- तमाम बड़े चेहरे भी नहीं दिला सके कांग्रेस को जीत
- विनोद उपाध्याय

राजधानी में जिस दल का परचम लहाराता है, उसका असर प्रदेश में होता है। यही वजह है कि हर राजनैतिक दल चाहता है कि राजधानी की सीट पर उसका ही कब्जा हो। फिर चाहे विधानसभा हो या फिर लोकसभा की सीट। यही वजह है कि सभी प्रमुख राजनैतिक दल इसके लिए पूरी ताकत लगाते हैं। प्रदेश की राजधानी सहित चारों महानगरों की लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कई दशकों से भाजपा का ही परचम लहरा रहा है। इस बीच कांग्रेस द्वारा तमाम प्रयास किए गए, लेकिन हर बार जनता ने उसके प्रयासों को नकार दिया है। प्रदेश में भोपाल सहित चारों महानगरों की लोकसभा सीटें अब भाजपा का बेहद मजबूत गढ़ बन चुकी हैं। इसकी वजह से कांग्रेस के लिए इन सीटों पर जीत दर्ज करना सपना ही बन कर रह गया है। अगर राजधानी भोपाल की बात की जाए तो बीते 25 सालों से भाजपा को ही जीत मिल रही है। यही स्थिति प्रदेश के सबसे बड़े महानगर इंदौर की भी है। इन दोनों ही सीटों पर 1989 से भाजपा लगातार जीत रही है। यही वजह है कि अब इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए दमदार प्रत्याशी ही नहीं मिल रहे हैं। भोपाल सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने प्रदेश के अपने सबसे बड़े नेताओं में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे भी हार गए थे। उन्हें भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने तीन लाख 64 हजार मतों से हरा दिया था। खास बात यह थी कि साध्वी पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं थीं। इसी तरह से इंदौर में कांग्रेस के पंकज संघवी को भी भाजपा के शंकर लालवानी ने पांच लाख 47 हजार मतों से पराजित कर दिया था। अगर प्रदेश के दो अन्य महानगरों की बात की जाए तो जबलपुर में 1996 और ग्वालियर में 2007 से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है। इन दोनों ही सीटों पर भाजपा को लगातार जीत मिलती आ रही है।
4 बार जीत चुके हैं राकेश सिंह
जबलपुर सीट से वर्ष 2004 यानी पिछले चार बार से राकेश सिंह जीतते आ रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस जीत के लिए पिछली बार अपने बड़े चेहरों में शुमार जाने माने वकील विवेक तन्खा को भी चुनाव लड़ा चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी उसे जीत की सफलता नहीं मिल सकी। अहम बात यह है कि इस सीट पर भी भाजपा को बड़े अंतर से जीत मिलती आ रही है। इसकी वजह से ही अब कांग्रेस को मजबूत प्रत्याशी तक मिलना मुश्किल हो चुका है। यही वजह है कि अब तो कांग्रेस के नेता तक चुनाव लड़ने की खबर आते ही अपने हाथ खड़े करने लगे हैं। चौथा महानगर ग्वालियर है। इस सीट पर वर्ष 2007 से लगातार कमल खिल रहा है। इस सीट पर अंतिम बार कांग्रेस के रामसेवक सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके पूर्व यह सीट कांग्रेस का गढ़ रह चुकी है। तब लगातार पांच बार स्व माधवराव सिंधिया ने जीत दर्ज की थी। इसमें उनके द्वारा एक बार स्वयं की पार्टी मप्र विकास कांग्रेस भी शामिल है। दरअसल, बड़े शहरों के मतदाता अब भाजपा के परंपरागत मतदाता बन चुके हैं। वे प्रत्याशी कोई भी हो भाजपा को ही वोट करते हैं।
सेठी व प्रधान को मिली थी अंतिम बार जीत
इंदौर में अंतिम बार 1984 में कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी जीते थे। इसके बाद 1989 से लगातार भाजपा के कब्जे में यह सीट रही है। भाजपा की कद्दावर नेता सुमित्रा महाजन वर्ष 1989 से लेकर 2019 तक यहां से लोकसभा सदस्य निर्वाचित होती रहीं हैं। उसके बाद भाजपा के शंकर लालवानी ने जीत दर्ज की है। इसी तरह से भोपाल की सीट पर कांग्रेस को अंतिम बार 1984 में ही जीत मिली थी, तब केएन प्रधान को जीत मिली थी। इसके बाद से ही भाजपा को लगातार जीत मिलती आ रही है। इस बीच भाजपा ने कई प्रत्याशी बदले, लेकिन उसकी जीत पर कोई असर नहीं पड़ा है। यह सीट भोपाल के अलावा सीहोर जिला मिलाकर बनी है। अहम बात यह है कि भाजपा इस सीट पर अपने तत्कालीन बड़े चेहरे उमा भारती और कैलाश जोशी को भी लड़ा चुकी है। इन दोनों नेताओं ने भी बड़े अंतर से यह सीट जीत कर पार्टी के निर्णय को सही साबित किया है।
इन सीटों पर भी भाजपा को मिल रही दो दशक से जीत
प्रदेश में चारों महानगरों वाली लोकसभा सीटों के अलावा भी कई ऐसी सीटें हैं, जिन पर लगातार भाजपा को दो दशकों से जीत मिलती आ रही है। जिन सीटों पर भाजपा 1989 से जीत रही है, उनमें भिंड, विदिशा और दमोह भी शामिल है, जबकि जिन सीटों पर पार्टी को 1996 से जीत मिल रही है उनमें, बैतूल मुरैना और सागर की सीट शामिल है। इसी तरह से 1998 से भाजपा सतना और बालाघाट की सीट को जीत रही है, जबकि 2004 से खजुराहो सीट पर भी कमल खिल रहा है।
कांग्रेस का विकल्प तलाशने की शुरुआत बड़े शहरों से हुई। विपक्ष की जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टीकरण की राजनीति को लोग समझ गए हैं। अब तो महानगर ही नहीं हर जगह भाजपा है। कांग्रेस ने न तो जनता की परवाह की और न ही अपने कार्यकर्ताओं की।
आशीष अग्रवाल, प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा
प्रदेश में जहां-जहां भाजपा लंबे समय से जीतती रही है वहां धर्म की अफीम भाजपा के लिए सार्थक साबित हुई है। यह कहना सही नहीं है कर्मचारियों के मत भाजपा को अधिक मिलते हैं। डाक मत पत्रों में भाजपा हमेशा जीतती रही है। हम तो ईवीएम से हार रहे हैँ।
केके मिश्रा, अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग