
- प्रदेश में कई सालों से जारी है सिलसिला
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। शासन प्रशासन तो ठीक बैंक प्रबंधन भी प्रदेश में सक्रिय शराब लॉबी को उपकृत करने में पीछे नहीं था। इसकी वजह से शराब सिंडिकेट के कर्ताधर्ताओं ने न केवल सरकार को चूना लगाया, बल्कि मिली भगत से बैंक को भी चूना लगा दिया। अब इस मामले का खुलासा होने की बाद जांच शुरू हुई तो एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। नए खुलासे में पता चला है कि इंदौर के पंजाब एंड सिंध बैंक की राजबाड़ा शाखा द्वारा ही शराब ठेकों के लिए बैंक गारंटी जारी की जाती थी। इसी शाखा द्वारा ही इंदौर तो ठीक दूसरे जिलों में शामिल झाबुआ व धार के ठेकेदारों को भी गारंटी जारी की गई। खास बात यह है जब शराब ठेकेदारों द्वारा इस गारंटी का उपयोग झाबुआ जिले में शराब के ठेकों के लिए किया तो इस पर तत्कालीन झाबुआ कलेक्टर ने बैंक प्रबंधन को तीखा पत्र लिखकर चेताया भी था। जिसमें कहा गया था कि गारंटी प्रॉपर फॉर्मेट में जारी नहीं की जा रही है। इसके बाद भी बैंक ने अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नही किया, जिसकी वजह से उक्त बैंक को ब्लैक लिस्ट तक कर दिया गया था। दरअसल बैंक गारंटी शराब ठेकों की राशि सुरक्षित करने का सबसे बड़ा जरिया होता है। ठेकों में गड़बड़ी करने पर यह गारंटी राशि को जप्त कर लिया जाता है। रिकॉर्ड के अनुसार यह गारंटी निधि प्रसाद को लेकर थी। उन्हें तीन करोड़ की बैंक गारंटी इसी बैंक शाखा से जारी की गई थी। अब यह पूरा मामला ईओडब्ल्यू के पाले में चला गया है। इसके बाद बैंक में छापा मारकर ईओडब्ल्यू ने इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज जप्त किए हैं।
बैंक ने इस तरह किया शराब ठेकेदारों को उपकृत
बैंक प्रबंधन द्वारा अपने स्तर पर कई तरह से उपकृत कर शराब सिंडिकेट को बैंक गारंटी में कई तरह की रियायतें दी गई थी। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि असुरक्षित लोन होने पर बैंक 16 प्रतिशत ब्याज लेता है, लेकिन ऐसा होने के बाद भी बैंक द्वारा इन ठेकेदारों को सवा आठ फीसदी की दर से ही कर्ज दिया गया। इसी तरह से उनसे कर्ज पर लिए जाने वाले तीन फीसदी कमीशन की जगह महज डेढ़ फीसदी कमीशन ही लिया गया। कमीशन में पचास फीसदी की रियायत देने के लिए बैंक प्रबंधन द्वारा उन्हें अच्छा ग्राहक तक बता दिया गया। हाल ही में ईओडब्ल्यू ने 150 करोड़ से अधिक के बैंक गारंटी घोटाला का खुलासा किया था लेकिन आबकारी विभाग में हुए इस बड़े बैंक घोटाले से भी आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे पल्ला झाड़ रहे हैं और पूरा मामला कलेक्टर के मत्थे मढ़ रहे हैं। इस मामले में आबकारी अधिकारियों उनके मुखिया आबकारी आयुक्त की भूमिका की अनदेखी की जा रही है। इसमें कहीं न कहीं आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे की मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। विभाग प्रमुख की सहमति अथवा जानकारी के बिना स्थानीय आबकारी अधिकारी इतनी बड़ी अनियमितता की अनदेखी कर सकेंगे यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है।
सिंडिकेट के यह सदस्य हैं शामिल
शराब सिंडिकेट में शामिल 30 से ज्यादा सदस्यों में से अब रमेशचंद्र राय, मुकेश शिवहरे ग्रुप व पिंटू भाटिया के परिजनों के साथ ही मां रतनगढ़ प्रालि का नाम भी इस मामले में सामने आए हैं। यह कंपनी लल्ला शिवहरे की बताई जाती है। खास बात यह है कि जिस संपत्ति पर बैंक गारंटी जारी की गई उसका मौके पर जाकर सत्यापन तक नहीं किया गया। इस मामले में इनकके अलावा नामदेव ग्रुप के मुकेश और उनके परिजन अनिता सिंह का भी नाम है। नामदेव को बिना शराब ठेका मिले ही बैंक गारंटी जारी हो गई थी।
नहीं हो सकी 20 करोड़ की वसूली
बैंक प्रबंधन की वजह से ही चार साल पहले 2017 में हुए 42 करोड़ के आबकारी घोटाले में भी शिवहरे ग्रुप के कई सदस्यों के नाम सामने संलिप्त पाए गए थे। इस घोटाले में अब तक महज 22 करोड़ रुपए की ही वसूली हो सकी है। इसकी वजह से अब भी 20 करोड़ रुपए की वसूली बची हुई है। इसके पीछे बड़ा कारण बैंकों में सही संपत्ति को नहीं रखा जाना बताया जा रहा है।