। उसे अपने वालिद से बहुत प्रेम था। इकराम के जिद करने पर अमीर खाँ वर्ष 1969 में कनाडा भी गए थे। मुन्नी बेगम के लिए अमीर खाँ ने पुकारने का नाम खलीफन रखा। मुन्नी बेगम भी अमीर खाँ की बहुत फिक्र करती थीं। उनका मनपसन्द खाना देशी घी में बनाकर खुद अपने हाथों से उन्हें खिलाती थी। जब अमीर खाँ मुम्बई के पैडर रोड़ पर ‘वसन्त बिल्डिंग’ के पहले तल के फ्लैट में रहते थे, तब उसके बाहर नेमप्लेट में दर्ज था – अमीर खाँ, मुन्नी बेगम, इकराम।
आगामी कड़ी में इंदौर से जुड़े अमीर खाँ के अन्य रोचक किस्सों का जिक्र होगा। वैसे भी उन्हें एक छोटे आलेख में बांधा नहीं जा सकता।
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं