दो भ्रष्टाचार के मामलों में… फंसे पूर्व मुख्य सचिव

  • गौरव चौहान
मुख्य सचिव

मप्र के पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह  बैंस की मुश्किल बढ़ती जा रही हैं। भ्रष्टाचार के दो मामलों में  बैंस के खिलाफ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और लोकायुक्त में पड़ताल शुरू हो गई है। आजीविका मिशन में हुईं फर्जी नियुक्तियों व अन्य मामले में उनके खिलाफ मिली शिकायत की जांच के लिए आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने सरकार से अनुमति मांगी है। मामले में तीन रिटायर्ड आईएएस का भी नाम शामिल है। जबकि लोकायुक्त ने उज्जैन की दताना हवाई पट्टी पर एयरलाइन्स कंपनी यश एयरवेज लिमिटेड से रात्रि कालीन पार्किंग शुल्क नहीं वसूलने के मामले में नए सिरे से जांच शुरू की है। प्रदेश के सबसे कडक़ अफसरों में गिने जाने वाले बैंस का इकबाल जांच के घेरे में आने से प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में तरह-तरह की बातें हो रही है।
गौरतलब है कि आजीविका मिशन के तहत वर्ष 2017-18 में नियम विरुद्ध नियुक्तियां कर व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार किया गया। 12 फरवरी को इसे लेकर ईओडब्ल्यू में शिकायत दर्ज कराई गई है। कार्रवाई न होने पर शिकायतकर्ता आरके मिश्रा ने सीजेएम कोर्ट में परिवाद दायर किया था, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 28 मार्च तक ईओडब्ल्यू से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। आरके मिश्रा ने कोर्ट में बताया कि नियुक्तियों में गड़बड़ी की जांच का जिम्मा आईएएस नेहा मारव्या को सौंपा गया। 8 जून 2022 को उन्होंने रिपोर्ट सौंपी। जिसमें गड़बड़ी स्वीकारी गई, लेकिन प्रकरण पंजीबद्ध नहीं हो पाया। सीनियर आईएएस अशोक शाह और मनोज श्रीवास्तव ने किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की और बाद में ललित मोहन बेलवाल से इस्तीफा दिलवाकर मामला दबाने की कोशिश की गई। आजीविका मिशन में घोटाले की जांच सरकार ने आईएएस नेहा मारव्या से कराई थी। नेहा मारव्या ने दबावों को दरकिनार कर जांच में अवैध नियुक्ति होना साबित किया। जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपने के बाद से नेहा मारख्या लूप लाइन में हैं। नई सरकार ने भी नेहा मारव्या को लूप लाइन से बाहर नहीं निकाला है।
बैंस के रिटायर होते ही जांच में तेजी
 लोकायुक्त एवं ईओडब्ल्यू में बैंस के कार्यकाल से जुड़े मामलों की पुरानी शिकायत लंबित थी। बैंस पिछली सरकार में ताकतवर अधिकारी थे। करीब साढ़े तीन साल प्रदेश के मुख्य सचिव रहे। इस दौरान दोनों ही एजेंसियों ने उनके खिलाफ जांच की गति को आगे नहीं बढ़ाया। हालांकि जांच धीमी गति से चलती रही। बैंस के रिटायर होते ही जांच में तेजी आ गई है। दोनों ही एजेंसियों ने एक साथ जांच की गति को आगे बढ़ाया है। जिससे  बैंस की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। गौरतलब है कि ईओडब्ल्यू ने मप्र आजीविका मिशन में आठ साल पहले हुई नियुक्ति के मामले में जांच के लिए सरकारी से अनुमति मांगी है। जिसमें तीन सेवानिवृत्त आईएएस इकबाल सिंह बैंस, अशोक शाह और मनोज श्रीवास्तव के नाम भी शामिल हैं।
अशोक शाह सेवानिवृत्ति के बाद कार्य गुणवत्ता परिषद के महानिदेशक बन गए। आजीविका मिशन में अनियमित नियुक्ति और कथित भ्रष्टाचार के मामले की जांच 2011 की आईएएस नेहा मारव्या ने की थी। जांच में अवैध नियुक्ति समेत कई गड़बड़ी उजागर हुई। नेहा की रिपोर्ट पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। मामला हाईकोर्ट भी पहुंचा। तब सरकार ने कोर्ट को भी गुमराह करके जांच पर कार्रवाई नहीं की। इस मामले में मिशन के पूर्व सीईओ सेवानिवृत्त आईएफएस ललित मोहन बेलवाल पर भी आरोप थे। भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू में भी की गई थी। अब जांच एजेंसी ने बैस समेत अन्य के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी है। वहीं उज्जैन की दताना हवाई पट्टी को 7 साल के लिए यश एयरलाइन को पार्किंग के लिए लीज पर देने का अनुबंध 2006 में हुआ था। जिसमें कंपनी को रात में प्लेन पार्किंग की सुविधा दी गई। इसके एवज में पार्किंग शुल्क वसूलना था। कंपनी ने पार्किंग शुल्क हटाने के लिए विमानन विभाग को आवेदन किया। जिसकी फाइल को तब विमानन विभाग के सचिव रहते बैंस दबाए रहे। बाद में कंपनी की लीज सीमा 7 से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई। बाद में यह मामला कोर्ट में गया। कोर्ट में भी गलत जवाब दिया गया। मुख्य सचिव रहे बैस ने 2021 में कैबिनेट में यह प्रस्ताव पेश कराया कि विमानन संचालक और कंपनी के बीच पार्किंग शुल्क वसूलने के योग्य नहीं है। इस मामले में उज्जैन के तीन कलेक्टरों को आरोपी बनाया है, जिसमें संकेत भोंडवे, शशांक मिश्रा के नाम शामिल हैं।  चूंकि कंपनी का एग्रीमेंट 2016 में समाप्त हो चुका था। ऐसे में इन कलेक्टरों की कोई भूमिका नहीं थी। तीनों के नाम केस से हट गए हैं। अब बैंस के खिलाफ जांच आगे बढ़ गई है।
जीएडी की अनुमति जरूरी नहीं!
ईओडब्ल्यू ने आजीविका मिशन में नियम विरुद्ध नियुक्तियों के मामले में पूर्व सीएस इकबाल सिंह बैंस सहित 3 पूर्व आईएएस के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी है। अफसरों का कहना है कि किसी रिटायर्ड अधिकारी के विरुद्ध जांच शुरू करने के लिए जीएडी की अनुमति जरूरी नहीं हैं। जांच एजेंसी बिना अनुमति ऐसे मामलों में जांच कर दोषियों के विरुद्ध न्यायालय में चालान पेश कर सकती है। खासकर जब सीजेएम द्वारा रिपोर्ट तलब की गई हो। गौरतलब है कि ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 15 नए जिलों में 551 मिशन कर्मियों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार को लेकर आरके मिश्रा ने ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी। शिकायत में कहा गया कि तत्कालीन राज्य स्तरीय परियोजना प्रबंधक ललित मोहन बेलवाल ने 8 मार्च 2017 को प्रशासकीय स्वीकृति के लिए फाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इकबाल सिंह बैंस को भेजी थी। इसमें रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करने की बात कही गई। जिसे बैंस ने नकार दिया और बाद में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के पीएस बने मनोज कुमार श्रीवास्तव तथा अशोक शाह ने भी इस भ्रष्टाचार की शिकायत पर कोई तवज्जो नहीं दिया।

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