
- जातीय, क्षेत्रीय, सामाजिक संतुलन के आधार पर बंटेंगी कुर्सी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में ओबीसी आयोग के अध्यक्ष पद पर रामकृष्ण कुसमारिया की नियुक्ति के बाद अब निगम-मंडल, बोर्ड, आयोग और प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को लेकर हलचल तेज हो गई है। जानकारी के अनुसार, दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के बीच संभावित नामों को लेकर विस्तृत चर्चा हो चुकी है। बताया जाता है कि राजनीतिक नियुक्तियों के लिए जो फॉर्मूला बनाया गया है उसके अनुसार जातीय, क्षेत्रीय, सामाजिक संतुलन के आधार पर कुर्सियां बांटी जाएंगी। इसी आधार पर नामों की सूची तैयार कर अनुमोदन के लिए केंद्रीय नेतृत्व को भेज दी गई है। अनुमति मिलते ही नियुक्तियों के आदेश जारी किए जाएंगे।
सूत्रों के मुताबिक भाजपा नेतृत्व ने संगठनात्मक अनुभव, जातीय और क्षेत्रीय संतुलन और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नामों को अंतिम रूप दिया है। इसमें पूर्व मंत्री, संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद तथा विभिन्न जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रभावशाली चेहरों को शामिल किया गया है। फिलहाल राज्य में निगम-मंडल, बोर्ड और आयोगों के लगभग तीन दर्जन से अधिक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त हैं, जिन्हें भरने के लिए यह कवायद की जा रही है। सरकार की मंशा है कि इन नियुक्तियों के माध्यम से सभी वर्गों और क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व मिले, जिससे आगामी नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में पार्टी को राजनीतिक लाभ मिल सके। बता दें कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले 45 निगम-मंडलों और बोर्डों में की गई पूर्ववर्ती नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। तब से अब तक इन संस्थाओं में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है।
नियुक्ति की तैयारी अंतिम दौर
क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को देखते हुए ये नियुक्तियां की जाएंगी। इसे लेकर मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा संगठन की तैयारी अंतिम दौर में पहुंच गई है। मुख्यमंत्री दो बार केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा भी कर चुके हैं। नियुक्तियां एक साथ नहीं बल्कि चरणबद्ध तरीके से होंगी। वर्तमान में निगम, मंडल, आयोग के अध्यक्ष संबंधित विभाग के मंत्री हैं या फिर वरिष्ठ अधिकारी। गौरतलब है कि प्रदेश में वर्ष 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 25 से अधिक नियुक्तियां निगम, मंडल, आयोग और प्राधिकरणों में की थीं। चुनावी वर्ष यानी 2023 में फिर नियुक्तियां की गईं। कुछ नए प्राधिकरण बनाए गए। मोहन सरकार ने सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद यानी जनवरी-फरवरी, 2024 में निगम-मंडलों के अध्यक्षों को हटा दिया और संबंधित विभाग के अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव को पदेन अध्यक्ष बना दिया।
राजनीतिक नियुक्तियों के लिए लगातार दबाव
राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर समय-समय पर दबाव भी बनता रहा लेकिन कोई निर्णय न होने की स्थिति में सितंबर 2024 में अधिकारियों के स्थान पर विभागीय मंत्रियों को जिम्मेदारी दे दी गई। तभी से नियुक्तियों को लेकर तब-जब अटकलें लगाई जाती रहीं। दरअसल, ये नियुक्तियां संगठन के नेताओं को उपकृत करने का माध्यम मानी जाती हैं। टिकट आदि से वंचित रहे नेताओं को इन नियुक्तियों के बहाने साधा जाता है। नियुक्तियां न होने से संगठन में असंतोष भी रहता है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हेमंत खंडेलवाल की नियुक्ति के साथ ही एक बार फिर निगम, मंडल, आयोग और प्राधिकरणों में नियुक्ति की कवायद तेज हो गई है। मुख्यमंत्री ने 7 अगस्त की शाम को फिर नई दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से भेंट की। माना जा रहा है कि पिछले दिनों हुए उनके दिल्ली दौरे में कुछ नामों को लेकर सहमति भी बन चुकी है। चूंकि, सरकार एक साथ नियुक्ति के पक्ष में नहीं है इसलिए क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए चरणबद्ध तरीके से सूचियां निकाली जाएंगी। कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिन्हें लेकर यह तय होना बाकी है कि इनकी आगामी भूमिका संगठन में ही निर्धारित की जाए या फिर निगम, मंडल, प्राधिकरण आदि में काम करने का अवसर दिया जाए।
20 महीने से आस लगाए बैठे हैं नेता
प्रदेश के निगम, मंडल और आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर नेता पिछले 20 महीने से आस लगाए बैठे हैं। अब उनकी आस पूरी होती दिख रही है। दरअसल, राजनीतिक नियुक्तियां आश्वासन को पूरा और समायोजित करने के लिए ही होती हैं। यदि किसी बड़े नेता को टिकट नहीं मिल पाता है या उसे राह से हटाना होता है तो ऐसी नियुक्तियों का आश्वासन दे दिया जाता है। इन पदों पर सरकार किन नेताओं को नियुक्त करती है, यह उसके विवेक पर निर्भर करता है लेकिन इसमें जनता के हित दांव पर लग जाते हैं। निगम, मंडल और आयोग किसी विशेष विभाग, समाज या विकास योजनाओं की देखरेख के लिए बनाए गए हैं। इनके शीर्ष पर बैठे व्यक्ति से उस विभाग, समाज या विकास योजना का विशेषज्ञ होने की अपेक्षा की जाती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो उस निगम, मंडल या आयोग से अच्छे परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यह एक तरह से जनता के साथ धोखा है। निगम, मंडल और आयोग भी सरकारी धन से ही संचालित होते हैं। यदि उपयुक्त और विशेषज्ञ व्यक्ति उनका संचालन नहीं करता तो उद्देश्य पूर्ति नहीं होती। इस दृष्टिकोण से राजनीतिक नियुक्तियां केवल नेताओं को फायदा पहुंचाती हैं और जनता को पूरा लाभ नहीं मिल पाता। जनहित में इस व्यवस्था को परिणाममूलक बनाए जाने की आवश्यकता है।